भारत में नागरिकता संशोधन बिल को पास कर दिया गया है और पास करने के साथ ही पूर्वोत्तर राज्यों में इसको लेकर के विरोध भी शुरू हो गया है। ऐसे में आप सब और हम लोगों को यह जानना जरूरी है कि नागरिकता संशोधन बिल क्या है? और इसके बारे में चर्चा इतनी ज्यादा क्यों हो रही है? आज हम लोग अपने इस आर्टिकल में इस बारे में ही चर्चा करेंगे की नागरिकता संशोधन बिल आखिर क्या है? और इसका विरोध क्यों किया जा रहा है? नागरिकता संशोधन बिल (CAB) चर्चा का विषय क्यों?
नागरिकता संशोधन (CAB) बिल क्या है?
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया गया है जिसके अंतर्गत नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा।
इससे पहले नागरिकता संशोधन बिल 1955 के प्रावधान अनुसार पाकिस्तान ,बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, बौद्ध, जैन, फारसी, मुसलमान एवं ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान की जा सकती थी। इस कानून के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति भारत की नागरिकता चाहता है तो उसे भारत में 12 वर्षों तक रहने की शर्त के आधार पर 5 वर्षों तक भारत में रहने के सर के रूप में बदल दिया गया है। इस कानून में बदलाव के बाद अब इस अधिनियम के अंतर्गत विशेष बात यह है कि इस अधिनियम में मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता नहीं प्रदान की जाएगी।
नागरिकता संशोधन बिल में बदलाव
11 दिसंबर 2019 को देशभर में मचे बवाल के बीच बुधवार को नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को राज्यसभा में पारित किया गया। यह विधेयक लोकसभा से पहले ही पारित हो चुका था। राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 125 वोट पड़े और वहीं विपक्ष में 99 वोट पड़े। विपक्ष इस विद्या को लगातार विरोध कर रहा है और संविधान विरोधी बता रहा है इस विधेयक के खिलाफ असम सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में प्रदर्शन हो रहा है। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर देश का विभाजन धार्मिक आधार पर नहीं हुआ होता तो आज नागरिकता संशोधन बिल लेकर आने की जरूरत नहीं पड़ती।
नागरिकता संशोधन बिल की खास बातें
● नागरिकता संशोधन बिल क्या है?
जो बिल संसद में पास हुआ है वह नागरिकता संशोधन अधिनियम 1955 में बदलाव किया गया है। इसके तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, के अलावा आसपास के दूसरे देशों से भारत में आने वाले हिंदू, जैन, पारसी, सिख और ईसाइयों को नागरिकता दी जाएगी।
● दूसरे देश में रहने वाले भारतीय शरणार्थियों को नागरिकता मिलना आसान हो जाएगा
इस विधेयक के अनुसार कानून में बदलाव होने के बाद भारत के पड़ोसी देश जैसे कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे देशों में जो गैर मुस्लिम शरणार्थी भारत आएंगे उन्हें यहां की नागरिकता मिलना आसान हो जाएगी इसके लिए उन्हें भारत में कम से कम 6 साल बिताने होंगे। इससे पहले ऐसे शरणार्थियों को भारत में नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल या उससे अधिक भारत में रहना पड़ता था।
● नागरिकता संशोधन बिल पर किस बात का विरोध हो रहा है?
इस बिल को लेकर के विपक्ष ने केंद्र सरकार को घेरा है, वही इस बिल को पास करने के लिए राज्यसभा में इसके पक्ष में 125 वोट पड़े और विपक्ष में 99 वोट पड़े थे। नागरिकता संशोधन बिल में किए गए नए बदलाव चलते इसका विरोध किया जा रहा है। नागरिकता संशोधन बिल 1955 के अनुसार, वे सभी नागरिक जोकि बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और दूसरे पड़ोसी देश से आने वाले हिंदू, मुस्लिम, सिख, जान और इसाई सभी को नागरिकता देने की बात की गई थी।
लेकिन 10 दिसंबर 2019 में बदलाव किए गए नागरिकता संशोधन बिल में इस बात का विरोध किया जा रहा है कि इसमें संशोधन के बाद मुसलमानों को छोड़कर अन्य धर्म के लोगों को आसानी से नागरिकता देने का फैसला किया गया है। इसी के बाद ही विपक्ष इस बात को मुद्दे के रूप में सरकार के खिलाफ लेकर खड़ा हो गया है।
● पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर के विरोध क्यों हो रहा है?
अभी कुछ सालों पहले ही पूर्वोत्तर के राज्यों में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन(NRC) को लेकर के राज्यों में भारी विरोध हुआ था। एनआरसी के तुरंत बाद अब नागरिकता संशोधन बिल लाया गया, जिसका विरोध हो रहा है। नॉर्थईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन की अगुवाई में पूर्वोत्तर के कई छात्र संगठनों ने इस बिल का विरोध किया और साथ ही कई संगठनों ने इसका विरोध करते हुए इसे नागरिकता के खिलाफ बताया है।
पूर्वोत्तर के राज्य से असम, बंगाल जैसे राज्यों में शरणार्थियों का मुद्दा पहले से ही काफी ज्यादा हावी रहा है। बंगाल के विधानसभा और असम के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एनआरसी के मामले को काफी जोर-शोर से उठाया था, जिसका राजनीतिक लाभ उन्हें काफी मिला। अब पश्चिमी बंगाल में चुनाव आने वाला है तो उससे पहले एक बार फिर कॉमन सिटिजन अमेंडमेंट बिल पर भाजपा आक्रमक हो गई है और इसे लेकर के राजनीतिक मामले भी निकाले जा रहे हैं।
NRC ( नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) क्या है?
दूसरे शब्दों में आप इसे भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर भी क्या सकते हैं। इस रजिस्टर में उन नागरिकों के नाम है जो असम में रहते हैं। भारत की जनगणना 1951 के बाद 1951 में ही इसे तैयार किया गया था। इस जनगणना के दौरान वर्णित और सभी व्यक्तियों के विवरण के आधार पर तैयार किया गया था। जो लोग असम में बांग्लादेश बनने के पहले यानी कि 25 मार्च 1971 से पहले आए हैं, केवल उन्हीं भारतीयों का भारतीय नागरिक माना जाएगा।
असम भारत का पहला राज्य है जिसके पास में राष्ट्रीय नागरिकता पंजी है, जब असम में पहली बार राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (NCR) लाया गया था। तब इसके लिए 3.29 करोड़ आवेदन प्रस्तुत किया गया, जिसमें से केवल 1.9 करोड़ लोगों का नाम ही राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में शामिल किया गया। इसके अलावा लगभग 3800000 लोग और उससे अधिक आवेदन ऐसे थे जिनके द्वारा प्रस्तुत किया गया दस्तावेज पर संदेह था। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के हिसाब से यह कहा गया था कि 25 मार्च 1971 से पहले जो लोग बांग्लादेश से भारत में रहने आए हैं उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस कानून के अंतर्गत बहुत सारे लोग ऐसे भी थे जिन्हें प्रूफ करना मुश्किल हो गया था कि वह भारत में 1971 से पहले से रह रहे हैं।
असम में आखिरी बार राष्ट्रीय नागरिकता पंजी 1951 में नागरिकों का रजिस्टर किया गया था उस समय आश्रम में कुल 80 लाख नागरिकों के नाम पंजीकृत किए गए थे।
NCR के बाद अब CAB ( सिटीजन अमेंडमेंट बिल) आसाम के लोगों के लिए अब परेशानी का सबक बन गया है। क्योंकि एनसीआर के अनुसार ऐसे कई गैर मुस्लिम और मुस्लिम नागरिक भी आसाम में रहते हैं जिन की नागरिकता पर अभी भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इसी के चलते भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर के विरोध किया जा रहा है।
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