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Biography of khudiram Bose – खुदीराम बोस की जीवनी

हमारे देश की आजादी के लिए ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना जीवन निछावर कर दिया। इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक है, “ खुदीराम बोस” । खुदीराम बोस एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक में गिना जाता है। आज के हमारे इस लेख में हम Biography of khudiram Bose – खुदीराम बोस की जीवनी के बारे में जानकारी लेने वाले हैं।

Biography of khudiram Bose – खुदीराम बोस की जीवनी

खुदीराम बोस को एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के तौर पर जाना जाता है। इनका जन्म 3 दिसंबर वर्ष 1889 में हुआ था। इनके पिता का नाम त्रिलोकी नाथ बसु था जो अपने शहर के तहसीलदार थे, उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी जो एक धर्म निष्ठ महिला थी।

जब खुदीराम बोस छोटे थे तब उनके पिता उन्हें भगवत गीता पढ़ कर सुनाते थे। खुदीराम बोस पर भगवत गीता के कर्म अध्याय का काफी असर पड़ा था। वह भारत माता को अंग्रेजों की अधीनता से मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए फिर बहुत ही कम उम्र में विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए थे।

साल 1960 में बंगाल के विभाजन की नीति से असंतुष्ट होकर के उन्होंने एक क्रांतिकारी संगठन की सदस्यता ले ली थी। यह संगठन क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देता था। मात्र 16 साल के किशोर खुदीराम बोस ने पुलिस स्टेशन के पास बम फेंकने और सरकारी अधिकारियों को अपना निशाना बनाया। सिलसिलेवार बम धमाकों के सिलसिले में उन्हें अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था।

बिहार के मुजफ्फरपुर में 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या करने की योजना बनाई थी। ऐसा कहा जाता है कि मैजिस्ट्रेट क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ ही फैसला सुनाना चाहते थे। खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने किंग्स फोर्ड की बग्गी का यूरोपीय क्लब के गेट के सामने आने तक का इंतजार किया। फिर उसे बम से उड़ा दिया। लेकिन, यह संयोग ही था कि उसमें किंग्स फोर्ड नहीं थे।

उस बग्गी में मिसेस कैनेडी और उनकी बेटी सवार थी, इस बम धमाके में दोनों की मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी। दोनों क्रांतिकारी उस जगह से भाग निकले थे बाद में प्रफुल्ल ने तो आत्महत्या कर ली थी, जबकि खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया।

बीसवीं सदी के आरंभ से ही, लोगों के मन में स्वतंत्रता के लिए आग जल चुकी थी। बीसवीं सदी के आरंभ में ही जब बंगाल विभाजन की चाल चली गई तो इसका पूरे देश में घोर विरोध किया गया। इसी दौरान साल 1905 में बंगाल विभाजन के बाद खुदीराम बोस भी स्वाधीनता के लिए क्रांतिकारी आंदोलन में कूद पड़े थे।

उन्होंने अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत सत्येन बोस के नेतृत्व में शुरू किया था। केवल 16 वर्ष की आयु में खुदीराम बोस ने पुलिस स्टेशन के पास कई सारे बम धमाके किए और सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया था।

मात्र 16 वर्ष की उम्र में खुदीराम बोस रिवॉल्यूशनरी पार्टी में शामिल हो गए थे। उस दौरान वे पूरे बंगाल एवं देशभर में वंदे मातरम के पर्चे वितरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साल 1906 में पुलिस ने खुदीराम बोस को दो बार गिरफ्तार किया था। 28 फरवरी सन उन्नीस सौ छह को सोनार बांग्ला नामक एक इश्तिहार बांटते हुए बॉस पकड़े गए पर पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहे। इस मामले पर उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया और उन पर अभियान चलाया गया परंतु गवाही ना मिलने से खुदीराम बोस निर्दोष छूट गए थे।

दूसरी बार पुलिस ने उन्हें 16 मई को गिरफ्तार किया पर कम आयु होने के कारण उन्हें चेतावनी देकर के छोड़ दिया गया था। 6 दिसंबर वर्ष 1907 को खुदीराम बोस ने नारायणगढ़ नामक रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया परंतु गवर्नर इस हमले में साफ साफ बच निकले थे।

साल 1908 में उन्होंने वाटसन और पैम्फलेट नामक दो अंग्रेजी अधिकारियों पर बम से हमला कर दिया, लेकिन दोनों ही अधिकारी इस बम हमले में बच निकले थे।

खुदीराम बोस की गिरफ्तारी और फांसी

खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त सन 1908 को उन्हें फांसी दे दी गई थी। खुदीराम बोस उस समय मात्र 18 वर्ष के थे । खुदीराम बोस कितने निडर थे कि हाथ में गीता लेकर खुशी खुशी फांसी के फंदे में झड़ गए थे।

उनकी निडरता, वीरता और शहादत ने उनको इतना लोकप्रिय बना दिया कि बंगाल के झूला है एक खास किस्म की धोती बुनने लगे और बंगाल के राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों के लिए वह एक अनुकरणीय हो गए थे। उनकी फांसी के बाद विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया और कई दिनों तक स्कूल-कॉलेज बंद रहे थे। इन दिनों नौजवानों में एक ऐसी धोती का प्रचलन हो चला था जिसकी किनारे पर खुदीराम लिखा होता था।

खुदीराम बोस को मिले पुरस्कार एवं सम्मान

उनके सम्मान में एक कई जगहों के नाम उनके नाम पर रखे गए हैं। जिनमें खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज साल 1965 में कोलकाता, पश्चिमी बंगाल भारत में एक अंडर ग्रेजुएट कॉलेज के रूप में स्थापित किया गया था।

इस कॉलेज में कला और वाणिज्य में केवल पाठ्यक्रम प्रदान करता है। यह कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबंध है। शहीद खुदीराम स्टेशन कोलकाता में गडरिया के एक पास एक मेट्रो रेलवे स्टेशन है। शहीद खुदीराम बोस अस्पताल नगर पालिका पार्क के पास बीटी रोड पर एक अस्पताल, खुदीराम बोस मेमोरियल सेंट्रल जेल मुजफ्फरपुर जेल जहां स्वतंत्रता सेनानी को 11 अगस्त 1908 को कैद कर दिया गया था और उनका नाम बदल दिया गया था।

शहीद खुदीराम शिक्षा प्रांगण, कोलकाता में और एक विश्वविद्यालय है जो कोलकाता के स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए विश्वविद्यालय परिसर है। अलीपुर परिसर के रूप में भी जाना जाता है। खुदीराम अनुशीलन केंद्र, कोलकाता में नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंदौर स्टेडियम के निकट स्थित है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. कौन है खुदीराम बोस?

खुदीराम बोस केवल 19 साल की उम्र में भारत की आजादी के लिए फांसी पर चढ़ने वाले एक क्रांतिकारी थे। खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 मे हबीबपुर गांव मिदानपुर जिला बंगाल में हुआ था।

2. खुदीराम बोस का निधन कब हुआ?

खुदीराम बोस को फांसी की सजा 11 अगस्त 1908 को दी गई थी। जब खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई थी तब उनकी उम्र 18 वर्ष और कुछ महीने थी।

3. खुदीराम बोस को फांसी की सजा क्यों दी गई?

खुदीराम को मुजफ्फरपुर, बंगाल प्रेसिडेंसी ब्रिटिश भारत अब बिहार, भारत में किंग्स फोर्ड की हत्या की साजिश करने के कारण न्यायालय ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। खुदीराम बोस द्वारा उन पर बम से हमला किया गया था। लेकिन इस हमले में किंग्स फोर्ड बच निकले थे। उनकी जगह उनकी बग्गी में मिस कैनेडी और उनकी बेटी की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई थी।

4. खुदीराम बोस की शिक्षा क्या है?

जब मात्र 6 साल के थे तब उन्होंने अपनी मां को खो दिया था। 1 साल बाद उनके पिता का निधन हो गया। आपर्पा रॉय उनकी बड़ी बहन उनसे दासपुर पुलिस स्टेशन के तहत गांव में अपने घर ले आई थी। अमृता लालबाई ने उन्हें शामली के हैमिल्टन हाई स्कूल में दाखिला दिलाया, लेकिन बाद में वह एक सही के रूप में प्रसिद्ध हुए।

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