भारत में ऐसी कई आदिवासी जनजातियां रहती है, जिनके बारे में बहुत ही कम जानकारियां हमारे पास उपलब्ध है, इन्हीं जनजातियों में से एक है, मुंडा जनजाति, तो आज के हमारे इस लेख में हम लोग मुंडा जनजाति के बारे में बात करने वाले हैं।
‘मुंडा’ संस्कृत भाषा का शब्द है। मुंडा ओके प्राचीन हिंदू पड़ोसी उन्हें ‘मुंडा’नाम से पुकारते थे। इस समुदाय के लोगों को ‘कोल’ भी कहा गया। मुंडा अपने को ‘होरो को’ (मनुष्य) कहते हैं। वह अपने को कोल कहलाना पसंद नहीं करते,यद्यपि मुंडा के जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि उनकी भाषा में इसका अर्थ होता है, ‘विशिष्ट व्यक्ति’ । विशेष अर्थ में इस शब्द का मतलब था –गांव का राजनीतिक प्रमुख। मुंडा झारखंड की तीसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है। झारखंड के रांची, हजारीबाग, पलामू, सिंहभूम, जिलों में बसे हुए हैं। मुंडा ओं का सबसे सघन जमाव रांची जिले में है।
मुंडा जनजाति का संबंध आष्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है। इनकी त्वचा का रंग काला, नाक मोटी, चौड़ी व जड़ से दबी हुई, हॉट मोटे, सिर लंबा एवं कद छोटा होता है।
सामाजिक व्यवस्था
मुंडा जनजाति के प्रमुख गोत्रों (किल्ली) के नाम है – टूटी, मुंडू, डोडराय, सोए, कछुआ, नाग, हैरेंज, बण्डो, पूर्ति, रूंडा, कांडिल, बारिया, बेंगरा, हरमसुकू, हासरा, हेमरोम, चंपी, हंस, बाबा, साल, कमल, तोपनो, सुरेन, और बरला। बाद में हिंदुओं के संपर्क में आने पर मुंडा में सामाजिक स्तर विकसित हुआ जो कि हिंदुओं के जाति प्रथा से मिलता-जुलता है। सामाजिक स्तर की दृष्टि से मुंडा समाज ठाकुर, मंकी, मुंडा, बाबू भंडारी एवं पतार में विभाजित है। मुंडा के युवा ग्रह को ‘गीतिओड़ा’ कहा जाता है। गीतिओड़ा मैं मुंडा युवा युवती शिक्षण प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं।मुंडा में सामान्यता एक विवाह की प्रथा है किंतु विशेष परिस्थिति में पति दूसरा विवाह कर सकता है।आरंभ में मुंडा में बाल विवाह की प्रथा नहीं थी किंतु बाद में हिंदू प्रभावित मुंडा में बाल विवाह का प्रचलन शुरू हुआ। विधवा या परित्यक्ता का विवाह हो सकता है, लेकिन इस तरह के विवाह में वधू मूल्य ‘कुरी गोनोग टका’ की बाध्यता नहीं रखी जाती।
मुंडा में विवाह को, अरंडी, कहा जाता है। मुंडा जनजाति में प्रचलित विवाह इस प्रकार है।
- आयोजित विवाह
- राजी खुशी विवाह
- हरण विवाह
- सेवा विवाह
- हट विवाह इत्यादि
मुंडा जनजाति के बीच में विवाह का सर्वाधिक प्रचलित रूप है – आयोजित विवाह। इस विवाह में वर वधू के माता-पिता द्वारा विवाह आयोजित किया जाता है। ‘राजी खुशी विवाह’ इस विवाह में वर वधू की इच्छा ही सर्व परी होती है। इसमें आयुध विवाह की तरह विधियों की विविधता नहीं होती। हाट या मेले से पसंद की गई लड़की का हिरन और उसके साथ विवाह करना ‘ हरण विवाह’ कल आता है। संभवत वधू मूल्य से बचने के लिए ऐसा विवाह किया जाता है।
मुंडा गांव का मुख्य मुंडा कहलाता है। गांव की पंचायत को हातू कहा जाता है। कई गांव को मिलाकर के 1 पंचायत बनाई जाती है जिसे परहा पंचायत कहा जाता है। परहा पंचायत के प्रधान को ‘मानकी’ कहा जाता है।
मुंडा जनजाति की अर्थव्यवस्था
मुंडा स्थाई रूप से कृषि कार्य करते हैं। यह मोटे अनाज, चावल, ज्वार, बाजरा, दलहन, तिलहन आदि की खेती करते हैं। कृषि के अलावा यह पशुपालन भी करते हैं। ‘सोहराई’ नामक त्यौहार पशु पूजा से ही जुड़ा है। यह शिकार करने, मछली मारने आदि के शौकीन होते हैं।अब मुंडा व्यवस्था व निर्माण कार्यों में मजदूरों के रूप में एवं कुछ सरकारी नौकरियां भी करने लगे हैं।
मुंडा जनजाति और धर्म
मुंडा का सर्वप्रथम देवता ‘ सिंहबोंगा’ है, जो सूर्य का प्रतिरूप है। मुंडा ओं के अन्य प्रमुख देवी देवता है – हातु बौंगा (गांव का देवता), दैशाउली ( गांव की सबसे बड़ी देवी), खूंटहंकार या ओड़ा बोंगा (कुलदेवता) , बुरु बोंगा (पहाड़ देवता), ईकीर बोंगा (जल देवता) इत्यादि है ।इसके अलावा हिंदुओं के संपर्क में आने के कारण मुंडा लोग कई हिंदू देवी देवता जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण, लक्ष्मी और पार्वती आदि को भी मानते हैं।
इसके अलावा कई मुंडा जनजाति के लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं। पहान, मुंडा गांव का धार्मिक प्रधान होता है। पूजार और पंधरा पहन का सहयोग होता है।मुंडा तांत्रिक एवं जादुई विद्या में विश्वास करते हैं। झाड़ फूंक करने वालों को देवड़ा कहा जाता है।
झारखंड में अनुसूचित जनजाति जनगणना 2011
वर्ष 2011 की जनगणना के अंतिम आंकड़ों के अनुसार झारखंड की कुल जनसंख्या का 26.2% भाग अनुसूचित जनजाति का है। जबकि 2001 की जनगणना में याह 26.3% था। झारखंड की जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति का प्रतिशत 26.2% देश की जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति के प्रतिशत का 8.6% से भी ज्यादा है। कुल जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति के प्रतिशत की दृष्टि में झारखंड भारत का 11वां स्थान रखता है।
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