What is Monetary Policy? मौद्रिक नीति क्या है?

What is Monetary Policy? मौद्रिक नीति क्या है? मौद्रिक नीति का उद्देश्य, मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरण इत्यादि विषय के बारे में आजम अपने इस लेख में चर्चा करने वाले हैं। मौद्रिक नीति के बारे में जानना बहुत ही जरूरी हो जाता है। क्योंकि केंद्रीय बैंक यानी कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा हर साल मौद्रिक नीति बनाई जाती है जिसका असर आम जनता के ऊपर भी पड़ता है।

आज के हमारे इस लेख में हम इस बारे में जानकारी लेंगे की What is Monetary Policy? मौद्रिक नीति क्या है? इसके साथ ही हम इस बारे में भी चर्चा करेंगे की मौद्रिक नीति का उद्देश्य क्या है? किसी भी देश में मौद्रिक नीति की आवश्यकता क्यों पड़ती है।

What is Monetary Policy? मौद्रिक नीति क्या है?

मौद्रिक नीति (Monetary Policy) सरकार तथा केंद्र बैंक की उस नियंत्रण नीति को कहा जाता है जिसके अंतर्गत कुछ निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मुद्रा की मात्रा, उसकी लागत अर्थात ब्याज दर तथा उसके उपयोग को नियंत्रित करने के उपाय किए जाते हैं।

वर्तमान समय में जब मौद्रिक प्रबंधन का उत्तरदायित्व केंद्रीय बैंक को सौंप दिया गया है। यानी कि भारत में मौद्रिक नीति बनाने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा मौद्रिक नीति बनाई जाती है। मौद्रिक नीति का उपयुक्त अर्थ मान लेने पर यह कहा जा सकता है कि मौद्रिक नीति से अभिप्राय केंद्रीय बैंक की साख नियंत्रण नीति से है। लेकिन इसे आप मौद्रिक नीति का एक संकुचित अर्थ ही निकाल पाते हैं।

विस्तृत अर्थ में मौद्रिक नीति के अंतर्गत मुद्रा की मात्रा तथा लागत आदि को प्रभावित करने वाले मौद्रिक उपायों के अतिरिक्त ऐसे आमौद्रिक नीतियां और उपाय भी शामिल किए जाते हैं जिनका प्रभाव देश की मौद्रिक स्थिति पर भी पड़ता है।

पौल एनजीग (Paul Einzig) के मुताबिक मौद्रिक नीति में वह सब मौद्रिक निर्णय तथा उपाय, सम्मिलित किए जाते हैं जिनके उद्देश मौद्रिक हों अथवा अमौद्रिक तथा वे सब मौद्रिक निर्णय तथा उपाय जिनका उद्देश्य मौद्रिक प्रणाली पर प्रभाव डालता है सम्मिलित किए जाते हैं। मौद्रिक नीति का विस्तृत अर्थ स्वीकार कर लेने पर कीमत तथा मजदूरी नियंत्रण, व्यापार एवं निवेश नियंत्रण तथा बेरोजगारी को समाप्त करने, बजट नीति तथा आए नीति संबंधी व अमौद्रिक उपाय मौद्रिक नीति में सम्मिलित किए जा सकते हैं जिनका प्रमुख उद्देश्य मौद्रिक स्थिति को प्रभावित करना होता है।

कुछ अर्थशास्त्री मौद्रिक नीति के अलग अस्तित्व को मानते ही नहीं, बल्कि इसे राजकोषीय नीति तथा ऋण प्रबंधन के साथ मिलाकर राष्ट्र की वित्तीय नीति (National financial Policy) का ही एक अंग मानते हैं। लेकिन विश्लेषण के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि मौद्रिक नीति को अन्य आर्थिक नीतियों से स्वतंत्र ना मानते हुए भी इसका अध्ययन अलग से किया जाना चाहिए।

मौद्रिक नीति अपना कार्य मुख्यता मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन के द्वारा करती है। इससे मुद्रा के रूप में व्यक्त किए जाने वाले उत्पादन की कुल मांग प्रभावित होती है। यही मांग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों हो सकते हैं। जैसा की मुद्रा परिमाण सिद्धांत बताता है अथवा ब्याज दरों के माध्यम से अप्रत्यक्ष, जैसे कि कैन्स ने बताया है। इसकी दो विशेषताएं उल्लेखनीय है। पहली यह तो एक सामूहिक प्रभाव वाली नीति है इसका अर्थ प्रभाव संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। दूसरी विशेषता यह है कि यह केवल मांग पक्ष को प्रभावित करती है। वस्तु बाजार में पूर्ति की स्थिति को नहीं, जब की साख नीति उत्पादन की पूर्ति को भी प्रभावित कर सकती है। इस प्रकार मौद्रिक नीति को साख नीति के साथ संवत करना आवश्यक होता है। मौद्रिक नीति के मुख्य अस्त्र साख नियंत्रण के उपाय ही होते हैं।

मौद्रिक नीति (Monetary Policy) केंद्रीय बैंक की दृष्टि में

मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी भी राष्ट्र के केंद्रीय बैंक द्वारा विभिन्न उपकरणों जैसे कि कैश रिजर्व रेशों (CRR), वैधानिक तरलता अनुपात (SLR), बैंक दर, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर आदि के उपयोग से मुद्रा और ऋण की उपलब्धता पर नियंत्रण स्थापित करना है। भारत के अभी बारे में केंद्रीय बैंक “भारतीय रिजर्व बैंक” है।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुद्रा पर उपयुक्त नियंत्रण रखना बहुत ही जरूरी होता है। भारत में मौद्रिक नीति भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा बनाया जाता है। अर्थव्यवस्था में मुद्रा के संकुचन एवं प्रसार को नियंत्रित करता है। भारत में मौद्रिक नीति प्रत्येक 2 माह में बनाया जाता है। मौद्रिक नीति बनाने वाले इस MPC – Monetary Policy Committee मे कुल 6 सदस्य होते हैं और इसकी अध्यक्षता रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर करते हैं।

मौद्रिक नीति का क्या उद्देश्य है? What are the Objectives of Monetary Policy?

जैसा कि हम ने बताया कि भारत में मौद्रिक नीति भारत की केंद्रीय बैंक की आने की रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा बनाया जाता है। मौद्रिक नीति, का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर साफ-साफ देखा जाता है। इससे वित्तीय संस्थानों के साख नीति पर भी नियंत्रण रखा जाता है। मौद्रिक नीति के निम्नलिखित मुख्य उद्देश है :-

  1. वित्तीय मूल्य स्थिरता – Financial Price Stability
  2. विनियमन दर से स्थायीत्व – Stability by Regulation Rate
  3. रोजगार सृजन – Employment Generation
  4. विकास – Development

वित्तीय मूल्य स्थिरता – Financial Price Stability :- मूल्य में स्थिरता का सामान्य अर्थ है बाजार में उत्पादों के मूल्य में तेजी से गिरावट या बढ़ोतरी होने से रोकना। यदि किसी भी अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा पर नियंत्रण ना रखा जाए तो अर्थव्यवस्था में स्थिरता खत्म हो जाती है।

चलिए हम इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं :- मान लेते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था में लोगों के पास पैसे की मात्रा बढ़ जाए तो लोगों के पास क्रय शक्ति बढ़ जाएगी। यानी कि अर्थव्यवस्था में लोगों के पास पैसे अधिक होंगे। जिसके चलते किसी भी उत्पाद का दाम बढ़ने लगेगा और मुद्रास्फीति प्रभावित होगी। जिससे लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में काफी प्रभाव देखने को मिलेगा। इसमें से स्थिरता बनाए रखने के लिए मौद्रिक नीति से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता बनाए रखती है।

विनियमन दर से स्थायीत्व – Stability by Regulation Rate :- विनयमन दर से स्थायित्व से मतलब यही कि विदेशी मुद्रा से तुलनात्मक मूल्य होता है। अगर इस पर नियंत्रण ना रखा जाए तो भारतीय मुद्रा का मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी नीचे गिर जाएगा। जिससे हमारे अर्थव्यवस्था पर काफी ज्यादा प्रभाव होता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि विदेशों में बनने वाली कोई चीज हमें काफी महंगी पड़ेगी। भारतीय रुपया का अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरना, जिसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में किसी विदेशी वस्तु के मूल्य में वृद्धि का कारण होती है।

रोजगार सृजन :- मौद्रिक नीति के द्वारा रोजगार के सृजन को बढ़ावा दिया जाता है। लेकिन मौत इस नीति में रोजगार सृजन को वित्तीय मूल्य स्थिरता के लक्ष्य के बाद ही जगह दी जाती है।

विकास :- मौद्रिक नीति, देश की आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण घटक होता है। देश का आर्थिक विकास ही इस का परम उद्देश्य होता है।

मौद्रिक नीति के उपकरण

मौद्रिक नीति का निर्माण रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ‘मौद्रिक नीति समिति’ द्वारा किया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत स्थापित एक सांविधिक निकाय है। यह आर्थिक विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुद्रा स्थिरता को बनाए रखने हेतु कार्य करती है।

मुद्रा नीति समिति भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति है जिसका गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिए 27 जून वर्ष 2016 को किया गया था। मौद्रिक नीति के लिए निम्नलिखित उपकरण है जिससे आप प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष उपकरण के रूप में बांट सकते हैं।

1. प्रत्यक्ष उपकरण

इसके अंतर्गत उन उपकरणों को रख सकते हैं जिसका मुद्रा की मात्रा पर प्रत्यक्ष नियंत्रण होता है:-

  • कैश रिजर्व रेशों (CRR – Cash Reserve Ratio) – भारत में मौजूद सभी घरेलू बैंकों को अपने पास उपलब्ध पैसों में से केंद्रीय बैंक के पास कुछ पैसे रिजर्व के रूप में रखना होता है। घरेलू बैंकों को यह पैसे एक अनुपात में रखना होता है जिसे CRR – कैश रिजर्व रेशों कहते हैं। भारत में वर्तमान समय में कैश रिजर्व रेश्यो 3% है। जिसे समय-समय पर केंद्रीय बैंकों को अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को कम करना होता है तो वह रिजर्व रेश्यो को बढ़ा देते हैं। जिससे कि बैंक के पास, उपलब्ध मुद्रा में कमी आती है और बैंक लोन देने में कमी करते हैं। इसके ठीक विपरीत अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को बढ़ाने के लिए कैश रिजर्व रेशों को घटा दिया जाता है।
  • वैधानिक तरलता अनुपात (SLR – Statutory Liquidity Ratio) :- यह बैंकों के पास जमा राशि का वह हिस्सा होता है जिससे कि बैंक को अपने पास सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है। यानी कि इन पैसों में से बैंक लोन नहीं दे सकता है। कैश रिजर्व रेशों की भांति ही यह अनुपात को भी कम या ज्यादा करके केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को बढ़ा एवं घटा सकती है।

2. अप्रत्यक्ष उपकरण

अप्रत्यक्ष उपकरण के अंतर्गत ऐसे उपकरण आते हैं जिससे की साख सृजन (Credit Creation) पर नियंत्रण रखा जा सके।

  • बैंक दर (Bank Rate) :- यह वह ब्याज दर होता है जिस पर सभी बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में गिर गया अल्प अवधि के लिए लोन ले सकते हैं। स्क्रीन के लिए बैंक कोड रिजर्व बैंक के पास कोई भी सिक्योरिटी गिरवी रखनी पड़ती है। मुद्रास्फीति के समय महंगाई को कम करने के लिए रिजर्व बैंक, बैंक दर को बड़ा करके लोन को महंगा कर देती है, जिससे बैंक के लिए ऋण लेना महंगा हो जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप बैंक में भी अपने ब्याज दरों में वृद्धि करनी पड़ती है। जिस वजह से आम ग्राहक को ऋण लेने के लिए अधिक ब्याज चुकाना पड़ता है। इस तरह से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा भी कम हो जाती है।
  • रेपो दर (Repo Rate) :- रेपो दर वह दर है जिस पर बैंक भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण लेते हैं। रेपो दर में कटौती करके रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यह संदेश देता है कि उन्हें आम लोगों और कंपनियों के लिए रिंकी दरों को आसान करना चाहती है। रिवर्स रेपो रेट , ठीक इसके उल्टा होता है अर्थात बैंक अपनी कुछ धनराशि को रिजर्व बैंक में जमा कर देती है जिस पर रिजर्व बैंक ने ब्याज देता है। रिजर्व बैंक जिस दर पर ब्याज देती है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।
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