मुंडारी ग्रामर के अंतर्गत, कारक जिसे मुंडा में गनलङ भी कहते हैं। हिंदी व्याकरण के अनुसार कारक “वाक्य में प्रयुक्त वह शब्द जिसका क्रिया के साथ प्रत्यक्ष संबंध स्थापित होता है उसे कारक कहते हैं। कारक शब्द ‘कृ’ धातु में ‘अक’ प्रत्यय के जुड़ने से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘करने वाला’ होता है। हिंदी व्याकरण में 8 कारक होते हैं, जिन्हें मूल शब्द से अलग करके कारक विभक्ति या कारक चिह्न के रूप में लिखा जाता है।” इसी तरह से मुंडारी भाषा में भी कारक को 8 भेद में बांटा गया है। हम यहां पर इसकी परिभाषा एवं इनके भेद के बारे में जानकारी लेंगे।
गनलङ ( कारक ) की परिभाषा
मेता च नङमेता रअः नाता उद्म लो : ते उदुब् तन टुङको “ गनलङ ” कजिओ : तना । ( संज्ञा या सर्वनाम के साथ क्रिया का सम्बन्ध सूचित करने वाले शब्दों को ” कारक ” कहते हैं )
गनलङ रेअः हनटिङ ( कारक के भेद )
होड़ो जगर रे गनलङ इरल तअः रे हटिङकना : । हिंदी व्याकरण की तरह ही कारक को मुंडारी व्याकरण में भी 8 भेद में बांटा गया है।
- मूद् गनलङ – कर्ता कारक
- रिनिका गनलङ – कर्म कारक
- सनब् गनलङ – करण कारक
- नङ गनलङ – संप्रदान कारक
- नाता गनलङ – संबंध कारक
- आड़ा गनलङ – अधिकरण कारक
- केनेड़ा गनलङ – संबोधन कारक
- अपद् गनलङ – अपादान कारक
1. मूद गनलङ ( कर्त्ता कारक ) : – बकंड़ा रे उदमनि : ( कर्त्ता ) उदुब्तन टुङ ” मूद् गनलङ ” कजिओ : तना । मूद् गनलङ रअ : चिना “ ए ” तनअ : । ( वाक्य में कर्त्ता को सूचित करने वाले शब्द को ” कर्ता कारक ” कहते हैं । कर्त्ता कारक की विभक्ति चिह्न ” ए ” है ।
उदाहरण
1. सदोमए निराकदा । ( घोड़ा दौड़ रहा है । )
2. हाडाए निराकदा । ( बैल दौड़ रहा है।)
3. हाडामए सेनोओः तना । ( बूढ़ा व्यक्ति जा रहा है।)
ने बकंड़ा रे सदोम ” उदमनि : ” “ ओड़ो : ” ” निर ” उदम तनअ : । नेतअः रे उदमनि : उदुब् तन टुङ चिना “ ए ” तनअः ।
( इस वाक्य में घोड़ा कर्त्ता और ” निर ” क्रिया है इसका बोध करने वाला शब्द “ ए ” है ।
इसी तरह से आप ऊपर रख दिए गए उदाहरण के माध्यम से या देख सकते हैं कि कर्ता के रूप में घोड़ा, बैल और बूढ़ा व्यक्ति है वही, “दौड़” और “जा रहा” क्रिया का बोध कराते हैं। मुंडारी व्याकरण के अंतर्गत इसमें “ए” शब्द क्रिया का बोध कराते हैं।
2. रिनिका गनलङ ( कर्म कारक ) : – बकंड़ा रे उदम रेअ : असर उदुब्तन टुङ रिनिका गनलङ कजिओ : तना । रिनिका गनलङ रअः चिना ” को ” तनअः । ( वाक्य में क्रिया का फल जिस पर पड़ता है , उसे कर्म और उसके बोधक शब्द को कर्म कारक कहते हैं इसकी विभक्ति चिह्न ” को ” है । )
उदाहरण
जैसा कि ऊपर परिभाषित किया गया है कि मुंडारी व्याकरण में रिनिका गनलड का अर्थ कर्म कारक होता है। हिंदी व्याकरण की तरह ही वाक्य में क्रिया का फल जिस पर पड़ता है उसे कर्म और उसके बोधक शब्द को कर्म कारक कहते हैं। चलिए हम इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं।
1. मनिको लेनेआ । ( सरसों को पेरते हैं )
2. उलिको जोमेअ । ( आम को खाते हैं)
ने बकंड़ा रे मनि ” रिनिका ” तनअ : ओड़ो : “ लेन ” उदम । “ लेन ” रेअ : असर मनि रेगे टोगो : तना ओड़ोः नेअ उदुबतन टुङ “ को ” तनअः ।
( इस वाक्य में ” मनि ” कर्म और ” लेन ” क्रिया है । क्रिया का असर ” मनि ” पर पड़ रहा है । इसका बोधक शब्द ” को ” हैं ) इसी तरह से दूसरे उदाहरण में अगर देखा जाए तो, “उलि” कर्म और “जोम” क्रिया के बारे में बतलाता है।
3. सनब् गनलङ ( करण कारक ) : – उद्म रअः सनब् उदुब्तन टुङ सनब् गनलङ कजिओ : तना । सनब् गनलङ रअः चिना ” ते ” तनअ : ।
( क्रिया के साधन को बताने वाला शब्द ” करण कारक ” कहलाता है । इसकी विभक्ति चिह्न ” ते ” है । )
उदाहरण
1. ती ते मंडि को जोमेअ । ( हाथ से भात खाते हैं )
2. मनि ते सुनूम बाईया को । ( सरसों से तेल बनता है)
ऊपर दिया गया है उदाहरण से यह अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि यहां पर क्रिया के साधन बताने वाले शब्द करण कारक कहलाते हैं। एवं मुंडारी व्याकरण में इसे “ते” शब्द से विभक्त किया गया है।
नेतअः रे उदम रेअः सनब् “ ती ” तनअः ओड़ो : “ जोम ” उदम । नेअ रअ : मुंडि उदुब्तन टुङ ” ते ” तनअः ।
( यहाँ पर क्रिया का साधन ” ती ” और ” जोम ” क्रिया है । और इसका बोधक शब्द ” ते ” है ।
4. नङ गनलङ ( सम्प्रदान कारक ) : – ओकोए नङ जांन कमि रिकाओ : तना , ओड़ो : एना रअ : मुंडि ओको टुङ ते नमोः तना , एनागे नङ गनलङ कजिओ : तना । नङ गनलङ रअ : चिना ” नङ / नगेन ” ओड़ो : ” नतिन ” तनअः ।
( जिसके लिए कोई कार्य सम्पादित किया जाता है और इसका बोध जिस शब्द से होता है , उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं । इसकी विभक्ति चिह्न “ नङ/ नगेन ” और “ नतिन ” है ।
उदाहरण
1. होनको नङ जोमेअ : ए इदिजदा । ( वह बच्चों के लिए मिट्ठाइयाँ ले जा रहा है )
2. होनको नगेन लिजाअ : ए इदिजदा । ( वह बच्चों के लिए कपड़े ले जा रहा है)
3. राम ओडोः श्याम नतिन गेंदः ए आउजदा। ( राम और श्याम के लिए गेंद लाया गया)
ऊपर दिए गए संपूर्ण उदाहरण में,
नेतअः रे कमि होनको मेन्ते रिकाओ : तना , ओड़ो : एना रअ : मुंडि ” नङ ” टुंङ ते नमोः तना । ( यहां पर कार्य बच्चों के लिए संपादित हो रहा है और इसका बोधक शब्द “नङ” ।) इसी तरह हमने अन्य दो उदाहरण में “नगेन/नतिन” को भी लिया है।
5. अपद् गनलङ ( अपादान कारक ) :- मेता रअ : बिनगन उदम अपद् ओड़ो : एना रअ : मुंडि ओको टुङ ते नमोः तना , एना अपद् गनलङ कजिओ : तना । अपद् गनलङ रअः चिना ” ते ” ओड़ो : ” आते ” तनअः । ( संज्ञा का एक दूसरे से अलग होने की क्रिया को अपादान और जिस शब्द से इसका बोध होता है , उसे अपादान कारक कहते हैं । अपादान कारक की विभक्ति चिह्न ” ते ” , और ” आते ” हैं । )
उदाहरण
1. दारू आते सकम उयुः तना । ( पेड़ से पत्ता गिर रहा है )
ने वकंड़ा रे ” दारू ” ओड़ो : ” सकम ” मेताकिङ तनअ : ओड़ो : ” उयुः ” बिनगन उदम । नेअ रअः मुंडि उदुब् तन टुङ ” आते ” तनअः ।
( इस वाक्य में ” दारू ” और ” सकम ” संज्ञा है । ” उयुः ” अलग होने की क्रिया है । इसका बोधक शब्द ” आते ” हैं । )
6. आड़ा गनलङ ( अधिकरण कारक ) :- उदम रेअ : आड़ा गे , आड़ा गनलङ कजिओ : तना । नेअ रअः चिना ” रे ” तनअ : । ( क्रिया का आधार ही अधिकरण कारक कहलाता है , इसकी विभक्ति चिह्न ” रे ” है । )
उदाहरण
1. पटि रेए दुबाकना । ( वह चट्टाई पर बैठा है )
ने बकंड़ा रे ” दुब् ” उदम ओड़ो : आड़ा ” पटि ” तनअः । नेअ रअ : मुंडि ” रे ” टुङ ते नमोः तना ।
( इस वाक्य में ” दुब् ” क्रिया और आधार ” पटि ” है , इसका बोध “ रे ” शब्द से मिलता है ।
7. नाता गनलङ ( सम्बन्ध कारक ) :-
मेता रेअ : नाता उदुब् तन टुङको नाता गनलङ कजिओ : तना । नेअ रअ : चिना “ अ : / रअ : / रेन ” तनअ : ।
( संज्ञा के सम्बन्ध का बोध कराने वाले शब्दों को सम्बन्ध कारक कहते हैं । इसको विभक्ति चिह्न अ : / रअ : / रेन है ।
उदाहरण
राजाअ : बंगला = राजा का बंगला
ओड़अः रअः चउलि = घर का चावल
रातू रेन राजा = रातू का राजा
चेतन रेअः बकंड़ाको रे राजा , बंगला , ओड़अः , चउलि , रातू , ओड़ो : राजा सोबेन मेताको तनअः । ने बंकड़ाको रे मेता को रअः नाता उदुब् तन टुङ “ अ : / रअः / रेन ” तनअः । ( ऊपर के वाक्यों में ” राजा ” , बंगला , ओड़अः , चउलि , रातू और राजा संज्ञाएँ हैं इन वाक्यों में सम्बन्ध का बोधक अ : / रअ : / रेन है । )
8. केनेड़ा गनलङ ( सम्बोधन कारक ) :- मेता रेअः ओको मुटन ते रनअः च केनेड़ा रअः मुंडि नमोः तना , एनागे केनेड़ा गनलङ कजिओ : तना । नेअ रअः जेतन मियद् गे चिना बनो : अ । ( संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने या सम्बोधित करने का भाव सूचित होता है । उसे सम्बोधन कारक कहते हैं । इसकी कोई एक निश्चित विभक्ति चिह्न नहीं है । )
उदाहरण
- मिद् जुड़ि कोड़ोको केनेड़ा रे ” हो ” ओड़ो : ” हले ” को मेनेअ । अम हले ! दोलङ होनोर ते ।
- मिद् जुड़ि कुड़िको ” बइ ” , ” गो ” ओड़ो : ” गले ” को मेनेअ । ( अम बइ ! दोलङ सुसुन ते । )
- अपनाते हुपुड़िङ सेपेड़ेद्को ” अम ” , ” अमा ” ओड़ो : ” बबुआ ” को मेताकोअ । अमा सोमा ! मर बिरिझें ।
- अपनाते हुपुड़िङ हमपानुमको “ अमगे ” , “ अमना ” ओड़ो : ” अमना मइ ” को मेता कोअ । अमगे मरियम ! जू ओड़अः तेम ।
- अपनाते हुपुड़िङ कोड़ा होन ओड़ोः कुड़ि होनको ” अम रे ” , ” बाबुरे ” आद् ” मइरे ” को मेताकोअ । अमरे ! दअः रे अलोम इनुङअ ।
- एयङ अबातद् को मेन्ते केनेड़ा रे ” गा ” कजिओ : तना । एयङ गा ! दुब्को : में ।
- मपरङ होड़ोको नगेन ” ए ” ओड़ो : ” ओ ” कजिओ : तना । ए गोमके ! कमि ओमा लेम ।
आपने अपने ब्लॉग पोस्ट में “मुंडाय ग्रामर – गनलङ (कारक)” के विषय पर विस्तृत चर्चा की है, और इसके साथ ही उपयोगी जानकारी प्रस्तुत की है।