Is A Falling Star Really A Star? क्या एक टूटता तारा सच में एक तारा होता है? यह काफी दिलचस्प सवाल है हमसे बहुत से लोग रात में टूटते हुए तारे को देखते हैं और कुछ मनोकामनाएं मांगते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी गौर किया है कि क्या वास्तव में टूटता हुआ तारा क्या तारा होता है? आज के हमारे इस लेख में हम इसी बारे में बात करने वाले हैं। रात में आकाश में बिकने वाला टूटता तारा क्या वाकई में तारा होता है?
रात में जब भी हम आकाश की तरफ देखते हैं तो हमें कई सारे टिमटिमाते तारे नजर आते हैं। जो रात की सुंदरता को और भी बढ़ा देते हैं। टूटते हुए तारे को देखते हुए हमारे मन में कई सारे सवाल भी आते हैं। जैसे इस बड़े से ब्रह्मांड में हम एक छोटे से ग्रह में रहते हैं। इस आकाशगंगा में कितने सारे ग्रह और तारे मौजूद हैं। इसी तरह क्या एक टूटता तारा वाकई में क्या तारा होता है?
इस विशाल सी दुनिया में तब हम यह सवाल खड़ा करते हैं कि क्या वाकई में हम इस छोटी सी दुनिया में रहते हैं? लेकिन एक और बात यह है कि, जब भी हम रात में टूटा हुआ तारा देखते हैं तो मान्यताओं के हिसाब से हम उससे कुछ मनोकामनाएं तो जरूर मांगते हैं। बहुत ही संस्कृतियों में टूटता तारा देखना शुभ माना जाता है।
दुनिया भर में बहुत ही संस्कृति या है जैसे कि जापान में टूटता हुआ तारा देखना शुभ माना जाता है। वही, भारत में भी टूटता हुआ तारा देखना शुभ संकेत का प्रतीक है। लोग टूटे हुए तारे को देखते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है? Is A Falling Star Really A Star? क्या एक टूटता तारा सच में एक तारा होता है?
Is A Falling Star Really A Star? क्या एक टूटता तारा सच में एक तारा होता है?
” एक गिरता हुआ या टूटता हुआ तारा अपने नाम के विपरीत वास्तव में तारा नहीं होता है, बल्कि अंतरिक्ष की धूल या चट्टान का एक टुकड़ा है जिसे उल्का पिंड कहा जाता है।”
जब भी रात में आप आकाश की तरफ देखते हैं तो आपको लाखों आकाशीय पिंड नजर आते हैं। जिनमें से सबसे प्रचुर मात्रा में आपको आकाश में तारे नजर आते हैं। जब हम ऊपर आकाश की ओर देखते हैं और अंधकार दिखाई देता है तो हमें चमचमाते धब्बों के साथ कई सारे तारे नजर आते हैं।
यह चमचमाते तारे हमें भले ही स्पष्ट रूप से ना दिखाई देते हो। यह तारे हमें टिमटिमाते नजर आते हैं। लेकिन, जब इन तारों को आप दूरबीन की मदद से देखेंगे तो आपको एक तारे और एक ग्रह में अंतर साफ तौर पर नजर आएगा।
धरती पर हर एक इंसान अंतरिक्ष में मौजूद सभी विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को नहीं जानता है। इसी वजह से अंतरिक्ष से दिखने वाली किसी भी चीज जिस से धरती तक रोशनी पहुंचती है उसे हम तारा मान लेते हैं। इसी वजह से धरती से दिखने वाली किसी भी चीज को जो की चमकीली या रात में चमकती है उसे हम तारा मान लेते हैं।
एक तारा देश का एक विशाल और बड़ा गोला होता है जो परमाणु संलयन से जलता है और प्रकाश देता है। सितारों का अपना प्रकाश होता है इसलिए वह रात के आकाश में चमकते हैं। वही, ग्रह का अपना कोई प्रकाश नहीं होता लेकिन सूर्य के प्रकाश को रिफ्लेक्ट करते हुए वह धरती की तरह चमकते हैं।
अब यदि तारे गैस के बड़े गोले होते हैं तो वह कैसे गिरते हैं और इस प्रक्रिया में अगर वह गिरते भी है तो वह हमारी धरती को क्यों नष्ट नहीं कर देते? इस तरह का सवाल भी आपके मन में जरूर आ रहा होगा।
खैर, धरती से जो गिरता हुआ तारा हम देखते हैं असल में वह गिरता हुआ तारा वास्तव में नहीं होता है। एक तारा कोई कारण से नहीं गिरता है। हम आपको यह बता दें कि हमारे सबसे नजदीक का तारा सूर्य है। जो निश्चित रूप से कभी नहीं गिरता है और दूसरी बात यदि आप में कोई तारा भी हो तो भी पृथ्वी के पास इतनी गुरदास क्षमता नहीं है कि वह इसे गिरा सके क्योंकि एक तारा पृथ्वी से हजारों लाखों गुना बड़ा होता है।
गिरता हुआ तारा क्या होता है?
जैसा कि पहले ही हमने आपको इस बारे में जानकारी दे दिए हैं कि हम तो धरती से गिरता हुआ तारा देखते हैं असल में वह तारा नहीं होता है। हम इंसानों को अंतरिक्ष में हर चमकदार चीज को तारा कहने की आदत है, लेकिन अगर यह सच नहीं है तो वह कौन सी चीज है जिसे हम कभी-कभी आकाश में गिरते हुए देखते हैं?
अंतरिक्ष छोटी-छोटी वस्तुओं से भरा पड़ा है। जैसे चट्टाने और धूल कन पिंड इत्यादि। यह चट्टाने और धूल धूमकेतु, छुद्र ग्रह या अन्य बड़ी वस्तुओं से आ सकती है। जो अंतरिक्ष में लगातार घूमते रहते हैं। इस प्रक्रिया में अपना द्रव्यमान खो देते हैं। कभी-कभी यह छोटी चट्टानें भी धातु से बनी होती है।
इन अंतरिक्ष चट्टानों या धूल को उल्का पिंड कहा जाता है। हमारे सौरमंडल के खाली अस्थान के चारों और हजारों उल्का पिंड हमेशा घूमते रहते हैं।
जब यह उल्का पिंड पृथ्वी के बहुत करीब पहुंच जाते हैं, तो वे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से आकर्षित हो जाते हैं और इस तरह जमीन पर गिरने लगते हैं। जब पृथ्वी के चारों ओर के वातावरण से गुजरते हैं तो वायुमंडल में घर्षण उत्पन्न होता है। इन उल्का पिंडों का तापमान इतना बढ़ जाता है कि वे जल उठते हैं और अपने पीछे एक पूछ खींचकर चमकने लगते हैं। जिसे कई बार पूछलतारा भी कहा जाता है।
जलती हुई पूछ वाला यह उल्कापिंड का है जिसे हम “Shooting Star” या गिरता हुआ तारा कहते हैं। लेकिन, वैज्ञानिक तौर पर हम इसे उल्का पिंड के रूप में जानते हैं। जब यह उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो लगभग 60 किलोमीटर प्रति सेकंड यानी कि 37 मील प्रति सेकंड की गति से गिरती है। इतनी तेज गति से गिरने की वजह से इन छोटे टुकड़ों में वायुमंडल में काफी ज्यादा घर्षण उत्पन्न हो जाता है। जिस वजह से यह छोटे उल्का जल उठते हैं और हमें तारों की तरह दिखाई देते हैं।
क्योंकि, यह गिरते हुए उल्कापिंड इतनी तेज गति से आगे बढ़ रहे होते हैं कि यह जल उठते हैं और इससे पहले कि वह पृथ्वी की सतह से टकराते हैं वह पूरी तरह से जल जाते हैं। उनका कोई नामोनिशान नहीं रह जाता है। कुछ उल्का पिंड बड़े होते हैं और घर्षण के बाद भी धरती पर सुरक्षित रूप से गिर जाते हैं। लेकिन वायुमंडल में घर्षण के कारण इनकी आकार भी काफी छोटी हो जाती है। अंतरिक्ष में इन छोटे चट्टानों को उल्का पिंड के रूप में जाना जाता है।
उल्का पिंड की सुंदर बौछार
यह उल्कापिंड आम तौर पर अलग अलग नहीं गिरते हैं। बहुत ही कम ऐसे उल्कापिंड होते हैं जो कि अपने रास्ते से भटक करके धरती के गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती के वायुमंडल में आ जाते हैं। लेकिन, ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि एक साथ कई सारे उल्कापिंड धरती के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं।
यदि आप सही समय पर सही जगह पर हैं तो आप या देख सकते हैं और सैकड़ों एक-एक करके कई सारे गिरते हुए तारे आपको आसमान में नजर आएंगे। उल्का पिंड की या लगातार बारिश उल्का पिंड बौछार के रूप में जाना जाता है।
उल्का पिंड का बौछार आमतौर पर तब होती है जब कोई धूमकेतु हमारे वायुमंडल से बहुत करीब से गुजरता है। इसलिए इस की धूल पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाती है जिसमें प्रकाश की एक सुंदर बौछार के साथ हमें कई सारे टूटते हुए तारे गिरते हुए नजर आते हैं।
यह उल्का बौछार की घटनाएं पूरे वर्ष होती है और उन नक्षत्रों के नाम पर रखी जाती है जिनसे वे उत्पन्न होते प्रतीत होते हैं। ध्यान रखें कि यह उल्का वर्षा या बौछार उन नक्षत्रों से नहीं आते हैं। वह रात के आकाश में उस विशेष भाग से आते हुए प्रतीत होते हैं।
जैसे कि उदाहरण के तौर पर, ओरियन तारामंडल के क्षेत्र से आने वाली एक प्रसिद्ध उनका बौछार को ओरियनिड्स के नाम से प्रसिद्ध है। यह उल्का की बौछार हर साल 16 से 27 अक्टूबर के बीच होता है।