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What is Macroeconomics? – मैक्रोइकोनॉमिक्स क्या है?

अर्थशास्त्र के विषय में Macroeconomics का जिक्र बार-बार किया जाता है। आज के हमारे इस लेख में हम इसी बारे में बात करेंगे कि मैक्रो इकोनॉमिक्स क्या है? इसका इतिहास क्या है? और साथ में अर्थशास्त्र की दृष्टि में इसे हम क्या से परिभाषित कर सकते हैं? What is Macroeconomics? – मैक्रोइकोनॉमिक्स क्या है?

What is Macroeconomics? – मैक्रोइकोनॉमिक्स क्या है?

Macroeconomics को हिंदी में समष्टी अर्थशास्त्र कहते हैं। माइक्रो इकोनॉमिक्स अर्थशास्त्र की एक शाखा है जिसके माध्यम से हम समग्र अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर संचालित होने वाले बाजार प्रणाली व्यवहार के अध्ययन के लिए करते हैं।

अगर हम सरल एवं साधारण शब्दों में इसे परिभाषित करें तो, “माइक्रो इकोनॉमिक्स अर्थशास्त्र की भाषा का है जोया अध्ययन करती है कि एक पूरी अर्थव्यवस्था वह बार करती है, इसके अंतर्गत हम महंगाई, कीमतों के स्तर, आर्थिक वृद्धि की दर (GDP) , राष्ट्रीय आय, सकल घरेलू उत्पाद, बेरोजगारी में बदलाव जैसे अर्थव्यवस्था की व्यापक घटकों का अध्ययन करते हैं”।

अंग्रेजी भाषा का Macro शब्द ग्रीक भाषा के Makros से लिया गया है जिसका अर्थ व्यापक या बड़ा होता है। माइक्रो इकोनॉमिक्स में आर्थिक समस्याओं का सारी अर्थव्यवस्था सारी अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है।

History of Macroeconomics – मैक्रोइकोनॉमिक्स का इतिहास?

साल 1933 में सबसे पहले, ओस्लो विश्वविद्यालय नॉर्वे के एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रेगनर फ्रिश (Ragnar Frisch) ने अर्थशास्त्र के अध्ययन को दो भागों में बांटा था।

  • व्यष्टि अर्थशास्त्र – Micro Economics
  • समष्टि अर्थशास्त्र – Macro Economics

व्यष्टि अर्थशास्त्र – Micro Economics

इसके अंतर्गत व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्या जैसे एक उपभोक्ता की समस्या अथवा एक फार्म की कीमत निर्धारण समस्या का अध्ययन किया जाता है। से हम दूसरे शब्दों में कीमत सिद्धांत भी कहते हैं।

समष्टि अर्थशास्त्र – Macro Economics

इसके अंतर्गत पूरे अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। जैसे कि सामूहिक स्तर पर आर्थिक समस्या जैसे सारी अर्थव्यवस्था की कुल उपभोग, कुल रोजगार, राष्ट्रीय आय, सकल घरेलू उत्पाद इत्यादि। इसे इस वजह से कभी कभी आय तथा रोजगार सिद्धांत भी कहते हैं।

परंपरावादी क्लासिक अर्थशास्त्रियों जैसे कि एडम स्मिथ, माल्थस तथा रिकार्डो ने आर्थिक समस्याओं का अध्ययन सामूहिक दृष्टि से करने का प्रयत्न किया था। इस वजह से इन अर्थशास्त्रियों को मैक्रोइकोनॉमिक्स (Micro Economics) का प्रेरक माना जाता है। लेकिन, नव परंपरावादी क्लासिक अर्थशास्त्रियों जैसे कि जॉन मार्शल, पीगु आदि ने Macroeconomics के अध्ययन को अधिक महत्व दिया था।

साल 1930 की महामंदी से पहले अधिकतर अर्थशास्त्री माइक्रो इकोनॉमिक्स के अध्ययन को ही ज्यादा महत्व देते थे। लेकिन साल 1936 में, J.M Keynes की पुस्तक ‘The general theory of Employment, Interest and Money’ के प्रकाशन के बाद अर्थशास्त्रियों के अंदर माइक्रो इकोनॉमिक्स के अध्ययन का महत्व बढ़ गया था।

वर्तमान आधुनिक समय में कई सारे अर्थशास्त्रियों जैसे कि हीक्स, हैन्सन, गार्डनर आदि ने माइक्रो इकोनॉमिक्स के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस तरह से एक बार फिर अगर हम माइक्रो इकोनॉमिक्स को परिभाषित करें तो,

Macro Economics समष्टि अर्थशास्त्र को अर्थशास्त्र की उस शाखा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कि समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक प्रश्नों या आर्थिक समस्याओं का अध्ययन कर सकती है।

इसके अंतर्गत हम बेरोजगारी की समस्या, मुद्रास्फीति की समस्या, राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय, सकल घरेलू उत्पाद, मंदी की समस्या इत्यादि चीजों पर अध्ययन करते हैं। यह समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक चारों पर प्रकाश डालती है। जैसे कि मांग, आपूर्ति, सामान्य कीमतें, राष्ट्रीय आय इत्यादि।

Macroeconomics बनाम Microeconomics दोनों के बीच में क्या अंतर है?

Macro Economics , Micro Economics से बिल्कुल अलग है। जो छोटे कारकों पर ध्यान केंद्रित करता है। जो व्यक्ति और कंपनियों द्वारा किए गए विकल्पों को प्रभावित करते हैं। माइक्रोइकोनॉमिक्स और मैक्रोइकोनॉमिक्स दोनों में अध्ययन किए गए कारक का आमतौर पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।

माइक्रो और मैक्रोइकोनॉमिक्स के बीच में एक महत्वपूर्ण अंतर यह भी है कि मैक्रोइकोनॉमिक्स समूचे कभी-कभी बहुत अलग तरीके से व्यवहार करते हैं या समान सूक्ष्म आर्थिक चर के विपरीत भी हो सकते हैं।

माइक्रो इकोनॉमिक्स के अंतर्गत व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है जबकि माइक्रो इकोनॉमिक्स के अंतर्गत संपूर्ण अर्थव्यवस्था या समूह का अध्ययन किया जाता है। माइक्रो इकोनॉमिक्स नाशवान व्यक्ति का अध्ययन करता है जबकि मैक्रोइकोनॉमिक्स अविनाशी समाज का अध्ययन करती है। इन सबके अलावा भी दोनों की बीच में काफी अंतर है जिसे हम कुछ बिंदुओं द्वारा नीचे बता रहे हैं।

  • माइक्रोइकोनॉमिक्स के अंतर्गत हम विशिष्ट आर्थिक इकाइयों का अध्ययन करते हैं जिनमें समय के साथ-साथ तेजी से परिवर्तन होता है। जबकि माइक्रो इकोनॉमिक्स में हम सामूहिक आर्थिक इकाइयों का अध्ययन करते हैं जिनमें परिवर्तन की गति धीमी होती है।
  • माइक्रोइकोनॉमिक्स पूर्ण रोजगार की है, मानवता पर आधारित है इसके ठीक उल्टा माइक्रो इकोनॉमिक्स अपूर्ण रोजगार की अवस्था को एक सामान्य अवस्था मानता है।
  • एक व्यक्तिगत इकाई पर लागू किए जाने वाले निष्कर्ष संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू नहीं होते हैं। माइक्रो इकोनॉमिक्स की प्राकृति अल्पाधिकार के समान है जबकि प्रोफेसर मेहता मानते हैं कि मैक्रो इकोनॉमिक्स क्रॉस अर्थव्यवस्था पर आधारित है।

Scope of Macroeconomics – मैक्रोइकोनॉमिक्स का दायरा

मैक्रोइकोनॉमिक्स अर्थशास्त्रियों के लिए अध्ययन का एक अवश्य क्षेत्र है। इसका दायरा काफी बड़ा है। सरकार, वित्तीय निकाय और शोधकर्ता देश के सामान्य राष्ट्रीय मुद्दों और आर्थिक कल्याण का विश्लेषण करते हैं। मैक्रोइकोनॉमिक्स सिद्धांत में आर्थिक विकास, राष्ट्रीय आय, धन, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, रोजगार और सामान्य मूल्य स्तर शामिल है। देखा जाए तो यह मुख्य रूप से मैक्रोइकोनॉमिक्स सिद्धांतों और नीतियों के प्रमुख मूल सिद्धांतों को शामिल करता है।

इसके ठीक विपरीत, माइक्रो इकोनॉमिक्स नीतियां राजकोषीय और मौद्रिक नीतियां को कवर करती है। भारत में बेरोजगारी सामान्य मूल्य स्तर, या भुगतान संतुलन में असमानता जैसी समस्याओं का अध्ययन व्यापक आर्थिक अध्ययन का ही एक हिस्सा है।

मैक्रोइकोनॉमिक्स के दायरे में कई विषय आते हैं जिसके सूची हम नीचे दे रहे।

व्यापक आर्थिक सिद्धांत

यह समझ में आता है कि सरकार एक राष्ट्र की नियामक संस्थान है। यह विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करता है जो नागरिक के जीवन को सीधा प्रभावित करते हैं। मैक्रो इकोनॉमिक्स के दायरे में यह सिद्धांत आते हैं।

1. आर्थिक विकास और विकास का सिद्धांत

एक अर्थव्यवस्था का विकास भी मैक्रो इकोनॉमिक्स के अध्ययन किसके अंतर्गत आता है। मैक्रोइकोनॉमिक्स के दायरे के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के संसाधनों और क्षमताओं का मूल्यांकन किया जा सकता है। या पर्यावरणीय स्तर पर राष्ट्रीय आय और उत्पादन में वृद्धि को प्रभावित करता है। इनका किसी अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है।

2. धन का सिद्धांत

मैक्रोइकोनॉमिक्स अर्थव्यवस्था पर रिजर्व बैंक के प्रभाव, पूंजी के प्रभाव और नौकरी की दरों पर इसके प्रभाव का आकलन करता है। मुद्रास्फीति और अपस्पीति के कारण धन के मूल्य में बराबर होने वाले परिवर्तन का देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों और प्रत्यक्ष आर्थिक नियंत्रण के उपाय करके उन्हें ठीक किया जा सकता है।

3. राष्ट्रीय आय का सिद्धांत

इसके अंतर्गत राजस्व, व्यय और बजट सहित राष्ट्रीय आय को मापने से संबंधित विभिन्न विषय शामिल है। राष्ट्रीय आय के संदर्भ में अर्थव्यवस्था के समग्र प्रदर्शन का आकलन करने के लिए व्यापक आर्थिक अध्ययन महत्वपूर्ण है। साल 1930 के दशक की महामंदी की शुरुआत में, सामान्य अति उत्पादन और बेरोजगारी के कारण की जांच करना आवश्यक था।

इसे राष्ट्रीय आय पर डेटा का निर्माण हुआ। यह विभिन्न नागरिकों के बीच आर्थिक गतिविधि और आई वितरण के स्तर का पूर्व अनुमान लगाने में मदद करता है।

4. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धांत

यह उत्पादों या सेवाओं के निर्यात और आयात पर ध्यान केंद्रित करने वाला अध्ययन का क्षेत्र है। संक्षेप में, यह सीमा पर वाणिज्य और सीमा शुल्क के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव को इंगित करता है।

5. रोजगार का सिद्धांत

मैक्रोइकोनॉमिक्स का याद दायरा बेरोजगारी के स्तर को निर्धारित करने में सहायता करता है। यह उन कारणों को भी निर्धारित करता है जो बेरोजगारी की ऐसी स्थिति को जन्म देते हैं। इसीलिए यह उत्पादन, आपूर्ति, उपभोक्ता मांग, उपभोग और व्यय व्यवहार को प्रभावित करता है।

6. सामान्य मूल्य स्तर का सिद्धांत

यह किसी कमोडिटी की कीमतों के अध्ययन को संदर्भित करता है और मुद्रास्फीति या अपस्पीति के कारण विशिष्ट मूल्य दरों में क्या सही उतार-चढ़ाव होता है इस पर भी अध्ययन किया जा सकता है।

निष्कर्ष

आज के हमारे इस लेख में हमने आप सभी लोगों को इस बारे में जानकारी उपलब्ध कराई है कि, What is Macroeconomics? – मैक्रोइकोनॉमिक्स क्या है? आज के हमारे इस लेख के द्वारा आपको यह समझ में आ गया होगा कि हमारी अर्थव्यवस्था में इसका क्या महत्व है? आप यह समझ सकते हैं कि मैक्रोइकोनॉमिक्स अर्थशास्त्र का एक विशेष क्षेत्र है। यह संपूर्ण राशि पर प्रभाव को निर्धारित करने के लिए अलग-अलग इकाइयों के योग के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करता है। सभी प्रमुख नीतियां और उपाय इसी अवधारणा पर आधारित है। उदाहरण के लिए, प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय आय का निर्धारण करती है। जो कि देश के सभी नागरिकों की कुल कमाई का औसत होता है।

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