Share Market basic knowledge – शेयर बाजार बेसिक जानकारी अगर आप शेयर बाजार पर निवेश करना चाहते हैं तो आपको शेयर बाजार के बारे में बेसिक जानकारी होना बेहद जरूरी है। तभी आप शेयर बाजार पर पैसों का निवेश करके अच्छी खासी लाभ कमा सकते हो। शेयर बाजार पर पैसे लगाने से पहले आपको इस बात का ध्यान रखना अति आवश्यक है कि शेयर बाजार जोखिमों के अधीन होती है। इसलिए शेयर बाजार में पैसे लगाने से पहले आपको शेयर बाजार की बेसिक जानकारी लेना जरूरी होता है।
आज के हमारे इस लेख में हम जानेंगे कि Share Market basic knowledge – शेयर बाजार बेसिक जानकारी ताकि आपसे मार्केट पर अपने पैसों को अच्छी तरह से निवेश कर पाए। हमें अपने इस लेख में निम्नलिखित चीजों को शामिल किया है :-
- शेयर क्या होता है? – What is Share?
- शेयर की लेनदेन की प्रक्रिया
- शेयर क्यों जारी किया जाता है? Why Share are issued?
- शेयर कितने प्रकार के होते हैं? – Types of Share in Hindi
- इक्विटी शेयर क्या है? What is Equity Share?
- प्रेफरेंस शेयर क्या है? What is Preference Share?
- शेयरों का संचालन
Share Market basic knowledge – शेयर बाजार बेसिक जानकारी
शेयर क्या होता है? What is Share?
शेयर मार्केट या स्टॉक मार्केट में निवेश करने के कई सारे तरीके होते हैं। जैसे कि आप शेयर मार्केट में निवेश करने के लिए शेयर, bonds, डिवेंचर, म्यूच्यूअल फंड पर फिर आप विभिन्न प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) पर निवेश कर सकते हैं।
प्रत्येक प्रकार के निवेश की कुछ विशेषताएं, लाभ तथा उद्देश्य कारण होते हैं। निवेश के इन विभिन्न तरीकों में शेयर द्वारा बाजार में किया गया निवेश सबसे ज्यादा लोकप्रिय और आम है।
शेयर (Share) का हिंदी अर्थ होता है – “साझा” या “बांटना” । जब भी हम शेयर मार्केट से शेयर खरीदते हैं, तो इसका अर्थ या होता है कि आप किसी कंपनी में अपनी भागीदारी खरीद रहे होते हैं।
वास्तव में या एक प्रक्रिया बांटने की है। दरअसल शेयर किसी कंपनी में आंशिक भागीदारी यानी कि स्वामित्व प्राप्त करने का तरीका है। किसी कंपनी के शेयर खरीदने का तात्पर्य है कि व्यक्ति उस कंपनी में अपनी आंशिक भागीदारी खरीदता है।
इस तरह से देखा जाए तो जब भी आप शेयर बाजार से किसी कंपनी के शेयर को खरीदते हैं। तो किसी ना किसी रूप से आप भी उस कंपनी से संबंधित शेयर के मालिक होते हैं।
इस प्रकार के निवेश में कंपनी के हिस्सेदारी से जुड़े फायदे हैं तो कंपनी के व्यापार से जुड़े खतरे भी शामिल होते हैं। यानी कि अगर उस कंपनी को लाभ अर्जित होता है तो लाभांश के तौर पर आपको भी लाभ मिलता है। वही, कंपनी अगर नुकसान में जाती है तो इसका नुकसान आपको भी होता है।
शेयर बाजार में कंपनी के शेयर की खरीद बिक्री की गतिविधियां निवेश का एक साधन होती है। वह निवेशक, जो किसी कंपनी का शेयर खरीद लेता है। तब उस कंपनी का शेयर होल्डर (Share Holder) कहलाता है। दूसरे शब्दों में शेयर की खरीदारी को इक्विटी की खरीदारी भी कहा जाता है। यही वजह है कि शेयर खरीदने वालों को इक्विटी शेयर होल्डर (Equity Share Holder) भी कहते हैं।
शेयर की लेनदेन की प्रक्रिया – How to Buy and Sell Share
शेर की खरीद बिक्री स्टॉक एक्सचेंज में दो तरह से की जाती है। पहला, अगर कोई कंपनी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है, उनके शेयर स्टॉक एक्सचेंज में खरीदे या बेचे जाते हैं। स्टॉक एक्सचेंज इन कंपनियों के शेयर को खरीदने के लिए आपको एक ब्रोकर की जरूरत होती है। आप सीधे जाकर के स्टॉक एक्सचेंज से इन कंपनी के शेयर को नहीं खरीद सकते हैं।
यह ब्रोकर रजिस्टर्ड ब्रोकर होता है। ब्रोकर कोई भी कंपनी, ग्रुप, व्यक्तिगत व्यक्ति हो सकता है। दूसरे तरीके मैं निवेशक अन्य शेयर होल्डर से अथवा सीधे कंपनी से शेयरों को खरीद सकता है।
जब भी कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर आम निवेशकों के लिए ले कर के आती है। तब वह कंपनी IPO (Initial public Offering) ले कर के आती है। उसके बाद आने वाले सारे ऑफर पब्लिक इश्यु (Public Issue) क्या लाते हैं। निवेशकों को खरीदने के लिए प्रस्तुत किए जाने वाला शेयर या तो कंपनी द्वारा जारी किया गया नया शेर होता है या कंपनी अपने हिस्से के शेयर का कुछ भाग आम पब्लिक के लिए प्रस्तुत कर सकती है। इस तरह से देखा जाए तो कंपनी द्वारा यह एक तरह का साधन है जिसकी मदद से वह बाजार से पैसों की उगाही करती है।
कोई भी कंपनी शेयर क्यों जारी करती है? – Why Companies Issue Share
कोई भी कंपनी अपने बिजनेस के लिए बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा करना चाहती है तो वह पब्लिक से पैसा इकट्ठा करने के लिए शेयर जारी करती है। क्योंकि बड़ी मात्रा में धन कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा पूरी नहीं की जा सकती है। अंता कंपनी अपना बिजनेस फैलाने तथा व्यापार चलाने के लिए कॉरपोरेट्स स्ट्रक्चर बनाकर, बड़ी संख्या में लोगों को शामिल कर उन्हें शेयर भेजती है तथा पूंजी हासिल करके अपने उद्देश्यों को पूरा करती है।
कोई भी कंपनी जो स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange) पर सूचीबद्ध रहती है। जैसे कि कोई भी पब्लिक लिमिटेड कंपनी, इसमें सदस्यों की संख्या 50 से अधिक होती है और इसके शेयरों की बिक्री पर किसी भी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होता है।
आप किसी भी कंपनी के शेयर जोकि स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड हो उसकी शेयर को खरीद सकते हैं। लंबे समय के लिए किया गया शेयर बाजार पर निवेश आपको अच्छी खासी रिटर्न भी देती है। निवेश अपनी इच्छा व विवेक के अनुसार किसी कंपनी के शेयर खरीद कर अच्छी कीमत आने पर बाद में उन्हें आप भेज भी सकते हैं। इस तरह से देखा जाए तो कोई भी निवेशक लंबे समय तक निवेश करने के बाद अच्छी कीमत पर उन शेयरों को भेज सकता है। इस तरह से निवेशक लाभ कमाता है या निवेश के किसी भी विकल्प में या धन लगा सकता है।
अगर कंपनी, लाभ कमाती है तुम अपने शेयर होल्डर को लाभांश (Dividend) भी समय-समय पर अदा करती है। शेयरों से जुड़े खतरों में या शामिल होता है कि यदि कोई कंपनी अपना व्यापार समिति है तो शेयर धारक को सबसे अंत में भुगतान किया जाता है। नियम के अनुसार ऐसी अवस्था में कंपनी अपनी नवसारी देनदारी चुकता करने के बाद बचे हुए धन को शेयरधारकों को बांटती है। व्यवहारिक तौर पर अधिकांश मामलों में कंपनी द्वारा देनदारी चुकता करने के बाद कंपनी के पास कोई भी धन नहीं बचता तथा सब शेयर धारक होल्डर को कंपनी से कुछ नहीं मिलता है।
किसी शेयरधारकों कंपनी में सीमित जिम्मेदारी होती है। यानी कि उसके द्वारा खरीदे गए शेयरों की एवज में जो धन वह कंपनी को चुकाता है, उसके अलावा किसी भी स्थिति में कंपनी उसे और कोई अतिरिक्त धन की मांग नहीं कर सकती है।
इस तरह कंपनी बंद होने की स्थिति में इक्विटी शेयर होल्डर को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, इस प्रकार अगर कोई कंपनी बंद होती है तो इक्विटी शेयर होल्डर को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। क्योंकि उसके द्वारा लगाए गए शेयर पर पैसे वापस नहीं मिलते हैं।
Intraday Day trading के दौरान दूसरे तरह का जोखिम या रिस्क होता है। इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान आप जिस दिन जो शेयर खरीदते हैं उसे आपको उसी दिन स्टॉक मार्केट बंद होने से पहले बेचना होता है। इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान जब कोई व्यक्ति किसी rate पर कोई शेयर खरीदा है। और उस शेयर की कीमतें अगर उसी दिन नहीं बढ़ती और लगातार घटती जाती है, ऐसी स्थिति में शेयर खरीदने और बेचने वाले को इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान नुकसान उठाना पड़ता है। वही, इसके ठीक उल्टे अगर लगातार शेयर की कीमतें बढ़ती है, तो निवेशक को फायदा होता है।
शेयर कितने प्रकार के होते हैं? – Types of Share
इक्विटी शेयर (Equity Share) को किसी भी आम भाषा में केवल “शेयर” कहा जाता है। यानी की इज्जत भी कोई आपसे शेयर के बारे में बात करें तो वह अवश्य ही रूप से इक्विटी शेयर ही होगा।
विभिन्न प्रकार के शेयरों को अलग-अलग विशेषताएं होती है। इसलिए इनकी प्रकार को समझना आवश्यक है। ताकि निवेशक अपनी जरूरत तथा विवेक के अनुसार उनका चयन कर सके। भारत जैसे देश में शेयर के दो विकल्प उपलब्ध हैं।
- इक्विटी शेयर – Equity Share
- प्रेफरेंस शेयर – Preference Share
Equity Share ( इक्विटी शेयर) :- प्राइमरी या सेकेंडरी मार्केट से जब भी कोई व्यक्ति शेयर खरीदा है तो वह साधारण शेयर कहलाता है। इसे आप इक्विटी शेयर कह सकते हैं। इस तरह का शेयर धारक कंपनी का आंशिक हिस्सेदारी खरीद ता है और कंपनी के नफे नुकसान से जुड़ा रहता है। साधारण शेयर भारत की इक्विटी शेयर होल्डर कहलाता है। शेयरों की संख्या के अनुपात में कंपनी पर इनका मालिकाना अधिकार होता है। इस प्रकार कंपनी से जुड़े किसी भी प्रकार की जनरल मीटिंग में इन्हें वोट देने का अधिकार होता है। कंपनी से जुड़े रिस्क तथा नफा नुकसान के हिस्सेदारी भी इक्विटी शेयर होल्डर को ही होती है। यदि कंपनी अपना व्यवसाय पूरी तरह से बंद करना चाहता है, तब कंपनी अपनी सारी देनदारी चुकता करने के बाद बच्ची हुई पूंजी संपत्ति इन साधारण शेयरधारकों को उनके शेयर संख्या के अनुपात में बांट देती है।
Preference Share (प्रेफरेंस शेयर):- साधारण शेयर के विपरीत कंपनी कुछ अलग तरीके के शेयर निवेशकों और अपने प्रमोटरों को जारी करती है। जिसे प्रेफरेंस शेयर कहा जाता है। इस तरह के शेयर की कीमत साधारण शेयर की मौजूदा कीमत से अलग भी हो सकती है। जहां इक्विटी शेयर होल्डर या साधारण शेयर धारक को वोट देने का अधिकार होता है। लेकिन, प्रेफरेंस शेयर धारक को किसी भी तरह का वोट देने का अधिकार नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब कंपनी बंद करने की स्थिति आती है तो पूंजी चुकाने के मामले में प्रेफरेंस शेयर धारकों को साधारण शेयरधारकों से अधिक तवज्जो दिया जाता है। कंपनी अपनी नीति के अनुसार इस प्रकार के शेयर को आंशिक तथा पूर्ण रूप से साधारण शेयर में परिवर्तित भी कर सकती है।
प्रेफरेंस शेयर कितने प्रकार के होते हैं? – Types of Preference Share
जब भी कोई कंपनी लाभ कमाती है, तो लाभ का सबसे पहला हिस्सा प्रेफरेंस शेयर धारक को दिया जाता है। लेकिन इन्हें कंपनी का रिश्तेदार नहीं माना जाता है। इसी लाख के आधार पर प्रेफरेंस शेयर धारक को तीन कैटेगरी में बांटा गया है।
- Non Cumulative Preference Share :- अगर कोई कंपनी किसी कारणवश पहले साल लाभ नहीं कमाती है और इसके जगह दूसरे वर्ष में लाभ कम आती है तो इस स्थिति में निवेशक दोनों वर्ष में लाभ प्राप्त करने का दावा नहीं कर सकता है।
- Cumulative preference share :- अगर कोई कंपनी किसी वजह से पहले साल में किसी भी तरह का लाभ अर्जित नहीं करती है और कंपनी दूसरे साल में लाभ अर्जित करती है तो ऐसी स्थिति में निवेशक दोनों वर्ष लाभ प्राप्त करने का दावा कर सकता है।
- Redeem Cumulative Preference Share :- इस तरह के शेयर धारक को उसकी पूंजी एक निश्चित समय पर लाभांश के तौर पर दी जाती है। इस प्रकार का शेयर धारक का कंपनी से जुड़ाव पूरी तरह से अल्पकालिक होता है।
- Convertible preference share :- इस तरह के शेयर निश्चित अवधि के पश्चात किसी कंपनी द्वारा साधारण शेयर में या फिर अन्य वित्तीय इंस्ट्रूमेंट में बदल दिए जाते हैं।
Balance sheet और शेयर
अलग-अलग प्रकार के शेयर की चर्चा करने के साथ-साथ किसी भी निवेशक को यह जानना भी काफी जरूरी होता है कि किसी भी कंपनी को किस तरह से संचालित या ऑपरेट किया जाता है। अगर आप किसी भी कंपनी के वार्षिक रिपोर्ट (Annually Report) अगर आप उठा कर के देखेंगे तो आपको शेयर से जुड़े हुए कई सारे ऐसे शब्द भी दिखाई देंगे। तो इन से संबंधित कुछ शब्द हम नीचे दे रहे हैं। इन शब्दों के जरिए आपको किसी भी कंपनी के स्ट्रक्चर एवं व कैसे कार्य करती है इसके बारे में जानने में सहायता मिलेगी।
Share capital :- किसी भी बैलेंस शीट में share capital को देनदारी वाले कॉलम में दर्ज किया जाता है। क्योंकि यह राशि शेयरधारकों की देनदारी है। जब कभी कंपनी बंद होने की स्थिति में कंपनी को यह राशि शेयरधारकों को वापस चुकता करना होता है। इसीलिए इसे प्रॉफिट एंड लॉस खाते में ना दिखा करके इसे देनदारी खाते में दिखाया जाता है।
Authorised share capital :- किसी भी बैलेंस शीट में शेयर से जुड़ा एक और नाम होता है जिसे ऑथराइज्ड शेयर कैपिटल कहा जाता है। इसे किसी भी कंपनी की कुल पूंजी का वह अधिकतम हिस्सा माना जाता है जो कंपनी शेयर जारी करके अर्जित करती है। इसकी सीमा पूरी हो जाने पर कोई भी कंपनी इस से ज्यादा शेयर जारी नहीं कर सकती है।
Subscribed capital :- यह जारी किए गए शेयर का वह भाग होता है जो निवेशक द्वारा लिया जाता है इसे सब्सक्राइब कैपिटल कहते हैं। जब जारी किए गए सभी शेयर निवेशकों द्वारा ले लिए जाते हैं, तब issue share व subscribe share दोनों बराबर हो जाते हैं। इसे शेयर की कुल संख्या का अनुमान होता है कि कितने शेयर जारी किए गए और निवेशकों ने कितने शेयर खरीदे हैं।
Bonus Or Right Share :- किसी भी कंपनी के बैलेंस शीट पर बोनस शेयर का उल्लेख होता है। इससे यह पता चलता है कि कंपनी के शेयर कैपिटल में कितना हिस्सा शेयर बेचकर अर्जित किया गया है। और कितना हिस्सा निवेशकों को बोनस शेयर जारी करके शेयर कैपिटल पर शामिल किया गया है। Bonus Share शेयर धारक को मुफ्त में जारी किया जाता है।
दोस्तों उम्मीद करता हूं कि आपको शेयर मार्केट से जुड़ी बेसिक जानकारी मिल गई होगी। हमने यहां पर शेयर मार्केट से जुड़ी आधारभूत जानकारी देने की कोशिश की है। हमने अपने इस लेख में आप लोगों को इस बारे में जानकारी दी है कि Share Market basic knowledge – शेयर बाजार बेसिक जानकारी जिससे कि आप शेयर बाजार को समझ सके। और शेयर बाजार में किसी भी कंपनी के शेयर को खरीदते वक्त आपको इन सारी चीजों की जानकारी होना अति आवश्यक होता है।