ऐसे तो आज की दुनिया में हर इंसान अपने पास एक न एक स्मार्टफोन जरूर रखता है। और इस छोटे से कंप्यूटर रूपी स्मार्टफोन को पावर देता है एक लिथियम बैटरी। आज हर हाथ में मोबाइल फोन है और यह फोन आपके हर काम को करने में सक्षम है। आज फोन में आपको शानदार कैमरा, पावरफुल प्रोसेसर, बड़ी स्क्रीन, ज्यादा रैम और बड़ी मेमोरी सेल स्मार्टफोन मिल जाते हैं। लेकिन यह सभी हार्डवेयर तभी काम कर पाएंगे जब तक की फोन की बैटरी चल रही है। सीधी और सपाट शब्दों में कहा जाए तो, किसी भी स्मार्टफोन याद गैजेट की जान बैटरी होती है।
जितना हम अपने स्मार्टफोन के फीचर्स के बारे में बात करते हैं। साथ ही साथ बहुत ही कम लोग हैं जो उसकी बैटरी पावर के बारे में बात करते होंगे। क्या आपने यह सोचा है? अगर यह लिथियम बैटरी नहीं होती तो हमारे हाथों में सुंदर से देखने वाला स्मार्टफोन भी नहीं होता। आज के समय में टॉप गेजेट्स के अंदर आपको ज्यादातर लिथियम बैटरी ही देखने को मिल जाएंगी। इसका इस्तेमाल ज्यादातर गैजेट्स जिसमें इसलिए होता है। क्योंकि, इसे आसानी से रिचार्ज किया जा सकता है। इसकी बैटरी बैकअप भी काफी बढ़िया होती है।
सबसे पहले कमर्शियल लिथियम बैटरी को 1991 में Sony ने पहले कमर्शियल तौर पर इस्तेमाल किया था। इसका इस्तेमाल सबसे पहले सोनी के कैमकॉर्डर में किया गया था।
बैटरी से जुड़ी टेक्नोलॉजी
आज आपको दुनिया भर में बैटरी की कई तरह की रूप मिल जाएंगे। हर एक छोटे बड़े बजट में अलग ही प्रकार का बैटरी का इस्तेमाल होता है। उदाहरण के तौर पर किसी छोटे डिवाइस में छोटी बैटरी का उपयोग होता है। जैसे कि, टॉर्च, चार्जेबल कैमरा, घड़ी और रेडियो सहित कई चीजों के लिए अलग ही प्रकार की बैटरी का उपयोग होता है।
वहीं बड़े उपकरणों के लिए बड़ी बैटरी का प्रयोग किया जाता है। जैसे कि वाहनों में लगा हुआ बैटरी, या फिर आपके घर के इनवर्टर में लगा हुआ बैटरी। इसी तरह छोटे-छोटे उपकरणों और खिलौनों में भी, अलग-अलग तरह की आकार की बैटरी का इस्तेमाल होता है।
बैटरी का इतिहास
सबसे पहले बैटरी का निर्माण 1792 में किया गया था। इसका श्रेय महान भौतिक विद अलेक्जेंडर वोल्टा को दिया जाता है। लगभग 1800 ईस्वी में उन्होंने पहली बैटरी का निर्माण किया था। उनके पहले एक्सपेरिमेंट में उन्होंने लगभग 50 वोल्ट की बैटरी दुनिया के सामने पेश की थी। जोकि इलेक्ट्रोकेमिकल की सीरीज पर तारों को जोड़ करके बनाया गया था। लेकिन यह बैटरी ज्यादा दिनों तक बिजली उत्पादन करने की क्षमता नहीं रखती थी।
साल 1836 में जॉन एफ डेनियल ने एक नए तरह का बैटरी का निर्माण किया। और इस बैटरी का नाम डेनियल सेल रखा गया। डेनियल सेल में जिंक सल्फेट और कॉपर सल्फेट का उपयोग किया गया था। कंफर्ट में या बैटरी कई दिनों तक चल सकता था। 1860 में इस बैटरी को नया रूपांतरण देख कर के इसका उपयोग सबसे पहले टेलिफोनिक के लिए किया गया। 1866 में पहली बार ड्राई सेल का इस्तेमाल कमर्शियल तौर पर किया गया। इस तरह से बैटरी या और भी उन्नत होती गई। आज के समय में जो हम लोग लिथियम बैटरी देखते हैं वह पुरानी बैटरी का ही उन्नत रूप है। 1901 में थॉमस अल्वा एडिसन ने क्षार विशिष्ट आधारित बैटरी पर प्रयोग शुरू किया। इसके बाद बैटरी पर कई नए सारे प्रयोग होते रहे।
Lithium बैटरी का आविष्कार
जहां तक लिथियम बैटरी का सवाल है तो यह दूसरे बैटरी के अविष्कार के बाद अविष्कार हुआ था। उस जमाने में इसे आधुनिक बैटरी भी कहा जाता था। लिथियम बैटरी पर किया गया सबसे पहला एक्सपेरिमेंट एमएस वर्तिंघुम द्वारा देखने को मिला। साल 1970 में उन्होंने बिजली उत्पन्न करने के लिए टाइटेनियम सल्फाइड और लिथियम बैटरी का प्रयोग किया था। यह पहला सफल प्रयोग था।
साल 1980 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जॉन गुडनेफा के साथ मिलकर के उनके सहयोगी ने रिचार्जेबल लिथियम बैट्री बनाया था। इसी के बाद सबसे पहले प्रतिष्ठित मोबाइल और स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनी सोनी ने अपने कैमकॉर्डर के लिए लिथियम बैटरी का प्रयोग किया था।
हमारे अत्याधुनिक गैजेट जैसे कि स्मार्टफोन टेबलेट आदि चीजों में जो बैटरी से माल होती है वह पॉलीमर बैट्री लिथियम होती है। 1997 में सबसे पहली बार इसका इस्तेमाल किसी गैजेट में किया गया था। लिथियम आयन बैटरी रिचार्जेबल बैटरी संखला का ही एक कड़ी है। इसमें मुख्यतः तीन तत्व को मिला करके बनाया जाता है।
नेगेटिव इलेक्ट्रोड, पॉजिटिव इलेक्ट्रोड और इलेक्ट्रोलाइट। लिथियम आयन बैटरी में कार्बन का उपयोग नेगेटिव इलेक्ट्रोड के लिए किया जाता है। जबकि ऑक्साइड का उपयोग पॉजिटिव इलेक्ट्रोड के लिए किया जाता है। वहीं लिथियम का उपयोग सोल्ड इलेक्ट्रोलाइट के लिए किया जाता है। लिथियम बैटरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वोल्टेज की आवश्यकता अनुसार यह संयोग को बड़ा और घटा सकता है।
यही वजह है कि अत्याधुनिक मशीनों और गैजेट में जैसे कि मोबाइल, लैपटॉप ऑल टेबलेट जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में इनका उपयोग किया जाता है।
लिथियम पॉलीमर बैट्री
लिथियम पॉलीमर बैट्री में भी लिथियम का इस्तेमाल आयन के रूप में किया जाता है। इसमें लिथियम के साथ साथ ठोस पॉलिथीन ऑक्साइड का उपयोग भी किया जाता है। लियोन बैटरी के जैसा ही इसे छोटे छोटे पैकेज में बनाया जा सकता है।
आज हम लोग जितने भी बैटरी का इस्तेमाल कर रहे हैं। उसमें यही बैटरी लगा हुआ होता है। जरा आप सोच कर के देखें की लिथियम आयन बैटरी अगर नहीं होता तो हमारे हाथों पर ना तो स्मार्टफोन होता और ना ही इसी तरह की कोई अत्याधुनिक डिवाइस होती । लिथियम आयन बैटरी ने हमारे जीवन को एकदम से बदल कर रख दिया है।
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