आज है संडे तो, कुछ खास खाने का मन किया। वैसे संडे तो छुट्टियों का दिन होता है। और संडे के दिन लोग मीट मछली अंडा और अपना घर में रहना पसंद करते हैं। तो आज के इस संडे को कुछ स्पेशल बनाने के लिए हम निकल पड़े अपने गांव की तरफ। झारखंड की राजधानी रांची से मेरा गांव लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर जंगलों के बीच सारंडा जंगल के एक किनारे में बसा है। मैं और मेरी वाइफ बाइक से ही निकल पड़े अपने गांव की तरफ। वैसे तो संडे या फिर गर्मियों की छुट्टी में मैं अक्सर अपने गांव आ जाया करता हूं। शहर के भीड़भाड़ इलाके से दूर शांति सुकून और साल के पेड़ के नीचे बैठने का कुछ अलग ही मजा होता है।
वैसे तो गांव के हमारे घर में ज्यादातर लोग नहीं रहते बस एक चाचा है और हमसे बड़े चाचा की मृत्यु हो चुकी है। बाकी लोग अपने काम धंधे की तलाश में शहर में बस चुके हैं। रही बात, गांव तो हम लोग पहुंच गए लेकिन बरसात का मौसम और झारखंड में इस दौरान एक बेहद ही महंगा मशरूम पाया जाता है। जिसे रूगड़ा, यहां के स्थानीय आदिवासी खासकर मुंडाओं के बीच में यह मशरूम इस नाम से काफी ज्यादा फेमस है।
साल के पेड़ों का जंगल होने के चलते इस क्षेत्र में या देसी मशरूम काफी ज्यादा पाया जाता है। तो हमने भी गांव के इस मटन जैसे स्वाद वाले देसी मशरूम को ट्राई करने के बारे में सोचा। स्वाद में क्या यह वाक्य मटन के सामान लगता है?
झारखंड की वह मशरूम जिसका स्वाद मटन जैसा है?
ऊपर फोटो में आप या देख सकते हैं कि हम जब जंगल गए थे तो हमने रूगड़ा के साथ-साथ कुछ देहाती मशरूम भी जंगल से उठा लिए थे। इन मशरूम को यहां झारखंड में अलग-अलग जाति के नाम से जाना जाता है। जैसे कि लोहार मशरूम, इत्यादि।
देसी मशरूम झारखंड में केवल एक ही सीजन में पाए जाते हैं वह भी बरसात के सीजन में। रूगड़ा साल में, एक ही सीजन में उठता है वह भी बरसात के सीजन में। झारखंड में इस मशरूम की डिमांड इतनी ज्यादा है कि बारिश के सीजन में अत्यधिक रूप में पाए जाने के बावजूद भी यह बाजार में ₹400 प्रति किलो से लेकर ₹1000 प्रति किलो की दर से बिकता है।
आदिवासी ग्रामीण यह मानते हैं कि जिस साल अच्छी बारिश के साथ-साथ आसमान में जोरदार बिजली चमकती है उसे दौरान जंगलों में यह मशरूम काफी ज्यादा पाया जाता है। जंगलों में पाए जाने वाला यह मशरूम वाकई में खाने में आपको मटन का एहसास दिलाता है।
दुनिया भर में मशरूम की दो हजार से भी ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है। इन प्रजातियों में से केवल दो सौ तिरासी प्रजाति की मशरूम ही खाने लायक होती है। जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होती, झारखंड में एक इसी तरह का मशरूम पाया जाता है जो अपने आप में अनोखा है। पूरे भारतवर्ष में आपको यह मशरूम केवल झारखंड में ही देखने को मिलता है। जिसका स्वाद मटन के जैसा होता है। कुछ ऐसे मशरूम भी हैं जिन्हें अगर लोगों ने खा लिया तो ये खतरनाक साबित हो सकते है। नमस्कार दोस्तों मैं हूं अंजनी बरला आज के हमारे इस वीडियो में हम झारखंड के देसी मटन मशरूम जिसे देहाती भाषा में रुगडा भी कहते हैं के बारे में जानकारी देने वाले हैं।
रुगडा को स्थानीय आदिवासी काफी पसंद करते हैं। इसको स्थानीय भाषा में रुगडा, पूटू आदि नाम से झारखंड में जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Lycoperdon है। ज्यादातर मशरूम जमीन के ऊपर उगते हैं। लेकिन, रुगडा जमीन के नीचे उगती है। साल के पेड़ों के सूखे पत्तों के नीचे यह मशरूम उगता है। इस मशरूम को कई लोगों ने खेती करने की भी कोशिश की, लेकिन इसे उगा पाना काफी मुश्किल है। इस वजह से यह बाजार में काफी महंगा भी बिकता है।
रुगडा बाजार में आपको पांच सौ रुपये प्रति किलो से लेकर के एक हजार रुपये प्रति किलो की कीमत पर मिल जाएगी। खासकर बरसात के बाद इसकी कीमतों में गिरावट देखी जाती है। वहीं आदिवासी लोगों के बीच यह भी मानता है कि जिस वर्ष वर्षा के साथ-साथ बिजली जोरो से गरजती है उसे दौरान जंगलों में रुगडा काफी अधिक मात्रा में मिलता है।
रुगडा मशरूम न केवल स्वाद के मामले में लाजवाब है। बल्कि, यह कई औषधीय गुणों से भरपूर भी है। रुगडा मे भारी मात्रा में फाइबर और प्रोटीन मौजूद होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। इसके अलावा रुगडा ब्लड प्रेशर, शुगर और दिल के मरीज के लिए भी लाभकारी होता है। रुगडा आपके शरीर में इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम भी करती है।
इसे अंडरग्राउंड मशरूम के नाम से भी जाना जाता है। रुगड़ा का वैज्ञानिक नाम लाइपन पर्डन है। इसे पफ वाल्व भी कहा जाता है। इसे पुटो और पुटकल के नाम से जाना जाता है। मशरूम की प्रजाति होने के बावजूद इसमें अंतर यह है कि यह जमीन के अंदर पाया जाता है। रुगड़ा की 12 प्रजातियां हैं। सफेद रंग का रुगड़ा सर्वाधिक पौष्टिक माना जाता है। रुगड़ा मुख्यतया झारखंड और आंशिक तौर पर उत्तराखंड, बंगाल और ओडिशा में होता है। रुगड़ा में सामान्य मशरूम से कहीं ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं।