History of Indian Banks – भारतीय बैंकों का इतिहास

History of Indian Banks – भारतीय बैंकों का इतिहास भारतीय बैंकों का इतिहास काफी पुराना है। भारतीय बैंकिंग का इतिहास साल 1770 में शुरू हुआ था। जब यूरोपियन पाटन में प्रथम बैंक “बैंक ऑफ हिंदुस्तान” (Bank of Hindustan) की स्थापना की गई थी। लेकिन यह बैंक साल 1830 आते आते बंद हो गया था। इसके बाद साल 1786 में ‘ जनरल बैंक ऑफ इंडिया’ की स्थापना की गई जो फिर बाद में जाकर के असफल सिद्ध हुई और 1791 में बंद हो गई थी।

भारतीय बैंकिंग प्रणाली लगभग 300 साल पुरानी है। अंग्रेजों का भारत में आगमन के साथ ही भारत में बैंक काफी तेजी से पहले थे। भारतीय बैंकों को आजादी के बाद राष्ट्रीय कृत भी किया गया। जिससे वर्तमान समय में इनकी संख्या 20 से 7 रह गई है। अधिकतर बैंकों को साल 2020 में विलय कर के एक बैंक बना दिया गया है। वही, बैंकों के प्राइवेटाइजेशन के बात भी की जा रही है।

आज हम अपने इस लेख पर भारतीय बैंकों के इतिहास History of Indian Banks – भारतीय बैंकों का इतिहास  के बारे में विस्तार से जानकारी लेंगे।

History of Indian Banks – भारतीय बैंकों का इतिहास

भारतीय बैंकों का इतिहास काफी पुराना है। भारत में बैंकों की स्थिति पहले इतनी अच्छी नहीं थी। कई सारे बैंक शुरुआती दौर पर डूब गए थे। बाद में सरकारी संस्थान और सरकार ने बैंकों को सहायता प्रदान की, जिससे कि हर आम नागरिक बैंक का फायदा उठा सके। इसी के अंतर्गत कई सारे बैंकों को राष्ट्रीयकृत भी किया गया था।

1949 के बैंकिंग कंपनी अधिनियम के अनुसार, बैंक एक ऐसी वित्तीय संस्थान के रूप में परिभाषित किया गया है, जो जनता से उधार या निवेश, मांग पर चुकाने, चेक ड्राफ्ट, ऑर्डर आदि अन्य द्वारा दे के साथ जमा स्वीकार करती है।

यह बैंक की परिभाषा है। अगर भारतीय बैंकिंग इतिहास को अलग-अलग द्वार पर वर्गीकृत किया जाए तो हम इसे तीन चरणों में वर्गीकृत कर सकते हैं।

  1. स्वतंत्रता से पूर्व की बैंकिंग व्यवस्था – 1947 से पहले
  2. II Phase – 1947 से वर्ष 1991 तक
  3. III Phase – 1991 से अभी तक

बैंकिंग के इतिहास में यह तीनों चरण काफी महत्वपूर्ण है। हम तीनों चरणों के बारे में विस्तार से जानकारी लेंगे। भारत में, बैंकिंग और मिनिमम के प्रमाण हमारे शास्त्रों एवं प्राचीन ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। हमारे ग्रंथों में ऋण का उल्लेख हमारे वैदिक साहित्य में भी पढ़ने को मिलता है। बैंकिंग उत्पादों का उदाहरण चाणक्य के अर्थशास्त्र लगभग 300 ईसा पूर्व भी देखा गया है। बैंकिंग प्रणाली की दृष्टि में पहली बार बैंकिंग या बैंक शब्द का इस्तेमाल इटली के लोगों द्वारा ” बैंकॉ” BANCO शब्द से की गई थी।

स्वतंत्रता से पहले की बैंकिंग व्यवस्था वर्ष 1947 से पहले – History of Indian Bank before 1947

भारत में स्वतंत्रता से पहले बैंकों की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। भारत में मौजूद बैंक की वित्तीय स्थिति काफी खराब थी और इन बैंकों का डूबना आम बात था। एक रिपोर्ट के अनुसार देखा जाए तो भारत में स्वतंत्रता से पहले 600 से भी ज्यादा बैंक मौजूद थे। भारत में बैंकिंग प्रणाली की शुरुआत 1770 में कलकत्ता, बैंक ऑफ हिंदुस्तान की स्थापना के साथ शुरू हुआ था। इस बैंक ने साल 1832 तक कार्य किया इसके बाद यह बैंक भी डूबने के कगार पर आ पहुंची थी।

बैंक ऑफ हिंदुस्तान के बाद में भारत में कई सारे बैंकों की स्थापना की गई। लेकिन, इनमें से ज्यादातर बैंक सफलतापूर्वक कार्य करने में असफल रही थी। इनमें से ज्यादातर बैंक धोखाधड़ी और वित्तीय संसाधनों का सही से उपयोग ना कर पाने की वजह से डूबने के कगार पर पहुंच गई थी।

इसके बाद जनरल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना 1786 में हुई थी लेकिन यह बैंक भी 1791 तक पहुंचते-पहुंचते असफल रही थी।

अवध कमर्शियल बैंक की स्थापना 1881 में भारत के पहले वाणिज्य बैंक के रूप में किया गया था। यह बैंक भी वर्ष 1958 तक ही चल पाई थी। स्वतंत्रता से पूर्व की कई सारे बैंक कुछ सफल रही तो कुछ डूबने के कगार तक जा पहुंची थी। लेकिन वर्तमान समय में कुछ ऐसे भेज दी है जो सफलतापूर्वक कार्य करते आ रहे हैं। इन बैंकों का अस्तित्व स्वतंत्रता से पहले भी था और स्वतंत्रता के बाद भी इन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान दिया है।

बैंक ऑफ़ बंगाल जिसकी स्थापना 1806 ईसवी में की गई थी, इसके साथ ही बैंक ऑफ मुंबई जिसकी स्थापना वर्ष 1840, और बैंक ऑफ़ मद्रास वर्ष 1843 मैं की गई थी इन्हें साल 1921 में विलय करके एक बैंक बना दिया गया। इस बैंक का नाम इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया रखा गया था।

इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया को साल 1955 में परिवर्तित करके स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (State Bank of India) कर दिया गया। अप्रैल 1935 में, हिल्टन यंग कमिशन जो कि साल 1926 में स्थापित की गई थी उसकी सिफारिश के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।

स्वतंत्रता से पहले के अधिकांश बैंकों का आकार काफी छोटा था और उनमें से कई असफलता से ग्रसित थे। फल स्वरूप, इन बैंकों में जनता का विश्वास कम होता जा रहा था और इन बैंकों का धन संग्रह भी अधिक नहीं था। यही वजह थी कि लोगों में असंगठित क्षेत्र जैसे साहूकार और स्थानीय बैंकर पर उनका भरोसा अधिक था।

भारतीय बैंकों का इतिहास दूसरा चरण 1947 से लेकर के 1991 तक – History of Indian Bank II Phase during year 1947 to  1991

दूसरे चरण की मुख्य विशेषता यह है कि इस चरण में अधिकतर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। आर्थिक योजना के दृष्टिकोण से, भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण प्रभावी समाधान के रूप में उभरकर के सामने आया।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले जितने भी वाणिज्य बैंक थे उनकी अपनी अपनी अलग-अलग स्वतंत्र नीति होती थी और उनका उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ कमाना होता था। जो स्वाभाविक ही माना जाना चाहिए क्योंकि इन बैंकों का अधिकतर शेयर धारक कुछ गिने-चुने पूंजीपति व्यक्ति थे। जो कि अपने हितों की रक्षा के साथ निजी हिताधिकारियों कोई बैंकिंग सेवाएं एवं सुविधाओं का लाभ पहुंचाते थे।

समाज के गरीब, कमजोर वर्ग, दलित तथा सामान्य ग्रामीण तबके के लोगों के लिए बैंक किस चिड़िया का नाम होता था। इन तबके के लोगों को बैंक प्रणाली के बारे में किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नहीं थी।

यही वजह थी कि ज्यादातर निचले तबके के लोग दिन प्रतिदिन सेठ साहूकार एवं महाजनों की सुध के नीचे इतने दब गए थे कि जीवन की असली पहचान तक भूल गए। भारतवर्ष असल में ग्राम में ही बसा है और ग्रामों में किसान एवं खेतिहर मजदूर बसते हैं। बैंक राष्ट्रीयकरण के पूर्व किसानों की हालत इतनी खराब होती थी कि उनके बारे में एक कड़वा सत्य कहा जाता था कि भारतीय किसान कर्ज में ही जन्म लेता है। कर्ज में ही पलता है और पीछे कर्ज छोड़ कर के ही मरता है। History of Indian Bank

परिणाम स्वरूप ऐसी दशा में पूंजीपति अधिक धनवान होते गए तथा निर्धन और भी गरीब कि वह दो वक्त की रोटी भी जुटा नहीं पाते थे। इससे पूरे भारत वर्ष में भयंकरा सामाजिक असंतुलन का संकट पैदा हो गया था। ऐसी स्थिति में, एक ही उपाय बच गया था कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। ताकि, आम नागरिकों एवं गरीब तबके के लोगों तक बैंकिंग व्यवस्था पहुंच सके। राष्ट्रीयकरण के बाद राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर इसका असर दिखाई दिया और जल्द ही भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था सुधरने लगी थी। आम नागरिकों के लिए एवं गरीब तबके के लोगों के लिए बैंकिंग व्यवस्था चालू कर दी गई।

इस अवधि के दौरान बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। वर्ष 1949 में भारत के केंद्रीय बैंक (Central Bank of India) का भी राष्ट्रीयकरण किया गया। नरसिम्हा समिति की सिफारिश के साथ ही क्षेत्र ग्रामीण बैंकों का गठन 2 अक्टूबर 1975 को किया गया था।

भारतीय बैंकों का इतिहास तीसरा चरण – History of Indian banks III Phase

तीसरे चरण में वर्ष 1991 में भारत की बैंकिंग व्यवस्था को सुधार एवं प्रगति को सुनिश्चित करने के लिए उदार आर्थिक नीतियों का गठन किया गया। यह चरण कई मायनों में विस्तार, समेकन और वेतन वृद्धि का चरण था। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 10 निजी संस्थाओं को लाइसेंस भी दिए। इन निजी संस्थाओं को बैंकिंग लाइसेंस दे कर के अच्छी पेशकश की गई थी। इन बैंकों में शामिल थे:-

  • ICICI Bank
  • Axis Bank
  • HDFC Bank
  • DCB Bank
  • Indusland Bank

भारतीय बैंकों की वर्तमान स्थिति – Current situation of Indian Bank

भारत में बैंक प्रणाली वर्तमान समय में सप्लाई, प्रोडक्ट रेंज और reach-even के मामले में काफी परिपक्व हो गई है। वर्तमान समय में अगर कोई आपसे यह कहे कि बैंक कितने तरह के हैं। तो आप थोड़े सोच में पड़ जाएंगे। आपके हिसाब से किसी भी बैंक की परिभाषा कुछ ऐसी होगी, ” एक ऐसी जगह जहां पर आप अपने पैसों को सुरक्षित रखते हैं और वित्तीय लेनदेन करते हैं।” लेकिन यहां पर सही तो है लेकिन यह बहुत ही सीमित परिभाषा है।

जी हां इस आम लेनदेन से अलग पूरी दुनिया में बैंकिंग के तौर पर और भी बहुत कुछ होता है। बैंकिंग के काम भी अलग-अलग होते हैं और वे उनकी सेवा देने का माध्यम भी बहुत अलग होता है। इनमें से कुछ बैंक का नाम तक भी आपने नहीं सुना होगा। यहां हम आपको वर्तमान समय में बैंकों के स्वरूप के बारे में जानकारी देंगे।

भारत में बैंकिंग के प्रकार – Types of Banking System in India

वैसे तो बैंकिंग के किस्मों की बात करते हुए एक बात साफ कर देना चाहिए कि इनके काम में इतना ज्यादा फर्क नहीं है कि आप इन के बीच अंतर की एक मोटी लाइन खींच पाए। बल्कि बहुत ही महीन अंतर की वजह से इनके काम करने का तरीका बदल जाता है और यह अलग-अलग तरह के अपने कस्टमर या ग्राहक को सेवाएं देते हैं। बैंकों के प्रकार की एक सूची हम नीचे दे रहे हैं। History of Indian Bank

  1. Retail banking – रिटेल बैंकिंग
  2. वाणिज्य बैंक – commercial banking
  3. इन्वेस्टमेंट बैंक – investment banking
  4. केंद्रीय बैंक – Central banking
  5. क्रेडिट यूनियन या लघु ऋण संगठन – credit union banking
  6. ऑनलाइन बैंकिंग – online banking
  7. म्यूच्यूअल बैंकिंग – Mutual banking
Sharing Is Caring:

दोस्तों में, facttechno.in का संस्थापक हूं। मैं अपनी इस ब्लॉग पर टेक्नोलॉजी और अन्य दूसरे विषयों पर लेख लिखता हूं। मुझे लिखने का बहुत शौक है और हमेशा से नई जानकारी इकट्ठा करना अच्छा लगता है। मैंने M.sc (Physics) से डिग्री हासिल की है। वर्तमान समय में मैं एक बैंकर हूं।

बिरसा मुंडा का जीवन परिचय

बिरसा मुंडा का जीवन परिचय

बिरसा मुंडा एक महत्वपूर्ण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी थे, जो झारखंड के मुक्तिसेना आंदोलन के नेता थे। उन्होंने आदिवासी और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और उनके समर्थन…

राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय भारतीय समाज सुधारक, विद्वान, और समाजशास्त्री थे। वे 19वीं सदी के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यमी और समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में अंधविश्वास, बलात्कार, सती प्रथा, और दाह-संस्कार…

महर्षि दयानंद सरस्वती

महर्षि दयानंद सरस्वती की जीवनी

महर्षि दयानंद सरस्वती, जिन्हें स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम से भी जाना जाता है, 19वीं सदी के महान धार्मिक और समाज सुधारक थे। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, जो…

एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, भारतीय राष्ट्रपति और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम…

डॉ भीमराव आंबेडकर जीवनी

डॉ भीमराव आंबेडकर जीवनी

डॉ. भीमराव आंबेडकर, भारतीय संविधान निर्माता, समाजसेवी और अधिकारिक हुए। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में अनेक क्षेत्रों…

कालिदास का जीवन परिचय

कालिदास का जीवन परिचय

कालिदास भारतीय साहित्य का एक प्रमुख नाम है जिन्हें संस्कृत का महाकवि माना जाता है। उनका जन्म और जीवनकाल निश्चित रूप से नहीं पता है, लेकिन वे आधुनिक वास्तुगामी मतानुसार…

Leave a Comment