लुइस पाश्चर की जीवनी – Louis Pasteur biography Hindi

19वीं शताब्दी में आधुनिक दवाइयों के जनक में से एक में गिने जाने वाले लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) ने निष्काम भाव से मानवता की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। इन्हें आधुनिक दवाइयों का जनक भी माना जाता है। लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) ने अपनी महान वैज्ञानिक खोज के द्वारा बीमारी के दौरान घाव उत्पन्न होने की स्थिति में जो असहनीय पीड़ा होती है, उसे मुक्ति दिला करके एक बड़ी मानव सेवा की थी। इस चलते इन्हें आधुनिक दवाइयों का जनक कहना गलत नहीं होगा। आज के हमारे इस लेख में हम लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) के जीवन को विस्तार से जानेंगे। Louis Pasteur biography Hindi

Louis Pasteur biography Hindi – लुइस पाश्चर की जीवनी

लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) का जन्म 27 दिसंबर, 1822 को डीले फ्रांस-कोम्ते, फ्रांस में हुआ था। इनके पिता नेपोलियन बोनापार्ट के एक व्यवसायिक सैनिक थे। उनके पिता की इच्छा थी कि उनका पुत्र पढ़ लिख कर के कोई महान आदमी बने। उन्हें महान आदमी बनाने के लिए उनके पिता उन्हें कर्ज लेकर के भी पढ़ाना लिखा ना चाहते थे। लुइस पाश्चर बचपन से ही काफी बुद्धिमान थे। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने ओरबोय की एक पाठशाला में प्रवेश लिया कि दोहा के अध्यापकों द्वारा पढ़ाई गई विद्या उन्हें समझ में नहीं आती थी। इसी चलते उन्हें इस विद्यालय में ज्यादातर बच्चे मनबुद्धि और बुद्धू कहकर चढ़ाया करते थे।

अध्यापकों द्वारा उनकी उपेक्षा किया जाना और उनके साथ पढ़ने वाले बच्चों द्वारा इस तरह चिढ़ाना उन्हें पसंद नहीं आया। इस चलते उन्होंने बचपन में या ठान ली थी कि वे दुनिया के लिए कुछ ऐसा कर दिखाएंगे, जिससे लोग उन्हें बुद्धू नहीं बल्कि कुशाग्र बुद्धि मानकर सम्मानित करें। पिता द्वारा जोर जबरदस्ती करने पर वे उच्च शिक्षा हेतु पेरिस चले गए। वहीं पर वैसाको के एक कॉलेज में अध्ययन करने लगे। उनकी विशेष रूचि रसायन शास्त्र में थी। वे रसायन शास्त्र के विद्वान डॉक्टर ड्यूमा से काफी प्रभावित थे। इकौलनारमेल कॉलेज में उपाधि ग्रहण करके लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) ने 26 साल की उम्र में रसायन के बजे भौतिक विज्ञान पढ़ना आरंभ किया था। इस चलते उन्हें भौतिक विज्ञान में भी काफी रूचि एवं संभावनाएं दिखने लगी थी। Louis Pasteur biography Hindi

अपने जीवन में कई सारे बाधाओं को पार करते हुए भी वे विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गए थे। इस पद को स्वीकार करने के बाद उन्होंने अनुसंधान कार्य आरंभ कर दिया। सबसे पहले अनुसंधान करते हुए उन्होंने इमली के अमल (acid) से अंगूर अमल (acid) बनाया किंतु उनकी सबसे महत्वपूर्ण खोज “विषैले जीव जंतु द्वारा काटे जाने पर उनके विष से मानव की जीवन की रक्षा करनी थी” चाहे कुत्ते के काटे जाने के बाद रेबीज का टीका बनाना हो या फिर किसी जख्म के सड़ने और उसमें कीड़े पड़ने पर अपने उपचार की विधि द्वारा उसकी सफलता पूर्वक चिकित्सा करना हो। लुइस पाश्चर ने उन्हीं कार्यों में अपने प्रयोग द्वारा सफलता पाई।

लुइस पाश्चर का बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा था। लेकिन इन सबके बावजूद लुइस पाश्चर एक दयालु प्रकृति के व्यक्ति थे। बचपन में जब वह अपने गांव में रहते थे तब अपने गांव के 8 व्यक्तियों को पागल भेड़िए के काटने से उन्होंने मरते हुए देखा था। वह उनकी दर्द भरी चीजों को कभी भूल नहीं पाए थे। जब युवावस्था में पहुंचे तो अतीत में हुई उन घटनाओं को याद करते, उन घटनाओं को याद करके लुइस पाश्चर काफी बेचैन हो जाते थे। लुइस पाश्चर पढ़ने लिखने में विशेष तेज नहीं थे। इस पर भी आप मैं दो गुना मौजूद थे। जो विज्ञान में सफलता के लिए आवश्यक होते हैं – उत्सुकता एवं धीरज। युवावस्था में आपने लिखा था कि शब्दकोश में 3 शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण है – इच्छा शक्ति, काम और सफलता। Louis Pasteur biography Hindi

कॉलेज की पढ़ाई समाप्त करके, लुइस पाश्चर अनुसंधान के कार्यों में लग गए। अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक रसायन शाला में कार्य करना आरंभ कर दिया। यहां पर उन्होंने क्रिस्टल ओं का अध्ययन किया तथा कुछ महत्वपूर्ण अनुसंधान भी किए। इनसे रसायन के रूप में उन्हें अच्छा यश मिलने लगा।

लुइस पाश्चर और पाश्चराइजेशन का अध्ययन

लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) अपने सूक्ष्म दर्शी यंत्रों द्वारा मदिरा की परीक्षा करने में घंटों समय बिताया करते थे। उन्होंने इसके लिए कई सारे परीक्षण एवं अनुसंधान भी किए थे। उन्होंने अपने परीक्षण में पाया कि अत्यंत सूक्ष्म जीव किसी भी मदिरा को खट्टा कर देते हैं। इसी के साथ ही लुइस पाश्चर ने है यह भी पता लगाया कि यदि मदिरा को 20 से 30 मिनट तक 60 सेंटीग्रेड पर गर्म किया जाता है तो यह जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। ताप उबलने के ताप से नीचे है। इससे मदिरा के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाद में उन्होंने दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए भी इसी सिद्धांत का उपयोग किया। यही दूध “पास्चरित दूध” (Milk Pasteurization) कहलाता है।

इसी दौरान, लुइस पाश्चर के दिमाग में यह बात भी आएगी यदि यह नन्हे जीवाणु खाद्य एवं द्रव्य पदार्थों में होते हैं, तो यह जीवित जंतुओं तथा लोगों के रक्त में भी हो सकते हैं। वे बीमारी पैदा कर सकते हैं। उन्हीं दिनों फ्रांस की मुर्गियों में “चूचू का हैजा” नामक बीमारी फैली थी। जिसके चलते कई सारे मुर्गियों के चूजे महामारी की चपेट में आ गए थे। मुर्गी पालने वाले लोगों ने लुइस पाश्चर से या प्रार्थना की, आप हमारी सहायता कीजिए। फिर पाश्चर ने उस जीवाणु की खोज शुरू कर दी जो मुर्गियों के चूजे में हैजा फैला रहा था। लुइस पाश्चर ने देखा कि मरे हुए मुर्गों के चोजों के शरीर में छोटे-छोटे जीवाणु उनके खून में इधर-उधर तैरते दिखाई दिए। उन्होंने अपने परीक्षण में दीवानों को दुर्लभ बनाने और इंजेक्शन के माध्यम से स्वस्थ मुर्गियों के चूजे में पहुंचाने का कार्य किया। इसलिए माना जा सकता है, लुइस पाश्चर ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति में वैक्सीन के जनक के तौर पर इसे लोगों के सामने प्रस्तुत किया था। यह तो बस एक शुरुआत थी।

इसके बाद लुइस पाश्चर ने गायों और भेड़ों के एंथ्रेक्स नामक रोगों के लिए वैक्सीन बनाई। पर उनमें रोग हो जाने के बाद हुए उन्हें अच्छा नहीं कर सकते, लेकिन रोग को होने से रोकने के लिए लुइस पाश्चर को सफलता मिल गई। लुइस पाश्चर ने भेड़ों के दुर्लभ किए हुए एंथ्रेक्स जीवाणु की सुई लगाई। इससे यह होता था कि भीड़ को बहुत हल्का एंथ्रेक्स हो जाता था। परवाह इतना हल्का होता था कि वह कभी बीमार नहीं पड़ते थे। उसके बाद कभी वह घातक रोग उन्हें नहीं होता था। लुइस पाश्चर और उनके अनेक सहयोगी यों ने मोसो फ्रांस में घूम कर के कई सारे भेड़ों को या सुई लगाई। इसका परिणाम यह हुआ कि फ्रांस के गाय और भेड़ उद्योग की रक्षा हुई। Louis Pasteur biography Hindi

लुइस पाश्चर और रेबीज का टीका

लुइस पाश्चर कई सारे प्रयोग एवं परीक्षण करते रहते थे। इनमें से बहुत सारे खतरनाक भी थे। वह विषैले वायरस वाले भयानक कुत्तों पर काम कर रहे थे। इन धानक कुत्तों द्वारा छोड़े गए वायरस से रेबीज होने का खतरा हमेशा से बना रहता था। अंत में लुइस पाश्चर ने इस समस्या का हल निकाल लिया। उन्होंने थोड़े से विषैले वायरस को दुर्बल बनाया। फिर उसे इस वायरस का टीका तैयार किया। स्पीकर को उन्होंने एक स्वस्थ कुत्ते के शरीर में लगाया। इस टीके को स्वस्थ कुत्ते के शरीर में 14 बार लगाया गया, तब जाकर के कुत्ते के अंदर रेबीज वायरस के प्रति प्रतिरक्षा उत्पन्न हुई। लुइस पाश्चर की या एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। उस दौरान लुइस पाश्चर ने अपनी यह खोज मानव के ऊपर प्रयोग नहीं किया था। लेकिन साल 1885 में लुइस पाश्चर ने अपनी प्रयोगशाला में बैठे हुए यह सोचा किसका उपयोग मानव के ऊपर भी किया जा सकता है। साल 1885 की बात है जब वह 1 दिन अपनी प्रयोगशाला में बैठे हुए थे। तभी एक फ्रांसीसी महिला अपने 9 वर्षीय पुत्र जिसका नाम जोसेफ था, को लेकर के उनके पास पहुंची। उनके 9 वर्षीय पुत्र को किसी पागल कुत्ते ने काट लिया था। पागल कुत्ते की लार में नन्हे जीवाणु होते हैं, जो कि रेबीज के जनक होते हैं। यह रेबीज वायरस इंसान के शरीर में पहुंचकर के रेबीज बीमारी पैदा करते हैं। अगर उस दौरान कुछ नहीं किया जाता तो वह 9 वर्षीय जोसेफ धीरे-धीरे जल संत्रास (hydrofobia) से तड़प तड़प कर जान दे देता।

लुइस पाश्चर ने उस 9 वर्षीय बालक का परीक्षण किया उन्हें लगा कि इसे अन्य दवाइयों द्वारा नहीं बचाया जा सकता है। बहुत वर्षों से हुए इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि इस रेबीज वायरस को मानव में कैसे रोका जा सकता है। लुइस इस रोग से विशेष रूप से घृणा करते थे। अब उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि 9 वर्षीय बालक जोसेफ को रेबीज वैक्सीन की सुईया किस तरह लगाई जाए। और इस कार्य को करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। क्योंकि इस कार्य में बालक की जान भी जा सकती थी। पर अगर वे उसे सुई नहीं लगाते तो उसकी मृत्यु निश्चित थी। तब लुइस पाश्चर ने या निश्चय किया कि 9 वर्षीय बालक का उपचार करना शुरू करना होगा। लुइस पाश्चर ने 10 दिनों तक उस बालक को वैक्सीन की बढ़ती मात्रा की सुईया लगाते रहे और तब महान आश्चर्य की बात हुई। बालक जोसेफ जलसंत्रास नहीं हुआ। इसके बदले वह बालक स्वस्थ एवं अच्छा होने लगा। इतिहास में पहली बार यह ऐसा हुआ कि किसी इंसान को रेबीज से इंजेक्शन देकर के बचाया गया था। देखा जाए तो लुइस पाश्चर ने चिकित्सा के क्षेत्र में इस मानव जाति को एक अनोखा उपहार दे दिया। लुइस पाश्चर को उनके देशवासियों ने उन्हें अब सम्मान एवं सब पदक प्रदान किए। उन्होंने लुइस पाश्चर को सम्मान देने के लिए “पाश्चर इंस्टीट्यूट” (Pasteur Institute) का निर्माण करवाया। इन सबके बावजूद लुइस पाश्चर में कोई भी परिवर्तन नहीं आया। वे अपने तमाम उम्र तक सदैव लोगों के रोग एवं उनकी पीड़ा के हरण के उपायों की खोज में लगे रहे। Louis Pasteur biography Hindi

रेशम के कीड़ों के रोग की रोकथाम के लिए उन्होंने 6 वर्ष तक इतने प्रयास किए कि वे अस्वस्थ हो गए। पागल कुत्ते के काटे जाने पर मनुष्य के इलाज का टीका, हैजा, प्लेग आदि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए उन्होंने विशेष कार्य किया है। जिसके चलते उन्हें दुनिया भर के लोग आज भी याद करते हैं। इस तरह से लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) एक सामान्य मानव से महामानव बन गए। चिकित्सा विज्ञान में उनकी इस उपलब्धि और मानव जीवन को दिए उनके इस अनमोल उपहार और महान योगदान के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।

साल 1895 में निंद्रा अवस्था में ही उनकी मृत्यु हो गई। महान वैज्ञानिक और चिकित्सा जगत में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लुइस पाश्चर ने दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य को हमारी हम मानव सभ्यता हमेशा याद रखेगी।

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