क्या कभी आपने सोचा है कि जब भी हम अपने घर में टंघी ही नहीं कैलेंडर देखते हैं, चाहे वह हिंदी पंचांग या इंग्लिश कैलेंडर हो दोनों के अनुसार सप्ताह में 7 दिन होते हैं। इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार रविवार सप्ताह का आखिरी दिन होता है। वहीं हम कैलेंडर के हिसाब से ही अपने सभी कार्यक्रम को बनाते हैं। लेकिन, क्या आपने सोचा है कि Why do We Have Seven Days in a Week? – सप्ताह में सात दिन क्यों होते हैं? ना ही सप्ताह में इससे ज्यादा या इससे कम दिन होते हैं। ऐसा क्यों होता है आज हम अपने इस लेख में जानकारी देने वाले हैं।
पूरी दुनिया में, मनुष्य आमतौर पर उसी तरह से अपने कार्यक्रम को व्यवस्थित करता है, जिस तरह से हमारा कैलेंडर या पंचांग होता है। जो संचार, व्यापार, यात्रा और समाचार सहित कई अन्य चीजों के लिए जरूरी है।
इसीलिए हम सभी जानते हैं कि 1 वर्ष में 365 दिन, 1 दिन में 24 घंटे, 1 वर्ष में 12 महीने और इस सप्ताह में 7 दिन होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी खुद से यह सवाल पूछा है कि हम क्यों यह मानकर चलते हैं कि सप्ताह में 7 दिन ही होते हैं?
अगर हम पृथ्वी के परिक्रमा और सूर्य के चक्कर लगाने की बारे में बात करें तो यह बात हमें समझ में आती है, साथ ही साथ चंद्रमा के उतार-चढ़ाव के आधार पर भी हमें समझ में आता है। लेकिन 7 दिन के पीछे कोई स्पष्ट खगोलीय कारण नहीं दिखता है। 7 दिन के बदले अगर सप्ताह 12 दिन का होता तो बहुत से लोगों के लिए यह कष्टप्रद हो सकता था। लेकिन इसके पीछे क्या वास्तविक कारण है कि हम सप्ताह में केवल 7 दिन ही मानते हैं?
Why do We Have Seven Days in a Week? – सप्ताह में सात दिन क्यों होते हैं?
वास्तव में, ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की कुल संख्या नौ मानी गई है। जो इस प्रकार है शनि ग्रह, बृहस्पति, मंगल, शुक्र, चंद्र, सूर्य, राहु और केतु। इन सभी ग्रहों में से राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। इसलिए इनका प्रभाव हमारे जीवन पर छाया के समान ही पड़ता है। इसे देखते हुए उस समय ज्योतिष शास्त्र के द्वारा नौ ग्रह के आधार पर सप्ताह में 7 दिन ही निर्धारित किए गए।
अगर हम अपने प्राचीन इतिहास की झलक देखे तो हम यह पाएंगे कि आमतौर पर उस समय हमारे सौरमंडल में 7 ग्रह को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता था और उन्हीं से प्रेरणा लेकर के सप्ताह में 7 दिन की अवधारणा बनाई गई।
लेकिन, यहां पर सवालिया खड़ा होता है कि यह तो नहीं भारत की बात लेकिन फिर प्राचीन विदेशी सभ्यताओं में भी सप्ताह में 7 दिन ही क्यों माना जाता है?
अगर हम प्राचीन विदेशी सभ्यताओं के बारे में भी बात करें तो यहां पर भी इन सात ग्रह को काफी महत्वपूर्ण माना जाता था।
बेबीलोन की सभ्यता में चंद्रमा की कलाओं से प्रेरणा लेकर के सात दिन की अवधारणा दी गई। बेबीलोन के निवासी चंद्रमा की कलाओं के पूरा होने तक साथ उत्सव मनाते थे और बाद में यही 7 दिन के उत्साह सप्ताह के 7 दिन में बदल गए।
यहूदियों के समय में भी इस कार्य को अपनाया गया था और 7 ग्रह के आधार पर 7 दिन को बनाया गया था। इस प्रकार से सप्ताह में 7 दिन की अवधारणा प्राचीन समय से ही अनेक सभ्यताओं ने दी जो कि हम आज भी मानते आ रहे हैं।
मेसोपोटामिया की अवधारणा
हजारों वर्षों से, ब्रह्मांड ने मनुष्य को मोहित किया है। लेकिन, हमारी पूरी यह दुनिया मे सबसे पहले खगोलविद लोगों के नाम में बेबीलोनिया के लोगों का नाम सबसे ऊपर आता है। यह वह लोग थे जिन्होंने सबसे पहले चंद्रमा की कलाएं को चार्ट के रूप में क्रमबद्ध चरणों में रिकॉर्ड किया था।
जैसे कि आप में से कुछ लोग जानते हैं चंद्रमा को अपने सभी चरणों से गुजरने में लगभग 29 दिन लगते हैं। जो हमारे महीनों की लंबाई का व्याख्या करता है। हाला की माप के रूप में 29 दिन काफी बोझिल होते हैं। इसीलिए जिस तरह से 1 साल में 365 दिन होते हैं उससे 29 दिनों में विभाजित करने की आवश्यकता होती है। और इसी तरह से इस 29 दिन को सप्ताह में विभाजित करने की आवश्यकता होती है।
बेबीलोन के लोगों ने एक पूरे चंद्रमा चक्र को 28 दिन के रूप में मानने का फैसला किया और फिर से उसे प्रत्येक 7 दिन के 4 सप्ताह में विभाजित किया। यह सुनिश्चित करने के लिए 29 दिन का हिसाब रखा गया था। उन्होंने वहां जोड़ा जो लिप दिनों के रूप में जाना जाता था। इस तरह से उन्होंने महीने को 7 दिन के सप्ताह में गिनना आरंभ किया। आखरी सातवां दिन बेबी लोन के लोग इसे पवित्र दिन मानते थे। जैसा कि यहूदी और ईसाई आबादी ने किया और बेबीलोन के लोगों का अपना धर्म था।
कैलेंडर का इतिहास – History of Calendar
प्राचीन इतिहास में, जैसे जैसे कई साम्राज्य आते गए उन्होंने अपने सामाजिक जीवन जैसे कि खेती, व्यापार आदि इन बातों से विशेष प्रभावित होते हुए अपना खुद का कैलेंडर बनाया। नए वर्ष की शुरुआत कैसे करें इसके लिए किसी महत्वपूर्ण घटना को आधार माना गया। किसी राजा की गद्दी पर बैठने की घटना से गिनती शुरु तो कहीं शासकों के नाम से जैसे रोम, यूनान आदि से गिनती शुरू होती थी।
वही बाद में ईसा के जन्म या हजरत मोहम्मद साहब द्वारा मक्का छोड़कर जाने की घटना से कैलेंडर बने और प्रचलित भी हुए थे।
लेकिन, दुनिया का का सबसे पुराना कैलेंडर रोम का राजा न्यूमा पंप्लियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्व भर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसापुर में पहली शताब्दी में बनाया गया कैलेंडर की है।
जुलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिष सोसिजिनीस जी सहायता ली थी। इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से 46 वर्ष पूर्व लागू किया गया था।
जुलियस सीजर द्वारा बनाए गए इस कैलेंडर को इसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से ही की। जन्म के पूर्व के वर्ष B.C (Before Christ) हिंदी में ईसा पूर्व, और बाद का वर्ष A.D (After Death) घर आएगा हिंदी में ईस्वी कहलाया। जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। 100 वर्षों को एक शताब्दी कहा जाता है।
संसार के सभी देश अब एक समय मानते हैं और आपस में तालमेल बैठा करके घड़ियों को शुद्ध रखते हैं। आज समय की पाबंदी बड़ी महत्वपूर्ण हो गई है और लोग उसका मूल्य समझने लगे हैं।