आदिवासी नेता, एवं झारखंड की पूर्व राज्यपाल के नाम से जाने जाने वाली द्रौपदी मुर्मू को हाल ही में भारतीय जनता पार्टी द्वारा भारत के अगले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर चुना गया है। आज के हमारे इस लेख में हम द्रोपदी मुर्मू के जीवन परिचय [ जाति, जीवनी, उनका राजनीतिक जीवन, पति, संपत्ति, उनके बेटी बेटा, आर एस एस, शिक्षा, जन्म तारीख, पैशा, धर्म, पार्टी, उनको मिले पुरस्कार एवं सम्मान] इत्यादि चीजों के बारे में चर्चा करने वाले हैं। द्रोपदी मुर्मू कौन है? Biography of Draupadi Murmu Hindi
द्रोपदी मुर्मू कौन है? Biography of Draupadi Murmu Hindi
द्रोपदी मुर्मू एक आदिवासी नेता एवं राजनीतिक तौर पर जानी जाती है। इनका संबंध आदिवासी समुदाय से है। उड़ीसा राज्य से द्रोपदी मुर्मू तालुकात लगती है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा भारत के अगले राष्ट्रपति के पद के उम्मीदवार के तौर पर द्रोपदी मुर्मू को चुना गया है। इस वजह से इंटरनेट की दुनिया में इनके बारे में हर कोई जानना चाहता है। आज हम अपने इस लेख में द्रोपदी मुर्मू के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले हैं।
द्रोपदी मुर्मू का आरंभिक जीवन
द्रोपदी मुर्मू का पालन पोषण उनके दादा ने किया है। उनके दादा अपने गांव के सरपंच हुआ करते थे। द्रौपदी मुर्मू ने अपनी आरंभिक शिक्षा निजी स्कूल से प्राप्त की है। इसके बाद वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उड़ीसा स्थित राम देवी महिला कॉलेज भुवनेश्वर में उन्होंने दाखिला लिया। जहां से उन्होंने कला स्नातक में डिग्री ली है। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद ही उनकी शादी श्याम चरण मुर्मू से कर दिया गया।
शादी के बाद द्रौपदी मुर्मू का परिवार काफी खुशहाल था। उनकी तीन संताने हुए, जिनमें दो बेटे एवं एक बेटी इति श्री है। लेकिन, दुर्भाग्यवश उनके पति श्री श्याम चरण मुर्मू की मृत्यु हो गई। द्रोपदी मुर्मू श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन में मानव सहायकों परिसर के रूप में उन्होंने काम करना शुरू किया और इसी के साथ ही अनुसंधान, रायरंगपुर और फिर उड़ीसा के सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में भी उन्होंने काम किया है।
संक्षिप्त जीवन परिचय
राजनीति में आने से पहले, द्रौपदी मुर्मू ने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की है। इसके बाद उन्होंने उड़ीसा की राजनीति में प्रवेश किया। द्रोपदी मुर्मू भाजपा के टिकट पर मयूरभंज के रायरंगपुर से दो बार वर्ष 2000 और वर्ष 2009 में विधायक रह चुकी है। उन्होंने आपके पूरे राजनीतिक जीवन में एक पार्टी के भीतर कई प्रमुख पदों पर कार्य किया है। द्रोपदी मुर्मू साल 2013 से 2015 तक भगवा पार्टी की एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुकी है। उन्होंने साल 1997 में पार्षद के रूप में चुनाव जीत कर के अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उसी वर्ष उन्होंने भाजपा के एससी मोर्चा का राज्य का उपाध्यक्ष जी चुन लिया गया था।
द्रोपदी मुर्मू का राजनीतिक जीवन
द्रोपदी मुर्मू ने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी। इसके बाद वे वर्ष 1997 में भाजपा से जुड़ गई। यह उनका राजनीतिक जीवन में प्रवेश माना जाता है। यह उड़ीसा में भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार के दौरान वहां 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक वाणिज्य और परिवहन मंत्री स्वतंत्र प्रभार इन्होंने संभाला था। इसके बाद 6 अगस्त 2002 से 16 मई 2004 तक मछली पालन और विकास राज्यमंत्री रही। साल 2002 से 2009 तक भाजपा के एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रही। 2006 से 2009 तक भाजपा के एसटी मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष रही।
साल 2013 से अप्रैल 2015 तक इन्होंने यह कार्यभार संभाला। इसी दौरान उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। 2015 से 2021 तक वह झारखंड की माननीय राज्यपाल रही है। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू झारखंड की नववी राज्यपाल राज्य की है इतना ही नहीं द्रोपदी मुर्मू वर्ष 2000 से लेकर के गठबंधन के 5 सालों तक पूरा करने वाली झारखंड की पहली राज्यपाल भी है।
द्रोपदी मुर्मू के एक नए यात्रा की शुरुआत 21 जून 2022 को ही जब भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन एनडीए की तरफ से उन्हें देश के अगले राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित किया गया। अगर इस बार वो राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होती है तो वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनेगी।
द्रोपदी मुर्मू को मिले पुरस्कार एवं सम्मान
द्रोपदी मुर्मू को वर्ष 2007 में सर्वश्रेष्ठ विधायक के तौर पर नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। द्रोपदी मुर्मू का कार्यकाल विधायक के तौर पर काफी सम्मानीय रहा है। जिसके लिए उन्हें उड़ीसा की राजनीति में काफी सम्मान भी प्राप्त है।
द्रोपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को भाजपा एनडीए गठबंधन की संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर 21 जून 2022 को देश के 16 राष्ट्रपति के चुनाव के लिए नामांकित किया गया है। इस संबंध में भारत के प्रधानमंत्री कहते हैं कि द्रोपदी मुर्मू ने अपना संपूर्ण जीवन समाज की सेवा के लिए समर्पित किया है। द्रौपदी मुरमू का राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के बाद लोग इनके बारे में जानना चाहते हैं। अभी तक काफी लोग द्रोपदी मुर्मू के बारे में नहीं जानते हैं परंतु हाल ही में चार-पांच दिनों से यह काफी चर्चा में रही है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में इनका नाम लगभग पक्का है। द्रौपदी मुरमू इससे पहले झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी है।
अगर द्रोपदी मुर्मू भारत की राष्ट्रपति बनने में कामयाब हो जाती है तो वह पहली ऐसी आदिवासी महिला होंगी जो भारत की राष्ट्रपति बनेगी। इसके साथ ही वह दूसरी ऐसी महिला बनेगी जिन्होंने राष्ट्रपति पद की गद्दी संभाली हो। इससे पहले भारत देश के राष्ट्रपति पद पर महिला के तौर पर प्रतिभा पाटिल विराजमान हो चुकी है।
झारखंड के माननीय राज्यपाल के तौर पर द्रोपदी मुर्मू
द्रोपदी मुर्मू झारखंड के राज्यपाल के तौर पर 2015 से 2022 तक रह चुकी है। द्रोपदी मुर्मू झारखंड के पूर्व राज्यपाल और अब एनडीए की राष्ट्रीय उम्मीदवार व शख्सियत है, जिन्होंने सत्ता और विपक्ष के बीच हमेशा संतुलन को बनाए रखने का काम किया है।
झारखंड की राज्यपाल रहते हुए द्रोपदी मुर्मू अपने आप को विवादों से दूर रखी है। राज भवन पर हमेशा केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन की सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप लगता रहा है लेकिन इसके बावजूद द्रोपदी मुर्मू ने इस तरह के विवादों से अपने आप को दूर रखा। झारखंड राज्य में संवैधानिक प्रमुख के रूप में उन्होंने पक्ष एवं विपक्ष दोनों की नेताओं की बात सुनी है, उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने पक्ष एवं विपक्ष दोनों नेताओं की बात सुनने के साथ-साथ उनके कार्यालय में राज भवन का द्वार हर संगठन के लिए खुला रहा है। आदिवासी हितों के मद्देनजर द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल रहते हुए बीजेपी की पूर्वोत्तर रघुवर दास की सरकार और वर्तमान झारखंड मुक्ति मोर्चा की मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार को नसीहत देने का काम भी किया है।
द्रोपदी मुर्मू से जुड़े विवाद
द्रोपदी मुर्मू झारखंड के राज्यपाल रहते हुए उस दौरान काफी विवादों में आ गई थी जब उन्होंने सीएनटी एसपीटी संशोधन विधेयक को पास किया था। बाद में सीएनटी एसपीटी विधेयक को वापस भी ले लिया गया। आदिवासी हितों की रक्षा एवं उसे संरक्षित करने वाले दो महत्वपूर्ण कानून छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (SPT) मैं संशोधन की कोशिश और विपक्षी सदस्यों के भारी हंगामे के बीच 21 नवंबर 2016 को इसे विधानसभा से पारित कराने के बाद राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू के पास भेजा गया था। इस दौरान द्रौपदी के ऊपर कई सारे आरोप लगाए गए। कि वह केंद्र द्वारा कठपुतली का कार्य कर रही है। इस तरह से वह काफी विवादों में आ गई थी।
आदिवासी हितों को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू ने करीब 7 महीने तक विचार करने के बाद 26 जून 2016 को इस विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य सरकार को वापस भेज दिया। इस सीएनटी एसपीटी संशोधन विधेयक में जमीन मालिक को अपनी भूमि में परिवर्तन का अधिकार मिलने की बात कही गई थी। इसमें प्रावधान था कि कृषि के अलावा वे अपनी जमीन का उपयोग व्यवसायिक कार्यो के लिए भी कर सकते हैं। इस चलते द्रौपदी मुर्मू उस दौरान काफी विवादों में रही थी।
टीएससी गठबंधन के मुद्दे को लेकर विवाद
साल 2019 में राज्य में वर्तमान हेमंत सोरेन की सरकार के नेतृत्व में सरकार गठन के बाद ट्राईबल एडवाइजरी काउंसिल का गठन किया गया। जिसमें राजपाल की शक्तियों को कम कर दिया गया था जिसके बाद राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू कानूनी सलाह ले रही थी। लेकिन, उनका कार्यकाल खत्म हो गया। इसे भी ले कर के वह विवादों में थी। इसके बावजूद उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इसे लेकर के आवश्यक नसीहत दी थी और स्पष्ट किया था कि संविधान में जो व्यवस्था की गई है उसे सब को मानना चाहिए और उसी के अनुरूप काम करना चाहिए।
आर्टिकल 44 में आदिवासी हितों की रक्षा के लिए गवर्नर के पास पूरी शक्ति है। लेकिन, राज सरकार ने अपने स्तर से ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल का गठन कर दिया गया उन्होंने अपने मत से वर्तमान राज्यपाल रमेश बैस को अवगत करा दिया और बाद में राजपाल रमेश बैस ने टीएससी गठन की फाइल को राज्य सरकार को वापस कर दिया। हेमंत सरकार ने जो नए नियम वाली बनाई है उसके अंतर्गत काउंसिल में कम से कम 2 सदस्यों को नामांकित करने का राज्यपाल के विशेष अधिकार को समाप्त कर दिया। जिस चलते तकरीबन सभी अधिकार मुख्यमंत्री के हाथ आ गए थे इस कारण राज्यपाल ने इस नियम वाली को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।