भारत में मौलिक अधिकार नागरिकों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए अहम हैं। इनमें जन्मजात अधिकार जैसे जीवन, आज़ादी, और समानता के अधिकार शामिल होते हैं। भारतीय संविधान ने इन अधिकारों को संरक्षित किया है और उन्हें सामाजिक न्याय और समानता की गारंटी दी है।
मौलिक अधिकार का मतलब उन अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक तथा अनिवार्य है तथा जिन अधिकारों में राज्य द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। इन अधिकारों को मौलिक अधिकार प्रथम तक इसलिए कहा जाता है कि व्यक्ति के मानसिक, मौलिक तथा नैतिक विकास के लिए यह अधिकार जरूरी है। इसके अभाव में व्यक्ति का विकास रुक जाएगा। इसके लिए लोकतांत्रिक राज्य में प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मूल अधिकार प्रदान किया जा सकता है। दूसरा, इनका मूल खाने का कारण यह है कि इन्हें देश के मूल विधि अर्थात संविधान में स्थान दिया जाता है और संविधान संशोधन की प्रक्रिया के अलावा इनमें किसी और प्रकार से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। आईए जानते हैं कि हमें भारतीय संविधान में कितने मौलिक अधिकार दिए गए हैं?
मौलिक अधिकार कितने है?
भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सूची ६५वें अनुसूची में दी गई है, जिन्हें बुनियादी अधिकार (Fundamental Rights) कहा जाता है। ये अधिकार न्यायिक एवं कार्यकर्ता अधिकार, मुक्ति और स्वतंत्रता, धर्म, बोली, और जागरूकता के अधिकार, समानता और नागरिकता, सामूहिक और वैयक्तिक उपचार, संरक्षण से संबंधित होते हैं।
भारतीय संविधान में कुल ६५ मौलिक अधिकार दिए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- जीवन, आज़ादी और सुरक्षा का अधिकार
- बंदी और हिरासत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- निर्देशन, संरक्षण और सुधार का अधिकार
- भाषाई, सांस्कृतिक और शैक्षिक मानदंडों के खिलाफ क्रिया करने का अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- जानें का अधिकार
- बोली, लेखन, छपाई, संदेश और बहाने का अधिकार
- एसोसिएशन, वितरण, सभा और शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार
- रहने और परिवार के साथ रहने का अधिकार
- यौन स्वतंत्रता का अधिकार
- व्यापार और व्यवसाय के अधिकार
- पद्धति, धर्म, और धार्मिक संस्कृति का अधिकार
- समान अधिकार का अधिकार
- सामूहिक समर्थन, यानी उस समय जब कोई आपके अधिकार को उल्लंघित करता है, तो इसके लिए सामूहिक समर्थन का अधिकार।
- नागरिकता का अधिकार
ये हैं कुछ मुख्य मौलिक अधिकार।
भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 14 से 35 में मौलिक अधिकारों का समावेश किया गया है। उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 12 और 13 भी मौलिक अधिकार से संबंधित है। संविधान के भाग 3 को भारत का अधिकार पत्र मैग्ना कार्टा (Magna Carta) कहा जाता है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का विचार संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान में प्रारंभ में नागरिकों को साथ अधिकार प्रदान किए गए थे लेकिन 1978 में 44 में संशोधन द्वारा प्रदत संपत्ति के अधिकार को वापस ले लिया गया और संपत्ति के अधिकार को मात्र एक वैधानिक अधिकार बना दिया गया। इस तरह से देखा जाए तो वर्तमान में भारतीय संविधान के अंतर्गत नागरिकों के छह मौलिक अधिकार प्राप्त है। जो निम्नलिखित है :-
- समानता का अधिकार – अनुच्छेद 14 से 18 में
- स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19 से 22 में
- शोषण के विरुद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23 से 24 में
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से 28 में
- संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार – अनुच्छेद 29 से 30 में
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार – अनुच्छेद 32 से 35 में
26 जनवरी, 1950 को मौलिक अधिकार की जो स्थिति थी उसके अनुसार संपत्ति के अधिकार को अनुच्छेद 19 (1) च तथा अनुच्छेद 31 में मौलिक अधिकार के रूप में रखा गया था। लेकिन 44 में संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार को समाप्त कर दिया गया केवल संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार बन गया है।
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
केवल नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकार कुछ मौलिक अधिकार गैर नागरिकों को भी प्राप्त है जबकि कुछ मौलिक अधिकार नागरिकों को ही प्राप्त है। केवल नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार नीचे हम निम्नलिखित सारणी द्वारा दे रहे हैं।
केवल नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार
अनुच्छेद | नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार |
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अनुच्छेद 15 | धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर प्रतिरोध |
अनुच्छेद 16 | लोक नियोजन के विषय अवसर की समानता |
अनुच्छेद 19 | बोलने की स्वतंत्रता आदि विषय कुछ अधिकारों का संरक्षण |
अनुच्छेद 19 (घ) | संचरण, निवास और वृत्ति की स्वतंत्रता |
अनुच्छेद 29 | अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण |
अनुच्छेद 30 | शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्ग का अधिकार |
नागरिकों और गैर नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकार
अनुच्छेद | प्रावधान |
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अनुच्छेद-14 अनुच्छेद-20 अनुच्छेद-21 अनुच्छेद 24 अनुच्छेद 25 अनुच्छेद 26 अनुच्छेद 28 |
विधि के समक्ष समानता अपराधों के लिए दोषी सिद्ध के संबंध में संरक्षण प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण मानव के दुर्व्यवहार और बालत श्रम का प्रतिषेध कारखान आदि में बालकों के नियोजन पर प्रतिबंध अंतःकरण की और धर्म के आबाद रूप से माने आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करो के संदर्भ के बारे में स्वतंत्रता कुछ शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता |
भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों की विशेषता
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका से ली गई है। भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों के निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
- भारतीय अधिकार पत्र दस्तावेज है संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 30 तक तथा अनुच्छेद 32 से 35 तक मूल अधिकारों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
- विश्व के अन्य किसी सावधान में मौलिक अधिकारों का इतना विस्तृत वर्णन नहीं है जितना कि भारतीय संविधान में किया गया है।
- भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकार पूर्णता निरपेक्ष नहीं है। बल्कि मूल अधिकारों पर युक्ति युक्त रोक लगाया जा सकता है जिसमें व्यक्तिगत अधिकारों को जनहित में संरक्षित रखा जा सके।
- मूल अधिकारों पर लगाए गए प्रतिबंध युक्ति युक्त है या नहीं इसका निर्धारण हाईकोर्ट द्वारा किया जा सकता है।
- मूल अधिकारों का निलंबन किया जा सकता है लेकिन इन्हें संविधान से निकला नहीं जा सकता है।
- मौलिक अधिकार संघीय सरकार, राज्य सरकार तथा प्रतीकुश प्राधिकारी पर जिस विधि निर्माण की शक्ति प्राप्त है पर सीमाएं आरोपित करते हैं।
- मूल अधिकारों की रचना करते हुए संविधान निर्माता ने भारत के नागरिक एवं गैर नागरिकों को ही वॉक एवं अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता तथा सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार प्रदान किए हैं।
- मौलिक अधिकार के भाग 3 में प्रयुक्त नागरिकों एवं युवतियों शब्दों से यह अंतर स्पष्ट किया गया है। कानून के समक्ष समानता, धार्मिक स्वतंत्रता आदि मूल अधिकार नागरिकों एवं युवतियों के लिए बराबर है।
- संविधान में अंतर्दृष्ट मूल अधिकारों में से कुछ नकारात्मक है क्योंकि यह राज्य की शक्ति को सीमित करते हैं जैसे अनुच्छेद 15 में वर्णित मूल अधिकार, जबकि कुछ मूल अधिकार सकारात्मक है जो नागरिकों को स्वतंत्रताएं प्रदान करते हैं जैसे कि अनुच्छेद 19 में वर्णित मूल अधिकार।
- जिन व्यक्तियों को मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं वह उसका त्याग नहीं कर सकते हैं।
- मूल अधिकारों का निलंबन किया जा सकता है संविधान के अनुच्छेद 20 एवं अनुच्छेद 21 में मूल अधिकारों को छोड़कर सभी मूल अधिकार राष्ट्रीय आपातकाल के समय निलंबित किया जा सकते हैं।
- मूल अधिकारों का निलंबन किया जा सकता है लेकिन इसे संविधान से निकला नहीं जा सकता है।
- मूल अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता इसका अल्पिकरण करने वाली कानून अल्पिकरण की सीमा तक शून्य होगी।
- मौलिक अधिकारों के परावर्तन हेतु व्यवस्था की गई है। भारतीय संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मूल अधिकारों के परावर्तन की व्यवस्था की गई है संविधान के अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों द्वारा मौलिक अधिकार की रक्षा की जा सकती है।
संविधान में मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए विभिन्न धाराओं में विवरण दिया गया है। कुछ मुख्य मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं:
- स्वतंत्रता का अधिकार
- जीवन, लिबर्टी, और सुरक्षा का अधिकार
- धर्मनिरपेक्षता का अधिकार
- समानता का अधिकार
- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- संघर्ष और धर्मनिरपेक्षता के अधिकार
- शिक्षा का अधिकार
- भाषा और संस्कृति का अधिकार
- संघर्ष की स्वतंत्रता
- अस्पष्टता के खिलाफ अधिकार
ये मौलिक अधिकार संविधान की मूल नींव में हैं और नागरिकों को उनकी मौलिक और अन्य प्राकृतिक अधिकारों की गारंटी प्रदान करते हैं।