झारखंड में सरना संहिता: आदिवासी जनजातियों पर प्रभाव और उनके सांस्कृतिक अधिकारों का संरक्षण
झारखंड राज्य, जिसे भारत का आदिवासी हृदयस्थल कहा जाता है, यहाँ की आदिवासी जनजातियाँ अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं, और धार्मिक मान्यताओं के लिए जानी जाती हैं। इन आदिवासियों का मुख्य धर्म प्रकृति की पूजा है, जिसे “सरना धर्म” कहा जाता है। यह धर्म पर्यावरण संरक्षण, सामुदायिक एकता और प्राकृतिक संतुलन पर आधारित है।
हाल के वर्षों में, झारखंड की सरकार और आदिवासी संगठनों ने “सरना संहिता” को लागू करने की मांग की है। यह एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करना है।
सरना संहिता क्या है?
सरना संहिता एक कानूनी और संवैधानिक ढांचा है, जो सरना धर्म को एक अलग धर्म के रूप में मान्यता देने की दिशा में काम करती है। भारत की जनगणना में आदिवासियों को आमतौर पर हिंदू, ईसाई या अन्य धर्मों में वर्गीकृत किया जाता है, जो उनके विशिष्ट धार्मिक पहचान को कमजोर करता है।
सरना संहिता का उद्देश्य:
- सरना धर्म को मान्यता: यह संहिता आदिवासी समाज को उनके धर्म को जनगणना और सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज कराने का अधिकार देगी।
- सांस्कृतिक संरक्षण: सरना स्थल (पूजा स्थल) और धार्मिक परंपराओं की रक्षा सुनिश्चित की जाएगी।
- सामाजिक न्याय: आदिवासियों को उनकी भूमि, जंगल और जल संसाधनों पर अधिकार दिलाने में मदद।
- धर्मांतरण की समस्या का समाधान: धर्मांतरण के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए एक ठोस कदम।
सरना संहिता का आदिवासी जनजातियों पर प्रभाव
- धार्मिक पहचान की रक्षा
सरना धर्म को कानूनी मान्यता मिलने से आदिवासियों को अपनी धार्मिक पहचान पर गर्व होगा। यह उनकी सांस्कृतिक एकता को भी बढ़ावा देगा। - आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
सरना स्थल, जो आदिवासी समाज के लिए पवित्र होते हैं, उनका संरक्षण सुनिश्चित होगा। इसके साथ ही, आदिवासी त्योहारों और परंपराओं को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे पर्यटन और सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। - राजनीतिक प्रतिनिधित्व
सरना धर्म की मान्यता आदिवासियों की राजनीतिक भागीदारी को मजबूत करेगी, क्योंकि वे अपनी आवश्यकताओं को अधिक प्रभावी ढंग से व्यक्त कर पाएंगे। - धर्मांतरण पर नियंत्रण
सरना संहिता धर्मांतरण की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करेगी। आदिवासी समुदाय अपने धर्म के प्रति अधिक जागरूक और समर्पित हो सकेंगे। - आदिवासी युवाओं पर प्रभाव
सरना धर्म को मान्यता मिलने से युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति से जुड़ाव महसूस करेगी। यह उन्हें पश्चिमी या अन्य प्रभावों से भटकने से बचाएगा।
सरना संहिता के सामने चुनौतियाँ
- राजनीतिक असहमति
कई राजनीतिक दल सरना धर्म को मान्यता देने के मुद्दे पर सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार, यह विभाजनकारी हो सकता है। - प्रशासनिक और कानूनी अड़चनें
सरना संहिता लागू करना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कानूनी और प्रशासनिक बाधाएँ शामिल हैं। - आधुनिकरण का प्रभाव
आधुनिक समाज में आदिवासी युवाओं का शहरीकरण और संस्कृति से दूर होना एक बड़ी चुनौती है। - धर्मांतरण लॉबियों का विरोध
कुछ धार्मिक संस्थाएँ और संगठन सरना धर्म की मान्यता का विरोध कर सकते हैं।
समाप्ति: आदिवासियों के अधिकारों की ओर एक कदम
सरना संहिता का लागू होना झारखंड और भारत के आदिवासी समाज के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है। यह न केवल उनकी धार्मिक पहचान और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करेगा, बल्कि उन्हें सामाजिक और आर्थिक विकास के पथ पर भी ले जाएगा।
सरना धर्म प्रकृति के प्रति सम्मान और सह-अस्तित्व की भावना को दर्शाता है। इसे संरक्षित करना केवल आदिवासियों का ही नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज का दायित्व है। झारखंड सरकार और समाज के अन्य हिस्सों को इस दिशा में मिलकर काम करने की आवश्यकता है, ताकि आदिवासी समाज का भविष्य उज्ज्वल और सम्मानजनक हो सके।