रंगों के बारे में हमारी यह धारणा है, कि हम जो भी रंग दिखते हैं वह हमारी आंखों के ऊपर निर्भर करता है। और सब उन्हीं रंगों का उपयोग भी अपने जीवन में करते हैं। इसलिए हर एक व्यक्ति की रंग को ले करके अपनी अलग-अलग धारणा हो सकती है। जैसे कि किसी को हरा रंग पसंद है, तो किसी को नीला। यह के अपनी पसंद पर निर्भर करता है। हम जितने भी रन इस्तेमाल करते हैं उसमें से अधिकांश कृतिम या रासायनिक रूप से तैयार किए जाते हैं। एक समय ऐसा भी था जब हमारे पास डाई तैयार करने के लिए प्राकृतिक स्रोतों से हम रंग के पिगमेंट निकालने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। जिससे कि हम उसे अपने दैनिक जीवन में कभी भी इस्तेमाल कर सकें। हालांकि, और इसके अलावा रंगों को ले करके हमारी कई पौराणिक धारणाएं भी थी। जैसे नीले रंग को सबसे निम्न वर्ग का रंग माना जाता रहा है। वही बैगनी रंगो रॉयल्टी से जुड़ा हुआ माना जाता था? आज के हमारे इस लेख में हम आप लोगों को 10 Intresting fact about Colours – रंगों से जुड़े 10 रोचक तथ्य के बारे में बताने वाले हैं।
10 Intresting fact about Colours – रंगों से जुड़े 10 रोचक तथ्य
1 . हावर्ड विश्वविद्यालय की रंगों की लाइब्रेरी
हावर्ड विश्वविद्यालय में एक पिगमेंट लाइब्रेरी है। जहां दुर्लभ रंगों के कई स्रोत देखने को मिलते हैं। इनमें से कुछ स्रोत मित्र की मम्मीयो, जहरीली धातुओं और अब तक विलुप्त हो चुके कीड़े मकोड़ों के गोलों से बनाया गया है। इस पिगमेंट्स लाइब्रेरी में 2500 से भी अधिक रंगों के नमूने रखे गए हैं।
एडवर्ड फोर्ब्स वर्ष 1909 से लेकर के वर्ष 1944 तक हावर्ड विश्वविद्यालय में फोक आर्ट म्यूजियम के इतिहासकार और निदेशक थे। उन्होंने शास्त्रीय इतालवी चित्रों को प्रमाणित करने के लिए रंगों के पिगमेंट इकट्ठा करने के लिए दुनिया भर की यात्रा की है। उनका संग्रह धीरे-धीरे उनके मूल, उत्पादन, उपयोग आदि पर उनके आदित्य बैक स्टोरी में इकट्ठा होने लगा। उनके रंगों के इस लाइब्रेरी में 2500 रंगों से भी अधिक रंग मौजूद है। फॉर बर्ड्स को अमेरिका में कला संरक्षण के पिता के रूप में जाना जाता है।
आज इस पौराणिक संग्रह का उपयोग वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए किया जाता है जो मानक पिगमेंट को ज्ञात से तुलना करने में मदद करता है। नारायण खांडेकर, जो अब संग्रहालय और संग्रह के प्रभारी हैं, कहते हैं कि वे फॉरेंसिक वैज्ञानिकों की तरह ही पिगमेंट पर उपकरणों का उपयोग करते हैं।
खांडेकर ने पिछले 10 वर्षों में इनमें से इतने रंग द्रव्य जोड़कर संग्रह का पुनर्निर्माण किया है। नए रंग द्रव्य ने उन्हें और उनके कर्मचारियों को बीसवीं शताब्दी में समकालीन कला का अधिक सटीक विश्लेषण करने में मदद की है।
फॉर बर्ड्स पिगमेंट कलेक्शन के कुछ दुर्लभ और सबसे दिलचस्प रंग है। सिंथेटिक अल्ट्रा मरीन, मम्मी ब्राउन, ब्राजीलवुड ऐनाटोट, ड्रैगंस ब्लड, एमेरल्ड ग्रीन इत्यादि।
2. पानी का भी रंग
आमतौर पर माना जाता है कि पानी रंगहीन होता है, लेकिन विज्ञान ने दिखाया है कि शुद्ध पानी रंगहीन नहीं होता है। इसका रंग हल्का नीला होता है जो पानी की गहराई बढ़ने पर गहरा हरा हो जाता है। नीला रंग पानी का एक आंतरिक गुण है, और यह घटना श्वेत प्रकाश के चयनात्मक अवशोषण और प्रकीर्णन के कारण होता है।
पानी की कमजोर अवशोषण क्षमता के कारण दिखने वाला स्पेक्ट्रम के लाल भाग में पानी फिरोजा रंग (turquoise) का कारण होता है। पानी के अनु दृश्य प्रकाश के स्पेक्ट्रम के लाल सिरे को अवशोषित करते हैं, या अधिक विस्तृत होने के लिए परमाणु कंपन करते हैं और प्रकाश की विभिन्न तरंग धैर्य को अवशोषित करते हैं। यही कारण है कि पानी में नीला पन पैदा होता है।
पानी का आंतरिक रंगून एक साधारण प्रयोग से देखा जा सकता है। आपको केवल शुद्ध पानी से भरे एक लंबे पाइप के माध्यम से एक सफेद प्रकाशित श्रोत को देखने की जरूरत है। लेकिन पहले, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि पाइप दोनों सिरों से पारदर्शी कांच के साथ बंद हो।
हीम नदियों की बर्फ में नीला रंग भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हिमनदी पर अधिक संघन होती है और इसमें हवा के बुलबुले नहीं होते हैं। क्योंकि यहां भारी दबाव के आधीन होता है।
हालांकि, प्राकृतिक परिवेश में शुद्ध पानी मिलना लगभग असंभव है। कुछ रसायन अवशेष, परावर्तन और अन्य कारक इसके लिए रंग को बदल देते हैं। बहरहाल, छन्नी और शुद्ध करने के बाद शुद्ध पानी का असली रंग हल्का नीला ही होता है।
3. शाही रंग के रूप में बैगनी
पुराने समय से ही यह माना जाता रहा है कि बैगनी रंग शाही रंग का प्रतीक है। जब हम रंगों के लिए प्राकृतिक रंगों पर निर्भर थे, तब समुद्री घोंघे से बैगनी रंग निकाला जाता था। इसने बैगनी रंग को निकालने और उत्पादन करने के लिए सबसे कठिन डाई बनाना था। और केवल राज घराने वाले इसे खरीद सकते थे। पुराने समय में 1 ग्राम बैगनी रंग बनाने के लिए 9000 से भी अधिक समुद्री घोंघे की आवश्यकता होती थी।
सदियों से बैगनी रंग को रॉयल्टी, शक्ति और धन से जोड़ा गया है। सोनी शताब्दी के उत्तरार्ध में एलिजाबेथ युग के दौरान, महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने अधिकारिक तौर पर शाही परिवार के करीबी सदस्यों को छोड़कर सभी के लिए इस रंग को पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
दुर्लभ सब कुछ स्वाभाविक रूप से रॉयल्टी से जुड़ा हुआ है। और ऐसा ही रंग बैगनी के मामले में भी था। उस रंग से बने कपड़े इतने महंगे थे कि उन्हें केवल शासक ही खरीद सकते थे। उनकी दुर्लभता और महंगाई ने उन्हें शीघ्र ही रोम, मिस्र और पारस के शाही वर्ग के लिए विशिष्ट बना दिया था।
चुकी प्राचीन सम्राटों, राजा और रानियों को आमतौर पर देवताओं या देवताओं के वंशज के रूप में देखा जाता था, बैगनी रंग भी आध्यात्मिकता और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करने लगी।
रंग बनाने की पहली डाई टायर के फोन एशियन व्यापारी शहर से उत्पन्न हुई। जो कि वर्तमान समय में आधुनिक लेबनान शहर है। यहीं पर समुद्री घोंघा से रंग निकालने का काम किया जाता था।
वर्ष 1865 के बाद चीजें बदलने लगी जब एक 18 वर्षीय अंग्रेजी रसायन वैज्ञानिक विलियम पार्किंन ने गलती से एक सिंथेटिक रंग बैगनी योगिक बनाया। इस घटना के बाद रंग निम्न वर्गों के लिए भी सुलभ और किफायती हो गया था।
4. सामान्य मनुष्य की आंखें कुछ ही रंगों को देख सकती है।
सामान्य मनुष्य की आंखें सीमित संख्या में रंगों को देख सकती है, और जो हमारे देखने के लिए बहुत जटिल है उन्हें ” असंभव रंग” (impossible colors) कहा जाता है। दो रंगों का संयोजन जैसे नीला और पीला या लाल और हरा जो हम एक ही समय में नहीं देख सकते हैं। यह दोनों ही असंभव रंग है। दोनों ही रंग विरोधी प्रक्रिया के कारण एक साथ हमें दिखाई नहीं देते।
इस तरह के रंगों को निषिद्ध रंग के रूप में भी जाना जाता है। यह रंगों के जुड़े हैं जिनकी प्रकाश आवृत्ति या स्वचालित रूप से आंखों में एक दूसरे को रद्द कर देते हैं। यह रंग मौजूद है लेकिन केवल हमारी धारणा की सीमा के कारण दिखाई नहीं दे रहे हैं।
जब हम लाल रंग की उत्तेजना देखते हैं तो हमारी आंखों की रेटिना में प्रतिद्वंदी न्यूरॉन्स मस्तिक को संकेत देते हैं। कि यह लाल बत्ती है। अब उन्हीं कोशिकाओं पर किसी उद्दीपन की अनुपस्थिति मस्ती को संकेत देती है कि यह हरा रंग है। इसीलिए एक साथ दोनों के मिश्रण रंग को हम देख नहीं पाते हैं। वही नीले और पीले और कुछ अन्य रंगों के जोड़ों के साथ भी यही होता है।
कुछ प्रयोगों और अध्ययनों से पता चला है कि असंभव रंगों को देखना संभव हो सकता है। संभवत उन्हें देखने के लिए एक सरल गतिविधि है। विरोधी रंग की वस्तु को दूसरे के ठीक बगल में रखना। फिर अपनी आंखों को पार करके ताकि दो वस्तुएं ओवरले हो जाए और आपको एक असंभव रंग दिखाई देगा।
साथ ही कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि प्रतिबंधित रंग केवल मध्यवर्ती रंग है। इसलिए उनका अस्तित्व अभी भी विवादित है।
5. प्रकाश की अनुपस्थिति यानी कि अंधेरे में भी कुछ रंग दिखते हैं
प्रकाश की अनुपस्थिति में हम में से बहुत से लोग जो रंग देखते हैं उसे “ईगेग्राउ” (eigengrau) कहा जाता है। यह वह रंग होता है जिसे हम पूरे अंधेरे में ही देख सकते हैं और कहा जाता है कि यह ऑप्टिक तंत्रिका से दृश्य संकेतों का परिणाम है। जर्मन भौतिक विज्ञानी और दार्शनिक गुस्ताव थियोडोर फेचनर द्वारा इस शब्द की जांच और लोकप्रिय किया गया था।
गुस्तावा फेचनर, को मानवीय धारणा के मापन की उत्पत्ति में उनकी भूमिका के लिए काफी जाना जाता है। वाह मनोज बौद्ध की खोजने वाले व्यक्ति थे और माना जाता है कि वे बीसवीं शताब्दी में अधिकांश दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा थे।
अंधकार में दिखने वाला रंग जो हम तब देख पाते हैं जब हम अपनी आंखें बंद करते हैं या अब पूर्ण अंधकार में प्रवेश करते हैं। अधिकांश लोग ने यह स्पष्ट दूसरे क्षेत्र को देखने का वर्णन किया है जो आमतौर पर इस स्थिति में छोटे सफेद और काले धब्बे के बदले क्षेत्रों से बना होता है।
इसके लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द “ईगेग्राउ” (eigengrau) जर्मनी की भाषा का शब्द है जो इसे सही ठहराता है, जिसका अर्थ आंतरिक ग्रे रंग होता है। तो हम वास्तव में दृश्य शोर देख रहे होते हैं जो कि हमारी बेटी नाका स्थिर होता है। यह दृश्य शोर हमारी आंखों में 120 मिलियन से अधिक रोड कोशिकाओं द्वारा उत्पादित संचई प्रभाव द्वारा एक गलत ट्रिगर है।
हमारी आंखों में शोर सर्वव्यापी है। खुला या बंद लेकिन जब हम दुनिया को देखते हैं तो हम इसे नहीं देखते हैं। इसलिए जब हम अपनी आंखें बंद करते हैं तभी हमें रंगों का आंतरिक शोर, सच्चा अंधकार दिखाई देता है।