प्राकृतिक पर्व करमा हर्ष उल्लास के साथ झारखंड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हर साल मनाया जाता है। करमा पूजा के दिन परंपरा के मुताबिक निर्जल उपवास कर रही कुंवारी लड़कियों ने मांदर, ढोल और झाल की धुन के बीच कर्मा डाल को रोपती है। शाम को पुजारी जिसे पहन भी कहते हैं आते हैं। और दुल्हन की तरह सजा करके माता जावा रानी को कर्मा डाल के आगे रखा गया। और उसके बाद उपवास करने वाले लोगों ने जल और फल ग्रहण किए। फिर शुरू हुआ नाच गान का दौर इस दौरान कर्मा डालकर चार और सामूहिक नृत्य कर देवताओं को रिझाया जाता है। मकसद भी सामूहिक, हर जगह हरियाली और खुशहाल हो। ऐसी कामना है की जाती है। कर्मा डाल को नदी में फिर विसर्जन किया जाता है।कुछ ऐसी ही तरह से कर्मा हर साल पूरे झारखंड एवं दूसरे राज्यों में मनाया जाता है। लेकिन यह तो रही बात करमा पूजा मनाने की। लेकिन यह परंपरा आदिवासी के बीच में कब से चली आ रही है। करमा पूजा हम क्यों मनाते हैं ऐसे ही सवालों के जवाब हम आज अपने इस पोस्ट में बताएंगे।
कर्मा उत्साह क्यों मनाया जाता है?
करमा पर्व को लेकर के ऐसे तो बहुत सी कहानियां है। और इसे लेकर के बहुत सी कथाएं भी प्रचलित है। लेकिन इसके पीछे की पुरानी कथा भी है। हर क्षेत्र हर राज्य में इसे लेकर के अलग-अलग कहानियां प्रचलित है। झारखंड में भी इसी तरह की एक कहानी प्रचलित है,जिसके चलते हर वर्ष करमा पूजा उत्सव मनाया जाता है।
करमा पूजा को लेकर के झारखंड में प्रचलित कहानी
झारखंड प्रांत में रहने वाली जनजातियों यह मानती है कि लोगों के बीच में या कथा पुराने समय से प्रचलित है। झारखंड प्रांत की जनजातियों के अनुसार कर्मा और धर्मा नाम के दो भाई थे। कर्मा ने कर्म की महत्ता बताई और धर्म आने शुद्ध आचरण तथा धार्मिक जीवन का मार्ग दिखाया।इन्हीं दोनों भाइयों में से एक कर्मा को देव स्वरूप मानकर अच्छे प्रतिफल की प्राप्ति हेतु उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना तथा नृत्य प्रतिवर्ष किया जाता है।
छत्तीसगढ़ में प्रचलित करमा पूजा को लेकर के कहानी एवं कथा
छत्तीसगढ़ के रायगढ़, कोरबा, चंपा,आदि जिलों की जनजातियों के अनुसार राजा कर्म सेन ने अपने ऊपर विपत्ति पड़ने पर इष्ट देवता को मनाने के लिए रात भर नृत्य किया। जिससे उनकी विपत्ति दूर हुई तब से राजा क्रमसेन के नाम पर कर्मा का पर्व एवं करमा नृत्य प्रचलित है।
वहीं छत्तीसगढ़ के मध्य व पश्चिमी क्षेत्र की जनजातियां यह भी मानती है कि कर्मी नामक वृक्ष पर कर्मी सैनी देवी का वास होता है।उन्हें खुश करने के लिए कर्मी वृक्ष की डाल को आंगन में विधि पूर्वक स्थापित कर पूजा की जाती है और रात भर नृत्य किया जाता है।
करमा पूजा करने का अनुष्ठान
‘करमा’ शब्द कर्म (परिश्रम) और करम (भाग्य) को दर्शाता है। मनुष्य नियमित रूप से अच्छे कर्म करके और भाग्य भी उसका साथ देता है। इसी कामना के साथ करमा पूजा की जाती है।या पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
करमा उत्सव में ‘करमी’ नामक वृक्ष की एक डाली को परम पारीक रूप से गांव के एक पुजारी जिसे पहान या पटेल कहा जाता है। के आंगन में गाडकर के स्थापित किया जाता है। इसी डाली को कर्म देवता का प्रतीक माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है। महिलाएं करमा त्योहार के सप्ताह भर पहले तीज पर्व के दिन टोकरी में गेहूं ,मक्का, जो बाजरा इत्यादि चीजों को होती है जो करमा पर्व तक बढ़ गया होता है। स्थानीय भाषा में उसे ‘जाई’ मैं मिट्टी का दिया जलाते हैं और उस फूल से सजाते हैं। उसमें एक हीरा रखकर के कर्म देवता के चरणों में चढ़ाते हैं।
करमा नृत्य एवं संगीत
कर्मा उत्साह के दिन कर्म देवता की पूजा अर्चना और प्रसाद ग्रहण करने के बाद रात भर करमा नृत्य एवं संगीत का अनुष्ठान किया जाता है। महिलाएं एवं पुरुष कर्म पेड़ के चारों तरफ घूम घूम कर नृत्य करती है। महिलाएं गोल घेरे में श्रंखला बनाकर नृत्य करती है और उनके माध्य मैं पुरुष गायक, वादक होते हैं।
करमा पर्व को लेकर के हम लोगों के बीच में कई सारी कहानियां प्रचलित है। लेकिन एक कहानी जो ज्यादातर लोग सुनाते हैं। वह कहानी लोगों के बीच में एक शिक्षा एवं नैतिकता की सीख दे जाता है। चलिए जानते हैं इस कहानी और कथा के बारे में।
करमा पर्व की कहानी जो शिक्षाप्रद है।
एक शहर में एक महाजन रहता था। उस महाजन के 7 बेटे थे। महाजन की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। महाजन की मृत्यु होने के बाद सातों भाइयों ने आपस में विचार किया कि व्यापार के लिए दूसरे राज्य में उन्हें जाना चाहिए। ऐसा विचार करके छोटा भाई को घर में छोड़कर व्यापार के लिए सातों भाई दूसरे राज्य में निकल पड़े। रास्ते में चलते चलते जहां रात हो जाती वे लोग वही सो जाते। उन्हें जहां कुछ सामान सस्ता मिलता भी खरीद लेते और जहां महंगा होता वहां उस सामान को वे लोग बेच देते। ऐसा करते करते 12 महीने बीत गए,वह साल भर में बहुत सारा धन दौलत कमा कर के बैलगाड़ी से अपने घर की ओर लौट रहे थे। रास्ते में चलते चलते जहां रात हो जाती बस वही सो जाते। इस तरह से को अपने गांव की सीमा में पहुंच गए।
जब मैं अभी गांव की सीमा में पहुंचे तब तक रात हो चुकी थी। बड़े भाई ने कहा- ‘हम यही विश्राम कर लेते हैं’। ऐसा कहते हुए उसने अपने मझेले भाई को घर जाकर के खबर पहुंचाने को कहा। जब मंझेला भाई घर पहुंचा तब उसने देखा कि भद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था और उसके आंगन में करमा नृत्य में सब लीन थे। सातों देवरानी जेठानी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर के गोल घेरे में नाच रही थी। छोटा भाई उनके बीच में झूम झूम कर नाच रहा था और मांदर बजा रहा था। मंझाला भाई भी करमा नृत्य करने में लीन था। उनका नृत्य देख कर के वह भी मोहित हो गया हम उसको करके कमरे से मादर निकालकर के बजाने लगा। इधर बड़ा भाई, मंझले भाई की राह देखते देखते थक गए अपने दूसरे भाई से बोला – ‘जाओ तुम घर जा कर के देखो, मंझाला भाई किधर रह गया है’। जब दूसरा भाई भी घर जा कर के देखता है कि सारे लोग करमा नृत्य में लीन है तो वह भी उनके साथ शामिल हो जाता है। इस तरह करके सभी एक-एक करके बड़े भाई को वहीं छोड़कर के करमा नृत्य में लीन हो जाते हैं।
बड़ा भाई काफी देर तक परेशान रहता है और सोचने लगता है कि घर जाकर के सभी भाई वापस नहीं आए। आखिर क्या बात है? और उसे काफी गुस्सा आने लगता है गुस्सा और क्रोध में बड़ा भाई गाय,बैल और सारा समान वहीं छोड़ करके एक कुल्हाड़ी पकड़कर के घर की ओर दौड़ पड़ता है। बड़ा भाई घर पहुंच करके देखता है कि सब कर्म देवता की सेवा में नाच रहे हैं। यह देख कर के उसे अच्छा नहीं लगा।उसने कुल्हाड़ी से कर्म डाल को काटकर सात टुकड़ा कर दिया। इस घटना को देखकर के सब अपने अपने कमरे में घुस जाते हैं। तब बड़ा भाई बाहर रखे हुए सामान और गाय बैलों को लेने के लिए पहुंचता है। तो उनके स्थान पर केवल वहां पत्थर पड़े हुए मिलते हैं। वह सिर पकड़ कर रोने लगता है और मुंह लटका कर खाली हाथ घर वापस लौट आता है।
इस तरह से दिन बीतने लगते हैं। जब खेती करने का समय आता है तो सभी भाइयों ने अपने हिस्से की जमीन पर खेती करते हैं। छह भाईयों कि खेत की फसल हरी-भरी और लहाने लगती है परंतु बड़े भाई की फसल ना के बराबर होती है। छह भाइयों की खेत की मेड पर उनके कर्म देवता टहल रहे थे। उन्हें देखकर बड़े भाई नेट देते हुए कहा – ‘तू कौन है और इस तरह हमारे खेतों की मेड़ पर क्यों टहल रहा है?’ कर्म देवता बोले – “मैं तुम्हारे भाइयों का क्रम (भाग्य) हूं। तुम मुझे कहां से पा सकेगा रे पापी? तूने तो अपने कर्म के सात टुकड़े कर डाले’ । बड़े भाई को अपनी गलती का एहसास हो गया था वह पछताए करने लगा और कर्म देवता के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। कर्म देवता को उस पर दया आ गई। वह बोले – ‘तुम्हारा कर्म सात समुद्र 16 धार के उस पार है’ । इतना कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए। बड़ा भैया वहां से घर लौट कर के अपने कर्म की तलाश में हाय कर्म, हाय कर्म करते हुए निकल गया।
चलते चलते रास्ते में उसे एक वृद्ध महिला मिली। उस वृद्ध महिला के कूल्हे में एक बड़ा सा पीड़ा चिपका हुआ था। उसने बड़े भाई से पूछा – ‘तुम कौन हो भाई और इस तरह से हाय कर्म, हाय कर्म करते हुए कहां जा रहे हो? बड़ा भाई बोला – ‘मैं एक दुखिया हूं और अपने कर्म देवता के पास जा रहा हूं। वृद्ध महिला बोली – ‘ भैया, कर्म देवता से मेरा दुख को भी आवश्यक बताना। ‘हां, कहकर बड़ा भाई आगे बढ़ गया।
चलते चलते एक गांव में उसे एक और महिला मिली जिसके सिर पर घास उगी हुई थी। उस महिला ने भी बड़े भाई के विषय में जानकारी हाथ जोड़ते हुए कहा कि – ‘भैया,! कर्म देवता से मेरे दुख को भी आवश्यक बताना। जरूर बताऊंगा बहन, कह कर के वह हाय कर्म, हाय कर्म करते हुए आगे अपने रास्ते चलने लगा।
चलते चलते वह अब एक नदी के पास पहुंच गया। उस नदी किनारे एक बेर का पेड़ लाल फलों से लदा हुआ था। उसे जोरों की प्यास भी लगी थी। उसे सोचा कि पहले जी भर के बेर खा लूं, फिर पानी पीकर प्यास बुझा लूंगा। जैसे ही हुआ पेड़ हाथ में लेता है उनमें उसे कीड़े ही कीड़े नजर आते हैं। बाबे रो को फेंक कर पानी पीने के लिए नदी में जाता है जैसे ही पानी को वह अंजुली में भरता है तो पानी उसे लाल लाल खून की तरह दिखाई देता है। वह बिना पानी पिए हाय कर्म, हाय कर्म करते हुए आगे निकल जाता है।
आगे चलते चलते उसे एक और नदी मिलती है। नदी के एक छोर पर एक गाय रंभा रही होती है। नदी के दूसरे छोर में गाय का बछड़ा होता है। वह बछड़े को नदी के इस पार ले आए तो गाय उस पार चली गी।उसने कई बार प्रयास किया है परंतु वह सफल नहीं हो सका। इस प्रकार भूख प्यास से तड़पते हुए वह हाय कर्म, हाय कर्म करते करते आगे की ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।
पैदल चलते चलते उसके कदम अब लड़खड़ाने लगते हैं। वह थक करके एक पेड़ की छाया में बैठ जाता है, तभी उसकी नजर एक घोड़े पर पड़ती है। उसने सोचा कि अब बाकी रास्ता इस घोड़े पर सवार होकर के मैं पूरा कर लूंगा। वह जैसे ही घोड़े के पास पहुंचता है, घोड़ा जोरों से हिना हिना ने लगता है। वह घोड़ा को अपने काबू में नहीं कर सकता। वह समझ चुका था कि उसके साथ जो भी हो रहा है वह कर्म देवता के अपमान के कारण हो रहा है। वह गिरते पड़ते हाय कर्म, हाय कर्म करते हुए जैसे तैसे समुद्र के किनारे पहुंचता है। वहां एक मगर रोगी की भांति रेत में लेटा हुआ था। बड़े भाई ने मगर से कहा – ‘भाई मुझे किसी तरह सात समुंदर 16 धार के पार पहुंचा दो। मैं जीवन भर तुम्हारा उपकार मानूंगा। मगरमच्छ उसके बारे में सब कुछ जान कर बोला, “मेरे सिर में बहुत बड़ा सूजन हो गई है। उसकी पीड़ा मुझसे सही नहीं जा रही है। मुझे पीड़ा से छुटकारा कैसे मिलेगी यह कर्म देवता से पूछ कर बताना इस शर्त पर मैं तुम्हें समुद्र पार कर आऊंगा। बड़े भाई ने कहा- ‘भाई मैं कर्म देवता से सबसे पहले तुम्हारे दुख को ही बताऊंगा’ । तब मगरमच्छ ने उसे सात समुद्र 16 धार के पार पहुंचा दिया ।
बड़ा भाई देखता है कि उसके कर्म देवता कर्म पेड़ के रूप में लहलहा रहे हैं। वह कर्म देवता के चरणों में गिरकर क्षमा मांगता है और कहता है – ‘हे करम देवता! मुझसे बहुत बड़ी अपराध हुआ है। मेरे पापा को क्षमा कीजिए। मैं आपकी शरण में हूं। कर्म देवता बोले – ‘जाओ मैंने तुम्हें माफ किया, परंतु अब से ऐसी गलती मत करना और प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को मुझे आंगन में स्थापित कर व्रत, पूजन करके रातभर मेरी सेवा करना’। बड़ा भाई कर्म देवता से हाथ जोड़कर कहता है, ‘ प्रभु आपने मुझे क्षमा कर के मेरे उद्धार किया है। इसके लिए मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा’ ।
वह वह फिर उनसे पूछता है- ‘हे देवता! आते समय मुझे एक मगरमच्छ मिला जिसके सिर में सूजन है वह दर्द से तड़प रहा है। उसका दुख कैसे दूर होगा? बताने की कृपा करें! । कर्म देवता बोले – ‘ उसके सिर पर एक बहुमूल्य हीरा है। तुम उसके सिर पर मुफ्त एक बार हार करना हीरा बाहर निकल जाएगा जिससे उसका दुख दूर हो जाएगा। हीरे को तुम अपने साथ ले जाना’। बड़ा भाई रास्ते में मिले बेर के पेड़, नदी, गाय बछड़े व घोड़े के बारे में पूछता है। कर्म देवता मुस्कुराते हुए उधर देते हैं कि वह सब मेरे रुष्ट हो जाने के कारण तुम्हारे प्रतिकूल हो गए थे। अबे सब तुम्हारे अनुकूल होंगे। बड़े भाई ने आगे कहा – हे देवता! मार्ग में आते हुए मुझे 2 महिलाएं मिली थी जिनमें से एक के कूल्हे में बड़ा सा पीड़ा चिपका है और दूसरे के सिर पर घास उगी हुई है। कृपया उनके कष्ट निवारण का मार्ग बताने की कृपा करें। कर्म देवता बोले – ‘पहली महिला कभी किसी का सम्मान नहीं करती थी। घर परिवार में अपने से बड़ों के सामने भी सदा ऊंचे आसन पर बैठी है तथा दूसरे महिला अपने सास, ससुर, जैन एवं अन्य बड़े बुजुर्गों के सामने भी अपना सिर नहीं ढकती है। इन्हीं कारणों से उन्हें कष्ट भोगना पड़ रहा है। यदि वे दोनों अपने बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान करना स्वीकार करेंगे तो तुम पीढे को लात मार देना और सिर को स्पर्श कर देना। उन दोनों के दुख दूर हो जाएंगे’। बड़ा भाई कर्म देवता को सादर प्रणाम करके वापस लौटने लगता है।
कर्म देवता द्वारा बताए गए दुखों के निवारण के लिए वह वही करता है जो कर्म देवता ने उससे कहा था। रास्ते में मिले सभी लोगों एवं जीव जंतुओं के दुख दूर हो जाते हैं। इस तरह से बड़ा भाई वापस अपने घर पहुंचे ज्यादा है और प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन व्रत रखकर के विधि पूर्वक पूजन करके कर्म देवता की सेवा करने लगता है। कर्म देवता के आशीर्वाद से उसके सुख भरे दिन वापस लौट आते हैं।
जिस तरह से कर्म देवता उसके लिए प्रसन्न हुए, और दूसरे लोगों के लिए भी प्रसन्न रहे, इसके लिए लोग हर साल प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन करमा उत्साह मनाते हैं।