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मृदा अपरदन क्या है?

मृदा अपरदन (soil erosion) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें मृदा या भूमि की सतह से उसका तल से अलग हो जाना, अकर्षण, वायु, या जल के प्रभाव से। यह प्रक्रिया अकसर जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक वर्षा, अनुयायित कृषि या अनुयायित विकास के कारण होती है। यह भूमि की गुणवत्ता, कृषि उत्पादन और पर्यावरण के संतुलन को प्रभावित कर सकती है। आज के हमारे इस लिक में हम लोग इसी बारे में जानकारी लेंगे की, मृदा अपरदन क्या है? इसी के साथ ही हम यह भी जानकारी लेंगे कि इसके प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?

मृदा अपरदन, जिसे अंग्रेजी में “सोइल इरोशन” कहा जाता है, एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो भूमि की सतह से उसका तल से अलग हो जाने को निरंतरता से वर्षा, वायु, जल, या अन्य बाह्य तत्वों के प्रभाव के कारण होता है। इस प्रक्रिया में, मृदा की परतें या भूमि की ताजगी को विघटित करने के लिए भूमि के उपरी सतह से मिट्टी का स्थायी या अस्थायी हटाव होता है।

मृदा अपरदन की एक मुख्य वजह है जल का प्रभाव। बारिश के समय भूमि पर गिरने वाला पानी, जो बारिश के साथ ही उठे जाने वाली मिट्टी को साथ ले जाता है, इस प्रक्रिया का प्रमुख कारण है। वायु और जल के प्रभाव से भी मृदा अपरदन होता है। उदाहरण के लिए, तेज हवाओं या बाढ़ के कारण मिट्टी के बाहरी सतह पर आने वाला दबाव भूमि को हलके से उठा सकता है, और जल के गतिशीलता की वजह से भी मृदा की परतें उठा ली जा सकती हैं।

मृदा अपरदन के कई प्रकार होते हैं, जिसमें बारिश से पैदा होने वाला जलीय अपरदन, हवा के प्रभाव से पैदा होने वाला हवाई अपरदन, और जल की सतह पर गिरने वाले जलीय अपरदन शामिल हैं। इन प्रकारों के अलावा, भूमि के नक्शा या स्ट्रक्चरल अपरदन भी होते हैं, जिसमें भूमि के निकटतम बांधों, नदीयों, खाईयों, या खरादों के निर्माण से मृदा की सतह का घटाव होता है।

मृदा अपरदन के प्रमुख प्रभावों में से एक है भूमि की गुणवत्ता का हानि। जब मिट्टी की परतें हट जाती हैं, तो भूमि की फ्रेजाइलिटी बढ़ जाती है, जिससे वह आसानी से उठ जाती है और निर्जीव तत्वों से भर जाती है। यह नुकसान खेती, वनस्पति, और प्राणियों के लिए अस्थायी स्थिति का कारण बन सकता है।

विशेष रूप से, मृदा अपरदन कृषि क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अनुयायित कृषि तकनीकों का उपयोग, बारिश के साथ भूमि की मिट्टी का अपशिष्ट पदार्थों के साथ सतत सम्पर्क, और अव्यवस्थित भूमि प्रबंधन के कारण मृदा अपरदन की दर बढ़ गई है। इससे न केवल खेती की उत्पादकता पर असर होता है, बल्कि यह पानी और हवा के निकटतम प्राकृतिक संचार को भी प्रभावित कर सकता है।

मृदा अपरदन को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय हैं। इनमें भूमि को बांधने वाले परियोजनाओं का निर्माण, भूमि संरक्षण के उपायों का अनुसरण, और अनुयायित खेती तकनीकों का उपयोग शामिल हैं। साथ ही, भूमि प्रबंधन तकनीकों का उपयोग करके भूमि की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी कई कदम उठाए जा रहे हैं।

मृदा अपरदन एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है जिस पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके नियंत्रण में सकारात्मक कदम उठाने से, हम न केवल भूमि की स्थिरता को बनाए रख सकते हैं, बल्कि यह आसपासी परिस्थितियों को भी सुधार सकता है और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में मदद कर सकता है।

मृदा अपरदन को परिभाषित करें

मृदा अपरदन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें भूमि की सतह से उसका तल से अलग हो जाना होता है, जो वर्षा, जल, वायु, या अन्य परिस्थितियों के प्रभाव से होता है। यह भूमि की मिट्टी को उठा लेता है, जिससे खेती, वनस्पति, और प्राणियों के लिए अस्थायी स्थिति बनती है। मृदा अपरदन की वजह से भूमि की गुणवत्ता कम होती है और इससे प्राकृतिक संतुलन पर भी असर पड़ता है। अनुयायित कृषि, अव्यवस्थित भूमि प्रबंधन, और अत्यधिक वन्यजीवन की हत्या के कारण मृदा अपरदन की दर बढ़ रही है। इसे नियंत्रित करने के लिए भूमि संरक्षण के उपायों का अनुसरण करना और समुचित भूमि प्रबंधन का अनुरोध किया जाता है।

मृदा अपरदन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?

मृदा अपरदन के बहुत सारे कारक हो सकते हैं प्रवाहित जल अपरदन का सामान्य कारण हो सकता है। इसके अलावा भी जब छोटी-छोटी नदियां किसी बड़ी नदियों से मिलती है तो वह किसी बड़ी नदी की सहायक कहलाती है। नदियों की तेज प्रभाव भी एक महत्वपूर्ण कारक है जो मृदा की ऊपरी परत को बाहा करके ले जाती है। चलिए नजर डालते हैं ऐसे ही 20 बिंदुओं पर जो मृदा अपरदन की प्रमुख कारक है।

मृदा अपरदन के प्रमुख कारक निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. बारिश और वर्षा
  2. जल धारा और जलप्रवाह
  3. भूमि की तटीय चाल
  4. वायुमंडलीय प्रभाव (हवा और हवाई अपरदन)
  5. जल सतह पर तेज हवाओं का प्रभाव
  6. जल विस्तार और अनियमित वर्षा
  7. जल सांद्रता और जल की गति
  8. खेती की अनुयायित तकनीकें
  9. जल की सतह पर जल प्रवाह के प्रभाव
  10. अव्यवस्थित वन्यजीवन और अंतर्निहित बालू चट्टान
  11. भूमि परिवर्तन और अस्थायी रखरखाव
  12. अनुयायित उपज प्रणालियाँ और अत्यधिक कृषि गतिविधियाँ
  13. भूमि प्रबंधन की अभावशीलता
  14. जलवायु परिवर्तन और तापमान की वृद्धि
  15. नदी, झील, और कनाल के जल प्रवाह का प्रभाव
  16. निरंतर वन्यजीवन और जीवों के पर्यावरण का नुकसान
  17. अव्यवस्थित जल संचार
  18. जलवायु और जल की गतिशीलता
  19. भूमि की उपज, जैसे कि पौधों और पेड़ों की कमी
  20. अव्यवस्थित भूमि उपयोग और निर्माण गतिविधियाँ

मृदा अपरदन को कैसे रोके

मृदा अपरदन को रोकने के उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. आधुनिक खेती तकनीकों का उपयोग करें जैसे कि जल संचारित कृषि, बागवानी, और विनाशी कृषि प्रणालियाँ।
  2. भूमि संरक्षण के लिए जल आधारित वनस्पति और आधारित कवर की वृद्धि करें।
  3. अच्छे बीजों का उपयोग करें जो मृदा को सुदृढ़ बनाए रखें।
  4. भूमि में स्थाई परिणाम छोड़ने वाले और विनाशक पदार्थों का उपयोग न करें।
  5. भूमि के स्थानीय प्रकृतिक पौधों और वन्यजीवन को संबोधित करें।
  6. अच्छे भूमि प्रबंधन प्रथाओं का अनुसरण करें, जैसे कि संवेदनशील कृषि और जल संरक्षण की अच्छी प्रथाएं।
  7. भूमि को बाढ़, जल प्रवाह, और तेज हवाओं से संरक्षित करने के लिए बांध और अवरोधक संरचनाओं का निर्माण करें।
  8. अच्छे निर्माण संरचनाओं के लिए भूमि निर्माण और विकास पर पाबंदियाँ लागू करें।
  9. अवशेष जल को पुनः प्रयोग करने के लिए जल संचार प्रणालियों का निर्माण करें।
  10. भूमि की तटीय चालों को संरक्षित रखने के लिए नारियल की बाड़ी और अन्य संरक्षणीय वृक्षों की वृद्धि करें।
  11. जल संचारित वन्यजीवन क्षेत्रों का संरक्षण करें।
  12. सहयोगी रोपांतरण कार्यक्रमों को प्रवर्तित करें जो भूमि संरक्षण को समर्थ बनाए रखने के लिए हों।
  13. भूमि संरक्षण के उदाहरणों को समझें और उन्हें अनुसरण करें।
  14. सांदर्भिक भूमि प्रबंधन योजनाएं तैयार करें और लागू करें।
  15. बिजली, पानी, और अन्य संसाधनों का ध्यान रखें जो अपशिष्ट उत्पादन और प्रबंधन में मदद कर सकते हैं।
  16. बागवानी और खेती में संरक्षण और उत्पादन की अच्छी प्रथाएं अपनाएं।
  17. अव्यवस्थित जल संचार को रोकने के लिए नियंत्रण उपाय अपनाएं।
  18. स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाएं और उन्हें सामाजिक और आर्थिक समर्थन प्रदान करें।
  19. स्थानीय स्तर पर अधिकारिक संरचनाओं और नियंत्रण प्रणालियों का अनुसरण करें।
  20. संगठनों, सरकार, और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग और समन्वय बढ़ाएं।

मृदा अपरदन के प्रकार

मृदा अपरदन के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हो सकते हैं:

  1. जलीय अपरदन: इसमें जल के प्रभाव से मिट्टी का स्थायी या अस्थायी हटाव होता है।
  2. हवाई अपरदन: तेज हवाओं के कारण मिट्टी की सतह पर धूल या धूलकला का उठाव होता है।
  3. खनिजीय अपरदन: खनिज पदार्थों के चलन या उनके प्रवाह के कारण मृदा का हटाव होता है।
  4. संरूप अपरदन: इसमें मृदा की सतह पर रुखों, गहरों, या खरादों के निर्माण के कारण अपर्दन होता है।
  5. जल उथलान: इसमें जल की गहराई में मृदा का हलका उथलान होता है जो बढ़ती हवाओं द्वारा प्रेरित होता है।
  6. जल-हवा अपरदन: यह एक संयुक्त प्रकार है, जिसमें जल और हवा के संयोग से मिट्टी का हटाव होता है।
  7. भूस्खलन: इसमें मृदा के निचले भागों का हटाव होता है, जो भूमि के पारिस्थितिकीय बदलावों के कारण होता है।
  8. छोटे गति का अपरदन: इसमें मृदा का हटाव संदृश्य में धीमा होता है, जैसे कि बर्फ या जमीन की सांध्रता के कारण।
  9. तेज़ गति का अपरदन: इसमें मिट्टी का हटाव तेजी से होता है, जैसे कि बाढ़ या भूकंप के कारण।

अपरदन और निक्षेपण क्या है?

अपरदन (Erosion) और निक्षेपण (Deposition) दो प्रक्रियाएं हैं जो प्राकृतिक उपादानों को विलीन और जमाने में मदद करती हैं:

  1. अपरदन (Erosion): अपरदन एक प्रक्रिया है जिसमें भूमि या उपादान की पारिस्थितिकीय सतह से उसके हटाव का उत्थान होता है, जो विभिन्न कारकों जैसे कि वायु, जल, या धरातल के प्रभाव से होता है।
  2. निक्षेपण (Deposition): निक्षेपण उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें संद या उपादान को किसी अन्य स्थान पर जमाने में सहायता मिलती है। जब अपर्दन द्वारा उठाए गए उपादान को जब वहाँ बाहरी तत्वों के प्रभाव में निर्दिष्ट स्थान पर छोड़ दिया जाता है, तो इस प्रक्रिया को निक्षेपण कहा जाता है।

इन दोनों प्रक्रियाओं का संतुलन प्राकृतिक परिस्थितियों को संतुलित रखता है और भूमि और उपादानों के संरक्षण और नवीनीकरण में मदद करता है।

अपरदन चक्र किसे कहते हैं?

अपरदन चक्र (Erosion Cycle) एक प्रकार का प्राकृतिक प्रक्रियात्मक मॉडल है जो भूमि की सतह से उसके तल का हटाव और निक्षेपण की संदर्भित प्रक्रियाओं को वर्णित करता है। यह मॉडल भूमि प्रबंधन और प्राकृतिक संतुलन की समझ में मदद करने के लिए उपयोगी होता है।

अपरदन चक्र में निम्नलिखित कदम होते हैं:

  1. पथन (Weathering): यह प्रक्रिया भूमि के उपादानों को अपवित्रित करती है और उन्हें विघटित करती है।
  2. अपरदन (Erosion): इसमें उपादानों का भूमि से हटाव होता है, जो जल, हवा, या अन्य प्राकृतिक कारकों के प्रभाव से होता है।
  3. परिवहन (Transportation): इसमें अपवित्रित उपादान जल, हवा, या बारिश के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाए जाते हैं।
  4. निक्षेपण (Deposition): इसमें परिवहन के द्वारा पहुँचाए गए उपादान एक नये स्थान पर जमते हैं।

यही सिक्ल पुनः प्रारंभ होती है जब जमीन के नए क्षेत्र में अपवित्रित उपादान का निक्षेपण होता है, और इसे फिर से अपरदन, परिवहन, और निक्षेपण की प्रक्रिया के माध्यम से उच्च भूमि के प्रति ले जाया जाता है।

अपरदन चक्र एक प्राकृतिक प्रक्रियात्मक मॉडल है जो भूमि की सतह से उसके तल का हटाव और निक्षेपण की संदर्भित प्रक्रियाओं को वर्णित करता है। इसमें पथन, अपरदन, परिवहन, और निक्षेपण शामिल होते हैं। यह चक्र भूमि प्रबंधन और प्राकृतिक संतुलन की समझ में मदद करता है। यह चक्र पुनः प्रारंभ होता है जब जमीन के नए क्षेत्र में अपवित्रित उपादान का निक्षेपण होता है, और इसे फिर से अपरदन, परिवहन, और निक्षेपण की प्रक्रिया के माध्यम से उच्च भूमि के प्रति ले जाया जाता है।

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