What is Hypothecation in Banking – हाइपोथैकेशन क्या होता है? इस शब्द का हिंदी अर्थ दृष्टि बंधक होता है। आपने इस शब्द को कई बार बैंक में सुना होगा। आप में से कई सारे लोग हाइपोथैकेशन बैंक में किस लिए इस्तेमाल किया जाता है इसके बारे में भी जानकारी रखते हैं।
Hypothecation एक डॉक्यूमेंट भी होती है। जिसे आप को भरकर के बैंक को देना होता है जब आप बैंक से कोई लोन ले रहे होते हैं। आज के हमारे इस लेख में हम आप लोगों को बताएंगे कि What is Hypothecation in Banking – हाइपोथैकेशन क्या होता है? इसके अलावा आज के हमारे इस लेख में हम इस बारे में भी चर्चा करेंगे कि हाइपोथैकेशन से बैंक को क्या लाभ मिलता है?
What is Hypothecation in Banking – हाइपोथैकेशन क्या होता है?
Hypothecation (दृष्टि बंधक) बैंक पर तब किया जाता है जब किसी संपत्ति को सुरक्षित करने के लिए कॉलेटरल के रूप में गिरवी रखा जाता है। किसी भी संपत्ति का मालिक संपत्ति से उत्पन्न आए जैसे कि शीर्षक (Ownership), कब्ज आया स्वामित्व अधिकार नहीं छोड़ता है। हाइपोथैकेशन के अंतर्गत यदि नियम एवं शर्तों को पूरा नहीं किया जाता तो बैंक (ऋणदाता) संपत्ति को जप्त कर सकता है।
एक किराए की संपत्ति उदाहरण के लिए, बैंक द्वारा जारी किए गए बंधक के खिलाफ कॉलेटरल के रूप में हाइपोथैकेट किया जा सकता है। जब की संपत्ति कॉलेटरल बनी हुई है, बैंक के पास आने वाले किराए की आय पर कोई दावा नहीं है। वही मकान का मालिक सही समय पर अगर लोन चुकता नहीं करता है। तो ऐसी स्थिति में बैंक संपत्ति को जप्त कर सकता है।
Important Points Hypothecation in Banking – बैंकिंग क्षेत्र में हाइपोथैकेशन के प्रमुख बिंदु
- हाइपोथैकेशन कोई भी बैंक तब करता है जब किसी संपत्ति को लोन सुरक्षित करने के लिए कॉलेटरल के रूप में गिरवी रखा जाता है।
- लोन लेने वाला व्यक्ति संपत्ति से मिलने वाली आए जैसे कि शीर्षक, कबजा या स्वामित्व का अधिकार नहीं छोड़ता। सीधे शब्दों में कहें तो संपत्ति से होने वाले लाभ मालिक को मिलता रहता है।
- बंधक ऋण (Mortgage Loan) जब भी आप बैंक से लेते हैं उस समय बंधक के रूप में जमीन, मकान, LIC Certificate इत्यादि बंधक रखते हैं। जो बैंकिंग शब्दावली में कॉलेटरल (Collateral) कहलाती है। बैंक अपने लोन को सुरक्षित रखने के लिए हाइपोथैकेशन (Hypothecation) करता है।
- ब्रोकरेज खातों में Margin Lending आधार सिक्योरिटीज व्यापार और निवेश में पाए जाने वाला हाइपोथैकेशन का एक अन्य सामान्य रूप होता है।
हाइपोथैकेशन को कैसे समझें?
चलिए हम एक उदाहरण द्वारा इसे समझने की कोशिश करते हैं। मान लेते हैं कि कोई व्यक्ति बैंक से लोन लेने के लिए अपना घर गिरवी रखना चाहता है। बैंक द्वारा उसे लोन देने के लिए उसके घर का हाइपोथैकेशन (Hypothecation) करवाती है।
बैंक हाइपोथैकेशन या दृष्टि बंधक के माध्यम से उस घर को कॉलेटरल के रूप में गिरवी रखी है। उस घर का वर्तमान समय में कीमत के आधार पर बैंक से ऋण मुहैया करवाता है।
हाइपोथैकेशन होने के बाद मालिक का अपने घर पर पूरा हक होता है। जैसे कि उस से उत्पन्न होने वाली आय, अगर मालिक ने उस घर पर किराया लगाया हो तो उस किराए पर मालिक का ही हक होगा ना कि बैंक का। हाइपोथैकेशन के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति एक देनदार बंधक समझौते में प्रवेश करता है। जिसमें लोन का घर तब तक कॉलेटरल या गिरवी के रूप में रखी जाती है जब तक की लोन का भुगतान पूरा नहीं किया जाता है।
अगर लोन लेने वाला व्यक्ति बैंक द्वारा दिए गए लोन को चुकता नहीं कर पाता, ऐसी स्थिति में बैंक गिरवी रखे गए घर को जप्त करने का अधिकार भी रखता है। हाइपोथैकेशन का मुख्य उद्देश्य लेनदार के ऋण जोखिम को कम करना है। यदि देनदार भुगतान नहीं कर पाता तो उसे अपनी संपत्ति गिरवी रखनी होती है। हालांकि वह इसके स्वामित्व का दावा कर सकता है। लेकिन बैंक द्वारा घर को या संपत्ति को हाइपोथैकेशन (Hypothecation) करने के बाद वह उसे बेच नहीं सकता। वह तभी अपनी संपत्ति को बेच सकता है जब वह अपना ऋण चुकता करना चाहता हो। इस प्रकार संपत्ति का मालिक नकदी प्रवाह की कमी की भरपाई कर सकता है।
हाइपोथैकेशन के अंतर्गत बैंक के पास यह अधिकार होता है कि अगर लोन लेने वाला व्यक्ति डिफॉल्ट हो जाए, यानी कि लोन को चुकता करने में असमर्थ रहे। तो ऐसी स्थिति में बैंक उसकी संपत्ति को जप्त कर सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बंधक के रूप में रखी गई संपत्ति से लोन की भरपाई करना आसान होता है। देनदार जैसे बैंक जितना संभव हो उतना कर्ज देना चाहता है लेकिन कॉलेटरल के रूप में रखी गई अच्छी संपत्ति के अलगाव से देनदार की शेष बैलेंस शीट की गुणवत्ता कम हो जाती है जिसका असर उसकी क्रेडिट योग्यता पर भी पड़ता है।