साल 2019 में एनपीए के कारण घाटे में चल रही कई बड़ी बैंकों को मर्जर या विलय करके दूसरे बैंकों के साथ मिला दिया गया। NPA शब्द जो लोगों के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है। एनपीए के चलते बड़े बैंकों को अपने लाभ का अधिकतर कब आरबीआई के पास जमा करना पड़ा जिसके चलते बैंक घाटे में जा रहे हैं। कुछ बड़े बैंकों में हुई धोखाधड़ी के कारण उनके बड़े-बड़े लोन एनपीए हो गए, ऐसे में आपके मन में विजय माल्या, ललित मोदी और नीरव मोदी का नाम जरूर जहन में आया होगा। ऐसे में एनपीए क्या है? यह जानना हर सभी को जरूरी है। What is npa in Hindi
What is NPA? एनपीए क्या है?
आइए जानते हैं एनपीए क्या होता है। पिछले कुछ सालों में ऐसे बहुत से ख़बरें आपने भी सुनी होगी जिसमें एनपीए के कारण बहुत बैंक की बैलेंस शीट बनाने की बात कही गई थी।
बैंकों में NPA के कारण होने वाले घोटालों के चलते अब आप भी जानना चाहेंगे कि आखिर यह एनपीए क्या होता है और किस तरह से बैंकों को प्रभावित करता है तो चलिए आज आपको बताते हैं बैंक से जुड़े ऐसे NPA के बारे में।
यह तो आप जानते हैं कि बैंक में निर्धारित समय में ही EMI जमा कराई जाती है लेकिन जब बैंक का कोई देनदार अपनी निर्धारित ईएमआई का भुगतान बैंक को नहीं कर पाता है तो उसका लोन अकाउंट नॉन पर्फोमिंग एसेट यानी कि NPA हो जाता है। एसेट ऐसी चीजें होती है जिसे कभी भी नकदी में बदला जा सकता है उदाहरण के तौर पर आप ऐसे समझे जैसे कोई प्रॉपर्टी, गहने, जमीन या फिर वह किसी तरह का वाहन हो।
बैंक के नियमों के अनुसार किसी लोन की ईएमआई प्रिंसिपल और इंटरेस्ट तय सीमा के अंदर चुकानी होती है और अगर यह राशि ड्यू डेट के 90 दिन के अंदर जमा नहीं कराई जाती तो वह अकाउंट एनपीए में डाल दिया जाता है। इस स्थिति में जब किसी लोन से बैंक को रिटर्न मिलना बंद हो जाता है तो बैंक के लिए इसे एनपीआई बैड लोन कहा जाता है। लोन पर डिफॉल्ट के कारण बैंक को ज्यादा नुकसान ना हो इसके लिए आरबीआई नए प्रोविजन करने का नियम बनाया है और बैंकों प्रोविजन के बराबर रकम बिज़नेस से अलग रखनी पड़ती है।
आरबीआई के बैंकों के ऊपर प्रोविजन का प्रावधान
बैंक द्वारा जब किसी को लोन दिया जाता है तो उसके पहले दिन से ही उस रकम पर आरबीआई द्वारा कुछ निश्चित प्रोविजन रखा गया है। ताकि अगर वह लोन डिफॉल्ट हो जाए या फिर बैड लोन की गिनती में आ जाए तो उससे होने वाले घाटा का बैंकों पर ज्यादा प्रभाव ना पड़े।
इसी चलते लोन को उसके ईएमआई के आधार पर लोन के विभिन्न कैटेगरी में बांटा जाता है, और उसी आधार पर उसके ऊपर आरबीआई द्वारा प्रोविजन किया गया है।
1. स्टैंडर्ड अकाउंट लोन NPA
जब लोन लेने वाले द्वारा लोन कारी पेमेंट बैंक को सही समय पर दिया जाता है तो उसका लोन अकाउंट स्टैंडर्ड कहलाता है। वित्तीय लेनदेन सुरक्षा के लिए आरबीआई के नियमों के अनुसार बैंक को स्टैंडर्ड लोन के लिए भी कुछ प्रोविजन रखना पड़ता है।
आरबीआई द्वारा बनाए गए नियम के अनुसार स्टैंडर्ड लोन अकाउंट पर 0.40 प्रतिशत की दर से राशि का प्रोविजन करना होता है। वही एमएसएमई सेक्टर यानी कि छोटे उद्योगों के लिए यह रकम 0.25% होती है, वही रिटेल सेक्टर के लिए यह बढ़कर के 1% तक होती है।
2. सब्सटेंडर्ड ऐसेट लोन अकाउंट
अगर किसी लोन अकाउंट में 90 दिनों के अंदर कोई भी पेमेंट नहीं होता और वह 12 महीनों तक उसी स्थिति में रहता है तो वह एनपीए हो जाता है तो उस सब स्टैंडर्ड ऐसेट कहते हैं। तो उस सब्सटेंडर्ड ऐसेट पर आरबीआई द्वारा भी कुछ प्रोविजन करनी के लिए 15 परसेंट के बराबर की प्रोविजनिंग करनी पड़ती है जिसमें बैंक उस पर 10% एक्स्ट्रा की प्रोविजनिंग करता है।
3. डाउटफुल ऐसेट NPA
अगर कोई आशिक 12 महीने तक सब्सटेंडर्ड में रहता है तो उसे डाउटफुल एसिड किस श्रेणी में डाल दिया जाता है ऐसे लोड की बकाया राशि की वसूली की गुंजाइश बहुत कम होती है। इसकी प्रोविजनिंग के दौरान यह देखा जाता है कि लोन कितने साल तक डाउटफुल केटेगरी में है अगर कोई लोन 1 साल से अधिक डाउटफुल कैटेगरी पर है। अगर कोई लोन 1 साल तक डाउटफुल रहता है तो उसकी 25% प्रोविजनिंग होगी, 3 साल तक डॉट फुल रहने पर 40 परसेंट और 3 साल के बाद 100% परसेंट प्रोविजनिंग होती है।
4. लोस्स asset
अगर सब्सटेंडर्ड के बाद भी 3 साल से ज्यादा समय तक मैं बैंक का लोन नहीं चुकाया जाता है तो बैंक इससे अनरिकवरेबल करार दे देता है और इसे लो सेट कहा जाता है लेकिन लॉस ऐसेट करार दिए जाने के लिए यह जरूरी है कि इनर और आउटर ऑडिट इसे Loss एसेट के तौर पर प्रमाणित करें।
दूसरे शब्दों में कहें तो जब भी किसी व्यक्ति को बैंक पैसा देती है तो कभी-कभी ऐसा होता है कि लोन लेने वाला इंसान बैंक को सही समय पर रीपेमेंट नहीं कर पाता। फिर बैंक उसे एक नोटिस भेजती है कि तुम अपना देख लो नहीं तो तुम्हारे खिलाफ लीगल एक्शन लिया जा सकता है। इसी के अंतर्गत बैंक द्वारा अपने एनपीए हुए लोन को रिकवर करने के लिए DBT या SARFAESI अधिनियम का सहारा लेना पड़ता है। हम नीचे के अपने इस आर्टिकल में आप लोगों को यह बताएंगे कि यह दोनों अधिनियम क्या है? और इन दोनों अधिनियम की आवश्यकता बैंक को क्यों पड़ी?
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DEBT Recovery Tribunals क्या है?
90 के दशक से पहले तक बैंक को अपने खराब हुए लोन को वापस रिकवर करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, ऐसे में ज्यादातर लोन देने वाले बैंकों की तरफ से कुछ प्रतिक्रिया आई, और जो ज्यादातर बैंक से लोन लेते थे वह उल्टा बैंक के ऊपर में केस ठोक देते थे कि मेरे साथ नाइंसाफी हुई और बैंक ने मुझे सही जानकारी ना उपलब्ध कराते हुए मुझे लोन दे दिया। इसी को ध्यान में रखकर के अपने खराब हुए लोन को वापस बैंक रिकवर कर सके इसके लिए सन 1993 में सरकार ने एनपीए मैटर को डील करने के लिए Debt Recovery Tribunal की स्थापना की। इसकी मदद से अब लेनदार सिविल कोर्ट में अपील नहीं कर सकते उनके जितने भी Case अब डेबिट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) के माध्यम से ही स्वीकार किए जाएंगे। NPA
अधिनियम के आने के बाद भले ही बैंकों को काफी सुविधा हुई हो लेकिन आज भी देखा जाए तो DRT के अंतर्गत 75000 से भी ज्यादा केस पेंडिंग पड़े हैं। 2002 में भारत सरकार द्वारा एक नया अधिनियम लाया गया जिसका नाम था SARFAESI ACT आइए जानते हैं इसके बारे में।
SARFAESI ACT क्या है?
SARFAESI Act में SARFAESI का फुल फॉर्म होता है Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act,
आइए इसको को एक उदाहरण द्वारा समझते हैं, कि किस तरह से बैंक सरफेसी एक्ट के जरिए आपके लिए गए लोन से वसूली कर सकता है।
उदाहरण
मान लीजिए कि मोहन नाम के किसी बंदे को 10000000 रुपए की जरूरत एक नई फैक्ट्री लगाने के लिए है। तो मोहन कहां-कहां से पैसे इसके लिए इकट्ठा कर सकता है यानी कि मोहन कौन से स्रोतों से पैसे इकट्ठा कर सकता है।
● Equity (IPO-Share) इसके तहत मोहन खुद अपने पैसे मान लेते हैं 2000000 रुपए लगाता है, और बाकी पैसों के लिए IPO (initial public offering) या share के माध्यम से 3000000 रूपए और इकट्ठे करता है। अब यानी कि 10000000 रुपए में से उसने 5000000 रुपए इकट्ठे कर लिए हैं। या पैसा पब्लिक का और उसका हो सकता है।
● Debt Loan, Bond अब बाकी बचे हुए 5000000 जमा करने के लिए वह बैंक से लोन लेता है तो इसे यूं हम समझते हैं, माना कि उसने बैंक से ₹4000000 का लोन लिया, साथ में Bond के माध्यम से उसने 1000000 रुपए और जमा की है।
मोहन के पास अब अपनी नई फैक्ट्री लगाने के लिए 10000000 रुपए मिल गया है। शुरुआत में मोहन भाई साहब की कंपनी बहुत बढ़िया से चल रही थी और वह काफी अच्छी प्रॉफिट भी कमा रहा था, लेकिन अचानक मोहन को अब अपनी कंपनी से घाटा होने लगा और वह बैंक का Repayment चुकाने में भी असमर्थ होने लगा। www.iob.in ने उसे नोटिस भी भेजा लेकिन इसके बावजूद मोहन बैंक की ईएमआई चुकाने में असमर्थ था। ऐसे तो ऊपर दिए गए उदाहरण में हमने आप लोगों को यह बताया है कि मोहन ने बैंक से ₹4000000 लोन के तौर पर लिए, और मोहन उसका ईएमआई बनने में असमर्थ है। ऐसे में बैंक उसके 4000000 रुपए को NPA घोषित कर देगा। ऐसी स्थिति में बैंक मोहन से अपनी बकाया रकम को Recover करने के लिए एक्शन लेगी, जोकि SARFAESI Act के अंतर्गत आने वाली चीजों से रिकवर किया जाएगा।
SARFAESI Act के अंतर्गत बैंक अपने लोन की रिकवरी किस तरह से करेगी?
जब कोई बड़ा लोन जैसे कि हमने ऊपर उदाहरण में बताया है कि मोहन ने बैंक से ₹4000000 का लोन लिया एक नई फैक्ट्री लगाने के लिए, लेकिन मोहन बैंक का ईएमआई भरने में असमर्थ है। उसका ₹4000000 का लोन एनपीए हो चुका है। ऐसे में बैंक अपने लोन की रिकवरी किस तरह से करेगी, इसके लिए सरफैसी एक्ट के अंतर्गत निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं।
1. मोहन के असेट्स assets (Commercial, residential, fixed or Moving) को बैंक बिना कोर्ट के ऑर्डर की बिना जोत कर सकती है।
2. उसके assets को Auction/Sale यानी कि नीलामी कर सकती है या बेच सकती है।
3. अगर मोहन ने किसी तीसरे इंसान को अपने assets पहले से ही बेच दिया है तो बैंक तीसरे इंसान से वह सारे assets वापस ले सकती है।
4. अगर किसी तीसरे इंसान के पास मोहन के पैसे हैं तो बैंक उन पैसों को भी वापस ले सकती है।
ऐसे तो SARFAESI Act के अंतर्गत ₹1000000 तक का मामला ही निपटारा किया जाता है, साथ में इस अधिनियम के अंतर्गत उन परिसंपत्तियों पर भी लागू होती है जो लोन देने के वक्त गिरवी या सुरक्षित रखी गई हो। अगर मोहन ने बैंक से बिजनेस लोन लिया है तो बैंक उसे अपने कारखाने, मशीनें, वाहन, भूमि आदि को बंधक के रूप में (mortgage) के रूप में रखने को कहता है। इस नियम के अंतर्गत बैंक मोहन के निजी घर, फर्नीचर, महंगे सामान, agricultural land कृषि योग्य भूमि, आदि को सरफेसी एक्ट के अंतर्गत शामिल नहीं कर सकता। और ना ही बैंक इन सारी चीजों को नीलामी या बेच सकती है।
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