हमने इन दोनों शब्द को जरूर कभी ना कभी, सुना होगा। अगर आप डिस्कवरी चैनल देखने के शौकीन है तो आपने यह शब्द जरूर सुना होगा। हाइपरर्थर्मिया और हाइपोथर्मिया दोनों के बीच में क्या अंतर है? इसके साथ ही हम अपने इस लेख में इस बारे में भी जानकारी देने वाले हैं कि हाइरपर्थर्मिया और हाइपोथर्मिया क्या है? What is Hyperthermia and Hypothermia? हाइपरर्थर्मिया और हाइपोथर्मिया क्या है?
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे शरीर का सामान्य तापमान जो जरूरी होता है वह 37 डिग्री सेल्सियस के आसपास होती है। हम तापमान में हल्के बदलाव को भी महसूस करते हैं और हल्के बदलाव को हमारा शरीर बड़ी आसानी से सहन कर पाता है। लेकिन, अचानक से अत्यधिक ठंडा और अत्यधिक गर्मी हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाता है।
आज का बारिश लेख में हम इसी बारे में जानकारी लेने वाले हैं। आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लेते हैं कि हाइपरर्थर्मिया और हाइपोथर्मिया क्या है?
What is Hyperthermia? हाइपरर्थर्मिया क्या है?
Hyperthermia ( हाइपरर्थर्मिया) एक सामान्य रूप से शरीर का तापमान होता है जो पर्यावरण से आने वाली गर्मी से निपटने के लिए शरीर के गर्मी विनियमन तंत्र की विफलता के कारण होता है।
हाइपरर्थर्मिया एक असामान्य रूप से उच्च शरीर का तापमान होता है। इसे आप साधारण हिंदी शब्दों में लू लगना भी क्या सकते हैं या इसे आप गर्मी की बीमारी भी कह सकते हैं। ऐसा होने पर व्यक्ति को अपने शरीर में ऐठन होती है जबकि गर्मी की थकावट अधिक गंभीर रूप ले सकता है। लू लगना या हीटस्ट्रोक हाइपर्थर्मिया का सबसे गंभीर रूप है और यह जानलेवा भी हो सकता है।
What is Hypothermia? हाइपोथर्मिया क्या है?
हाइपरर्थर्मिया के ठीक उल्टे हाइपोथर्मिया होता है। इसमें आपके शरीर का तापमान अचानक से बहुत नीचे गिरने लगता है। साधारण शब्दों में कहे तो आपका शरीर का तापमान सामान्य तापमान की तुलना में अत्यधिक तेजी से ठंडा होने लगता है।
हाइपोथर्मिया एक तरह की गंभीर स्थिति है। जिसमें शरीर का तापमान असामान्य रूप से निम्न स्तर तक गिर जाता है। यह तब होता है जब शरीर उस ठंड का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त गर्मी का उत्पादन करने में असमर्थ होता है जो है वह खोता जा रहा है।
शरीर के तापमान को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के हिस्से को हाइपोथैलेमस कहा जाता है जो शरीर के तापमान में परिवर्तन को पहचानता है। जो शरीर को वापस से सामान्य तापमान में लाने के लिए प्रक्रिया शुरू कर देता है।
क्या हाइपरर्थर्मिया बुखार के समान होता है? किस तरह से यह हाइपोथर्मिया से अलग है?
इसमें हम पहले ही ऊपर जिक्र कर चुके हैं कि हाइपरर्थर्मिया किस तिथि के अंतर्गत आपके शरीर का तापमान अत्यधिक बढ़ने लगता है। वही हाइपोथर्मिया के अंतर्गत आपके शरीर का तापमान नीचे गिरने लगता है। दोनों ही तरह के र्थर्मिया के बीच में आप इस तरह से अंतर देख सकते हैं।
हाइपरर्थर्मिया बुखार के समान नहीं होता है। जब आपके शरीर में इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है तो आपका शरीर का तापमान एक निश्चित सेट पॉइंट से ऊपर बढ़ता जाता है जो आपके हाइपोथैलेमस जो कि मस्तिष्क का एक हिस्सा होता है द्वारा नियंत्रित होता है।
लेकिन जब आप को बुखार होता है, तो आपका हाइपोथैलेमस बातों में आपके शरीर के निर्धारित तापमान को बढ़ा देता है। शरीर के तापमान में या जानबूझकर वृद्धि किसी बीमारी या संक्रमण से लड़ने के लिए आपके शरीर की कोशिश होती है।
हाइपोथर्मिया के दौरान आपके शरीर में इस तरह की स्थिति पैदा होती है कि आपका शरीर का तापमान आज सामान्य रूप से नीचे गिरने लगता है और निम्न स्तर पर पहुंच जाता है। किसी भी व्यक्ति में यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब उसके शरीर में ठंड का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त गर्मी का उत्पादन करने में उसका शरीर असमर्थ होता है।
हाइपोथैलेमस आपके शरीर के गर्मी को नियंत्रित करने में असफल रहता है। शरीर की कोशिकाओं में नियमित चाय पर चाय प्रक्रियाओं के दौरान गर्मी पैदा करता है जो महत्वपूर्ण शारीरिक कार्यों का समर्थन करता है। यदि वातावरण ठंडा हो जाता है, तो शरीर में चमक आती है मांसपेशियों की गतिविधि में या फिर भी अधिक गर्मी उत्पन्न करती है। हालांकि, अगर शरीर इससे बनाने की तुलना में अधिक तेजी से गर्मी हो देता है तो कोर तापमान गिर जाएगा। जैसे ही शरीर का तापमान कितना है शरीर की गर्मी से बच निकलने वाली गर्मी को कम करने के लिए त्वचा से रक्त को बहा देता है। हाइपोथर्मिया ठीक हाइपरर्थर्मिया के उल्टे या विपरीत होता है। जहां हाइपरर्थर्मिया पर आपको अत्यधिक गर्मी, ऐठन, थकावट या हीट स्ट्रोक का अनुभव होता है।
Types of Hyperthermia? हाइपरर्थर्मिया के प्रकार ?
हाइपरर्थर्मिया को आप साधारण भाषा में गर्मी की बीमारी के रूप में जानते हैं। जिसे हम साधारण तौर पर ‘लू’ भी कहते हैं। इसे हम निम्नलिखित प्रकारों में बांट सकते हैं।
हीट क्रैंप्स (Heat Cramps) – मांसपेशियों में ऐंठन हाइपरर्थर्मिया के कारण हो सकता है। यदि आप पसीने के माध्यम से बहुत सारा इलेक्ट्रोलाइट्स ( आपके शरीर के तरल पदार्थ में नमक और अन्य महत्वपूर्ण पदार्थ) खो देते हैं। गर्मी में ऐठन अक्सर आपकी बाहों, हाथों और निचले पैरों में होती है।
थकावट – हीट क्रैंप्स की तुलना में थकावट अधिक गंभीर स्थिति होती है। आपके शरीर का तापमान 104 डिग्री फॉरेनहाइट जितना अधिक गर्म हो जाता है। इस स्थिति में आपको हीट स्ट्रोक भी हो सकता है।
हीट रैश (Heat Rash) – अगर आपको गरम, आद्रता मौसम में बहुत अधिक पसीना आता है तो आपकी त्वचा में जलन हो सकती है। जिसे हीट रैश कहा जाता है। यह छोटे, लाल फुंसियों या फफलों के समान दिखाई देता है।
गर्मी और तनाव और हीटस्ट्रोक – गर्मी का तनाव हो सकता है यदि आपके पास ऐसी नौकरी है जिसके लिए आपको गर्म परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। हाइपरर्थर्मिया हीट स्ट्रोक का गंभीर रूप है। यह एक जानलेवा स्थिति होती है जिसके कारण आपके शरीर का तापमान 104 डिग्री फॉरेनहाइट से ऊपर चला जाता है। जिससे आपके मस्तिक और अन्य अंगों को सामान्य तौर पर काम करने में रुकावट पैदा करता है। यदि इस स्थिति में अगर आपके शरीर का तापमान 106 डिग्री फॉरेनहाइट से ऊपर चला जाता है तो यह आपके लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
Types of hypothermia? हाइपोथर्मिया के प्रकार
देखा जाए तो आप हाइपोथर्मिया को तीन प्रकार में बांट सकते हैं। इसे शरीर के तापमान के आधार पर बांटा जा सकता है।
- हल्का हाइपोथर्मिया जिसमें शरीर का तापमान 32 से 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
- मध्यम हाइपोथर्मिया जिसमें तापमान 28 से 32 डिग्री सेल्सियस होता है।
- गंभीर हाइपोथर्मिया में तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है।
हाइपोथर्मिया के क्या कारण है?
हाइपोथर्मिया होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।
- कुछ ऐसी बीमारियां होती है जो शरीर के तापमान को बढ़ा देते हैं। जो शरीर के तापमान को अधिक ठंड को प्रभावित कर सकती है। जैसे मधुमेह, गठिया और थाइरॉएड, डिहाइड्रेशन और पार्किंसन आदि।
- शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता को कुछ निम्न दबाव से एंटीसाइकोटिक व सेडेटिवाइस प्रभावित करती है। इन दवाओं का सेवन चिकित्सा के सलाह के अनुसार लेना चाहिए।
- नशीले पदार्थ लेने व शराब का सेवन करने से ठंड महसूस करने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इससे व्यक्ति ठंड के मौसम में बेहोश हो सकता है या व्यक्ति को शरीर के भीतर अधिक गर्मी होने का एहसास हो सकता है। शराब के नशे में होने से व्यक्ति को कोई सुध नहीं होती है कि वह ठंडा या गर्म को अच्छी तरह से महसूस कर सके।
- हाइपोथर्मिया के लक्षण होने पर कपकपी, थकान महसूस करना, तेजी से सांस लेना, त्वचा ठंडा होना, स्पष्ट ना बोल पाना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
- हाइपोथर्मिया का निदान मरीज के लक्षण के आधार पर किया जाता है। चिकित्सा के अनुसार अभी तक कोई स्पष्ट तापमान रीडर नहीं है जो शरीर का तापमान सही तरीके से माफ सके। लेकिन लो रीडिंग पर में मीटर से हमारे शरीर का तापमान मापा जा सकता है। यदि शरीर का तापमान 32 से 33 डिग्री सेल्सियस है तो हम उसे हल्का हाइपोथर्मिया कह सकते हैं। इसके अलावा यदि इसका तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।
हाइपोथर्मिया का इलाज क्या है?
हाइपोथर्मिया का उपचार शरीर के तापमान के सामान्य करने से शुरू होता है। मरीज का तापमान बढ़ने पर देखभाल की अधिक जरूरत पड़ती है और कुछ निम्नलिखित सावधानियां बरतनी की आवश्यकता होती है।
- यदि किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान अत्यधिक हो तो उनके शरीर को अधिक हिलाना डुलाना नहीं चाहिए, इससे कार्डियक अटैक कि संभावना बढ़ सकती है। इसके अलावा ठंड से बचाएं वह हाथ और पैर को अधिक रगड़ना नहीं चाहिए।
- पीड़ित व्यक्ति के शरीर को गीले कपड़े या तोलिया का इस्तेमाल ना करें। कोशिश करें कि उनी कंबल से पूरे शरीर को अच्छी तरह से ढक दें, लेकिन मुंह को खुला रखें। व्यक्ति को बिल्कुल ले हवा ना लगने दे। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है।
- पीड़ित व्यक्ति के शरीर का तापमान सामान्य करने के लिए गर्म पट्टी करना चाहिए। जैसे बोतल में गर्म पानी या कपड़े में गर्म पानी लगा कर शरीर को गर्माहट देने की कोशिश करें। गरम पट्टी का इस्तेमाल आप छाती को गर्माहट देने के लिए कर सकते हैं।
- अगर किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से हाइपोथर्मिया हुआ है तो चिकित्सा उपचार के लिए नमकीन तरल पदार्थ इंजेक्शन के माध्यम से नसों तक पहुंचाया जाता है। यह शरीर के रक्त में गर्माहट पैदा करने में मदद करता है। इसके अलावा मास्को और नाक में डालने वाली ट्यूब के माध्यम से एयरवे रिंग वार्मिंग की जाती है।
- अगर कोई व्यक्ति अत्यधिक गंभीर अवस्था में है और बेहोश हो रहा है तो ऐसी स्थिति में तुरंत आपको एंबुलेंस को कॉल करके बुला लेना चाहिए ताकि मरीज को आपातकालीन स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया जा सके। ऐसे में मरीज की सांसे सही से नहीं चल रही है तो मरीज को सीपीआर तुरंत देना चाहिए। लेकिन, अगर मरीज की दिल की धड़कन धीमी हो रही है तो उसे सीपीआर नहीं देना चाहिए।