How to Trade Share in Share Market – शेयरों की ट्रेडिंग कैसी होती है?

How to Trade Share in Share Market – शेयरों की ट्रेडिंग कैसी होती है? शेयर बाजार में शेयर की खरीद बिक्री करने के लिए आपके पास में सबसे पहले एक डीमेट अकाउंट (Demat Account) होना अनिवार्य होता है। इसके अलावा अपने ब्रोकरेज के साथ में आपका ट्रेडिंग अकाउंट शेयर की लेनदेन के लिए भी जरूरी होता है। अगर आपको यह नहीं पता कि डिमैट अकाउंट क्या होता है? और आप डिमैट अकाउंट कैसे खोलेंगे? इसकी पूरी जानकारी आप नीचे क्लिक करके पढ़ सकते हैं?

अगर आपके पास में जो दोनों ही अकाउंट है। तो आप आसानी से शेयर मार्केट में ट्रेडिंग कर सकते हैं। ट्रेडिंग करने के लिए आपके पास में दोनों ही अकाउंट होना आवश्यक होता है। बिना दोनों अकाउंट के शेयर बाजार से शेर की खरीद बिक्री नहीं कर सकते हैं।

आज के हमारे इस लेख में हम या जानेंगे कि शेयर बाजार में शेयर की ट्रेडिंग कैसे होती है?

How to Trade Share in Share Market – शेयरों की ट्रेडिंग कैसी होती है?

Stock Exchange या शेयर बाजार में शेयर की ट्रेडिंग एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है कि लोग शेयर बाजार पर निवेश करना पसंद करते हैं। शेयर की ट्रेडिंग करके लोग शेयर बाजार से लाभ कमाते हैं। निवेशक शेयर बाजार में मौजूद विभिन्न शेयर, bonds, government securities, इत्यादि चीजों पर निवेश करते हैं। शेयर बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव से लाभ कमाते हैं।

शेयर बाजार में होने वाले सारे ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से होती है। पहले स्टॉक एक्सचेंज एक निर्धारित स्थान या भवन के रूप में होता था, जहां पर शेयर दलाल यानी कि ब्रोकर आमने सामने आकर के शेयर की खरीद बिक्री या ट्रेडिंग करते थे। उस समय शेयर की खरीद-फरोख्त के लिए ‘ ट्रेडिंग रिंग’ हुआ करती थी जहां पर शेयर की खरीद-फरोख्त का निपटान किया जाता था।

जैसे-जैसे digitalisation बढ़ती गई वैसे वैसे स्टॉक एक्सचेंज की कार्यप्रणाली में भी बदलाव आ गया है। अब स्टॉक एक्सचेंज का स्वरूप आभासी (virtual) बन चुका है। Stock Exchange का प्रत्येक सदस्य जैसे कि ब्रोकर, ट्रेडिंग टर्मिनल द्वारा एक सेंट्रल प्लेस से जुड़ा हुआ होता है। जहां पर शेयरों की खरीद-फरोख्त के आर्डर दिए जाते हैं और साथ में उनका निपटान भी होता है।

चलिए हम से एक उदाहरण द्वारा समझते हैं। मान लिया कि विकास दिल्ली में बैठा है, और वह चेन्नई में बैठे अन्ना भाई के साथ में ट्रेडिंग करना चाहता है। इसलिए वह trading platform की सहायता से ट्रेडिंग कर सकता है। दोनों ही ट्रेडिंग टर्मिनल सेटेलाइट और दूसरे संचार माध्यमों द्वारा एक दूसरे से जुड़े रहेंगे। ट्रेडिंग टर्मिनल की सहायता से वे trading Central Place से जुड़े रहते हैं।

आजकल सभी स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की खरीद पर्वत जैसे कि buying and selling, orders इत्यादि स्वचालित प्रणाली (automated system) द्वारा किया जाता है। यह आदेश ब्रोकर के ट्रेडिंग टर्मिनल द्वारा स्टॉक एक्सचेंज के तब मिनल तक पहुंचता है। वहां इस आर्डर का मिलान अन्य टर्मिनल से आए ऑर्डर से किया जाता है। यहां पर स्टॉक एक्सचेंज को स्वचालित प्रणाली द्वारा इस आर्डर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दूसरे आर्डर का मिलान करती है। इस तरह से शेयर की खरीद बिक्री का सौदा पूरा किया जाता है।

मान लिया कि कोई एक निवेशक अपने ब्रोकर के टर्मिनल के माध्यम से HDFC Bank के 100 share खरीदना चाहता है। शेयरों की खरीद का आदेश ₹2000 प्रति शेयर की दर से ऑर्डर प्लेस करता है। तो Stock Exchange की स्वचालित प्रणाली इस आर्डर का मिलान एचडीएफसी बैंक की शेयरों की खरीद बिक्री के लिए अन्य ऑर्डर से करता है। सर्वाधिक उपयोग ऑर्डर उपलब्ध होने पर इन दोनों आर्डर का सौदा तय कर दिया जाता है। शेयरों की खरीद बिक्री के लिए दो तरह के आर्डर दिए जाते हैं पहला limit order और दूसरा Market order होता है। हम लोग दोनों ही तरह के आर्डर के बारे में नीचे विस्तार से जानेंगे।

Limit order क्या होता है?

शेयर बाजार में शेयर की खरीद बिक्री करने के लिए सबसे पहले ब्रोकर या सब ब्रोकर (sub-Broker) को फोन के द्वारा निर्देश देना पड़ता है। अगर आप ऑनलाइन trading कर रहे हैं। तो आप खुद ऑर्डर या निर्देश को एग्जीक्यूट कर सकते हैं।

Limit order, को ‘ Fixed price order’ भी कहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस तरह के आर्डर में आप शेयर की खरीद बिक्री एक निश्चित तय दाम पर करते हो।

आमतौर पर निवेशक ब्रोकर के कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखने वाले शेयर के उस समय चल रहे भाव से थोड़ा ऊपर या थोड़ा नीचे ही यह दाम तय करके लिमिट लगा कर के यह आर्डर देता है।

यानी कि आप किसी पूर्व निर्धारित दाम पर शेयर की खरीद बिक्री करना चाहते हैं तो भी लिमिट आर्डर का उपयोग कर सकते हैं। चलिए हम इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं :-

उदाहरण :- मान लिया कि विकास को Zee Entertainment के शेयर ₹100 प्रति शेयर की दर से 1,000 से अधिक खरीदने हैं। लेकिन शेयर मार्केट का यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि शेयर का भाव कब कम होगा या फिर बढ़ेगा। उस समय बर्तमान समय में शेयर की कीमतें ₹110 प्रति शेयर चल रही है। ऐसे में विकास लिमिट ऑर्डर ₹100 प्रति शेयर की दर से अपने ब्रोकर को देगा। यानी कि उसने एक भविष्य मे तय दाम पर शेयर की बोली खरीदने के लिए लगा रखी है। इस तरह से वह अपने ब्रोकर को एक लिमिट ऑर्डर देता है। जब शेर की कीमतें ₹110 प्रति शेयर से नीचे गिर कर के ₹100 प्रति शेयर हो जाएंगी तो उसका आर्डर कंप्लीट हो जाएगा।

इस तरह का आर्डर तब एग्जीक्यूट नहीं होता है जब उस एयर की मार्केट प्राइस यानी कि बाजार की कीमत ₹110 से बढ़कर के ₹120 प्रति शेयर चली जाती है। यानी कि सीधे शब्दों में अगर उस दिन शेयर की कीमत ₹100 प्रति शेयर ना गिर कर के और अधिक बढ़ जाती है तो यह आर्डर कैंसिल हो जाता है।

इसी तरह किसी भी शेयर की खरीद बिक्री के लिए ऑर्डर या निर्देश का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह आप शेयर की बिक्री के लिए भी निर्देश लगा सकते हैं। और अपने शेयर को बिक्री करके लाभ कमा पाते हो।

Market Order क्या होता है?

मार्केट ऑर्डर (Market Order) का अर्थ यह होता है कि आप बाजार भाव पर अपने शेयर की खरीद बिक्री करते हो। मान लिया कि आप एचडीएफसी बैंक के शेयर बाजार भाव पर खरीदना चाहते हैं। आप अपने ब्रोकर द्वारा दिए गए सॉफ्टवेयर प्रोग्राम या फिर उनके वेबसाइट पर लॉगिन होते हैं। यहां पर आपको एचडीएफसी बैंक की शेयर के भाव 2110 रुपए प्रति शेयर देखने को मिलते हैं। आप इसी भाव पर अपने ब्रोकर को शेयर खरीदने के लिए निर्देश देते हैं। तो इसे मार्केट ऑर्डर (Market Order) कहते हैं।

इस तरह के आर्डर तब एक्जिक्यूट होते हैं जबकि बाजार में शेयर के भाव कितने चल रहे हैं उतने ही दाम पर शेयर की खरीद बिक्री होती है। चलिए हम से एक उदाहरण द्वारा समझते हैं।

मान लीजिए कि कोई व्यक्ति SBI के शेयर खरीदना चाहता है। शेयर खरीदने के लिए अपने ब्रोकर को मार्केट ऑर्डर देता है। यह आर्डर तब एग्जीक्यूट होगा, उस समय शेयर का जो भाव मार्केट पर चल रहा होगा उसी रेट पर SBI की शेयर खरीदी जाएगी। किस मूल्य पर आपने शेयर खरीदा, यह मूल्य आपके स्क्रीन पर दिखाई दी जाएगी। इसके अलावा आप के फायदे के लिहाज से कभी-कभी ब्लॉक कर आप की सहमति से ऐसा भी कर सकता है। जैसा आप मान लीजिए, कंप्यूटर पर आपको जो दिखता है बाजार में चल रहे हैं ₹60 प्रति शेयर भाव पर केवल 80 शेयर उपलब्ध है। और बेचने वाले कुछ लोग ₹62 प्रति शेयर मांग कर रहे हैं।

ऐसी स्थिति में ब्रोकर आपके लिए 80 शेयर ₹60 प्रति शेयर और बाकी 20 शेयर ₹62 प्रति शेयर के दाम पर खरीदेगा। इसीलिए बाजार में बहुत उतार-चढ़ाव किस समय में या किसी बड़े सोने के लिए आप मार्केट आर्डर का उपयोग ना करें। इस आर्डर का उपयोग तभी करना सही होता है, जब आप जल्दी में शेयर की खरीद बिक्री करना चाहते हैं। और उस समय सऊदी के भाव को लेकर के आप ज्यादा चिंतित नहीं है।

भारत जैसे देश में मुख्यता दोस्तों के एक्सचेंज हैं :-

  1. National Stock Exchange – राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज – NSE
  2. Bombay Stock Exchange – बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज – BSE

जब भी आप शेयर की खरीद बिक्री करते हैं, तो शेयर इन्हीं दो मुख्य बाजार पर खरीद बिक्री होते हैं। इन दोनों स्टॉक एक्सचेंज में ज्यादातर शेयर की खरीद बिक्री नकद सिग्मेंट (Cash Segment) पर होती है।

Non- Cash Segment, जैसे कि डेरिवेटिव सो दे इत्यादि आते हैं। इनकी भी खरीद बिक्री इन्हीं दो स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से होती है।

Stop Loss क्या होता है?

जब भी कोई निवेशक शेयर बाजार पर शेयर की खरीद बिक्री करता है तो वह चाहता है कि उसे कम से कम नुकसान हो। वह निर्धारित स्तर पर लाभ कमाना चाहता है। इसके लिए निवेशक शहर की खरीद बिक्री करते वक्त अपने ब्रोकर को Stop Loss का आर्डर देता है।

इस तरह के माध्यम का उपयोग ज्यादातर एक दिन में होने वाले ट्रेडिंग के लिए किया जाता है। इस तरह की खरीद बिक्री की ट्रेडिंग को Intraday Trading कहते हैं। इस तरह के खरीद बिक्री में निवेशक स्टॉप लॉस ऑर्डर की सहायता से अपना नुकसान सीमित कर सकते हैं।

बाजार में भारी अस्थिरता के समय या आर्डर निवेशकों को किसी बड़े नुकसान से बचा लेता है। या आर्डर उन निवेशकों के लिए काफी लाभदायक है जो शॉर्ट टर्म जैसे कि इंट्राडे ट्रेडिंग करते हो। इसके साथ ही वे बाजार भाव पर नजर नहीं रख पाते हैं।

स्टॉप लॉस ऑर्डर में निवेशक एक दाम के साथ ब्रोकर के कंप्यूटर में एक अन्य दाम भी निर्धारित करता है। जिसे Trigger Price भी कहा जाता है। जैसे ही बाजार में शेयर का भाव इस ट्रिगर प्राइस तक पहुंचता है आपका ऑर्डर सक्रिय हो जाता है। यह ट्रिगर प्राइस आर्डर देते समय बाजार में चल रहे मूल्य से अधिक किया कम होना चाहिए।

मान लेते हैं कि एक निवेशक BAJAJ Auto के शेयर खरीदना चाहता है। इसके लिए उसने ₹100 प्रति शेयर के मूल्य से बजाज ऑटो के शेयर खरीदे हैं। लेकिन वह नहीं जानता कि शेयर के दाम बढ़ेंगे या फिर नीचे गिरेंगे। लेकिन वह चाहता है कि यदि शेयर की कीमत गिरे तो वह अपना नुकसान ₹10 प्रति शेयर तक सीमित रख सके। ऐसी स्थिति में निवेशक या शेयर बेचने के लिए अपना स्टॉप लॉस ऑर्डर ₹90 प्रति शेयर पर दे सकता है और इसमें ट्रिगर प्राइस होगी ₹91 प्रति शेयर। अब जैसे ही शेयर का भाव गिर कर के ₹91 प्रति शेयर होगा, कंप्यूटर पर निवेशक का आर्डर सक्रिय हो जाएगा। लेकिन यह तभी एग्जीक्यूट होगा जब भाव ₹90 प्रति शेयर तक ना पहुंच जाएं। इस प्रकार यदि निवेशक कोई शेयर बेचता है, लेकिन उसे कम दाम पर खरीदना चाहता है, तब भी स्टॉप लॉस ऑर्डर का उपयोग कोई भी निवेशक कर सकता है। कोई भी बड़ा निवेशक इस आर्डर का उपयोग तब करता है जब उनके विश्लेषण के अनुसार एक पूर्व निर्धारित स्तर पार करने के बाद शेयर का भाव तेजी से बढ़ने या गिरने लगता है।

इस तरह के आर्डर ‘Day-Trading’ यानी कि Intraday Trading में मार्जिन का मार्जिन प्लस में इंट्राडे ट्रेडिंग के अंतर्गत निवेशकों को खरीद व बिक्री का निपटान उसी दिन बाजार बंद होने से पहले करने के लिए करना पड़ता है।

वह निवेशक जोया सोचकर के बाजार खुलने पर शेयर की खरीद करता है कि उस शेयर की कीमत पर होने वाली बढ़ोतरी का लाभ उसे मिलेगा। लेकिन क्योंकि शेयर बाजार पर खबरों, वैश्विक स्तर पर मांग एवं पूर्ति का बहुत ही जल्द प्रभाव पड़ता है। इसलिए इन संभावनाओं को देखते हुए निवेशक शेयर खरीदने के साथ ही स्टॉप लॉस लगाने का ऑर्डर दे देता है ताकि यदि शेयर की कीमत इस सीमा तक नहीं पहुंच पाती तो शेयर की बिक्री के दौरान उसे कम नुकसान उठाना पड़ेगा।

लिवाली बिकवाली क्या होता है?

शेयर की खरीद व बिक्री ‘लिवाली बिकवाली’ ट्रेडिंग कहलाती है। वैसे ही या प्रक्रिया हर निवेशक के लिए एक जैसी दिखती है लेकिन अलग-अलग श्रेणी के निवेशकों के लिए खरीद-फरोख्त के कई मायनों में अलग होते हैं। इस तरह की खरीद बिक्री में सबसे बड़ा फर्क खरीद बिक्री की मात्रा का होता है।

एक छोटा निवेशक किसी विशेष कंपनी के 50 से 100 शेयर खरीदे गा लेकिन इन शेयरों की खरीद का आंकड़ा तब बहुत ज्यादा हो जाएगा जब इस कंपनी के शेयर को कोई HNI (High Network Individual) यानी कि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके पास निवेश के लिए भारी मात्रा में पूंजी हो। वहीं दूसरी तरफ ऐसी खरीद बिक्री बड़ी-बड़ी संस्थान भी निवेश करने के लिए करते हैं। जो एक ही ट्रांजैक्शन में लाखों शेयर का लेनदेन करते हैं। इसलिए स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों की खरीद व बिक्री में बहुत बड़ा अंतर होता है। यही कारण है कि शेयर के भाव पल-पल में बदलते हैं।

बड़े-बड़े इंस्टिट्यूशन या किसी व्यक्तिगत व्यक्ति द्वारा एक ही दिन में कई लाखों शेयर की खरीद एवं बिक्री की जाती है जिसका असर शेयर बाजार के भाव पर पड़ता है। और शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।

शेयर की खरीद बिक्री कैसे करें? – How to Buy and Sell Share in Share Market?

वह निवेशक जो शेयर खरीदना चाहता है उसे खरीदने का आर्डर (Buying Order) देना होता है। और जो निवेशक शेयर बेचना चाहता है उसे (Selling Order) देना होता है। जब यह आर्डर एग्जीक्यूट (Execute) हो जाता है तब पर आउट के बाद सिस्टम यह सुनिश्चित करता है कि निवेशक शेयर उसके डीमेट अकाउंट में आ गया है।

वहीं दूसरी ओर डे ट्रेडर (Intraday Trading) करने वाले जो अपनी पोजीशन उस दिन स्क्वायर ऑफ करते हैं इसलिए उन्हें ना तो मिलते हैं और ना ही वह देते हैं। कहने का अर्थ यह है कि इंट्राडे ट्रेडिंग करने वाले निवेशक का शेयर ना तो उनके डिमैट खाते में क्रेडिट होता है और ना ही डीमैट खाते से उनके शेयर डेबिट होते हैं। क्योंकि, इंट्राडे ट्रेडिंग के दिन बाजार बंद होने के दौरान ही उन्हें खरीदे गए शेयर को बेचना होता है।

उदाहरण :- मान लीजिए कि कोई निवेशक इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान 100 शेयर Reliance Industry के ₹10000 सुबह जब मार्केट खुलती है तब लगा कर के खरीदता है। उसी दिन उसे मार्केट क्लोज होने से पहले बेचना भी होता है। मार्केट बंद होते होते शेयर की कीमत पर 100 शेयर की कीमत ₹12000 पहुंच जाती है। इस प्रकार से निवेशक को ₹2000 का मुनाफा होता है। पूरी इस ट्रेडिंग प्रक्रिया में ना ही उसके डीमैट खाते पर शेयर क्रेडिट होते हैं और ना ही उसके डिमैट खाते से शेयर डेबिट होते हैं। निवेशक को लागू है ₹2000 मैं से ब्रोकरेज शुल्क और दूसरे खर्चे जैसे टैक्स इत्यादि निकाल कर के बचा हुआ राशि निवेशक के ट्रेडिंग अकाउंट पर दे दिया जाता है।

शेयर मार्केट से खरीदी गया शेयर का सेटलमेंट कैसे होता है?

कोई भी निवेशक अगर शेयर बाजार में शेयर की खरीद बिक्री करना चाहता है तो उसे शेयर मार्केट से खरीदें गए शेयर का सेटलमेंट कैसे होता है? इसके बारे में भी जानकारी होना अति आवश्यक है।

निवेशक द्वारा शेयर की खरीद या बिक्री संबंधी निर्णय लिए जाने के बाद सेटलमेंट साइकिल (Settlement Cycle) शुरू हो जाती है। यह पूरी प्रक्रिया Pay-In और Pay-Out के जरिए पूरा होता है जो वास्तविक ट्रांजैक्शन के दो कार्य दिवसों के पश्चात (T+2 DAY) पूरा होता है।

शेयरों की खरीद का मूल्य अदा किया जाता है तथा खरीददार के खाते में हस्तांतरित हो जाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया स्टॉक एक्सचेंज में किसी भी प्रकार की खरीद बिक्री यानी कि रेड संपन्न होने के दो कार्य दिवसों के बाद पे-इन और पे-आउट की प्रक्रिया होती है।

Pay-Out किस तिथि में खरीदार को सिक्योरिटीज की डिलीवरी दे दी जाती है और बिक्री करता के खाते में शेयर का बिक्री मूल्य जमा हो जाता है। इस प्रकार शेयर बेचने और शेयर खरीदने वाले दोनों के खाते में सेटलमेंट किया जाता है। पैसों का सेटलमेंट ट्रेडिंग अकाउंट के जरिए होता है तो वही शेयर उनके डिमैट अकाउंट पर जमा हो जाती है। इस तरह खरीद बिक्री की पूरी प्रक्रिया संपन्न होती है।

निष्कर्ष

दोस्तों हमने यहां पर आप लोगों को How to Trade Share in Share Market – शेयरों की ट्रेडिंग कैसी होती है? इसके बारे में हमारी इस लेख में पूरी जानकारी उपलब्ध कराई है। कोई भी नया निवेशक यदि शेयर मार्केट पर निवेश करके लाभ कमाना चाहता है। तो उसे इस बारे में जानकारी होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है कि शेयर मार्केट में किसी भी शेयर की ट्रेडिंग कैसे होती है? हमने यहां पर शेयर मार्केट की ट्रेडिंग कैसे होती है इसकी मूलभूत जानकारी है आप लोगों को उपलब्ध कराई है। इससे संबंधित अगर आपकी कुछ सवाल एवं सुझाव है तो आप हमें कमेंट बॉक्स पर कमेंट करके पूछ सकते हैं।

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दोस्तों में, facttechno.in का संस्थापक हूं। मैं अपनी इस ब्लॉग पर टेक्नोलॉजी और अन्य दूसरे विषयों पर लेख लिखता हूं। मुझे लिखने का बहुत शौक है और हमेशा से नई जानकारी इकट्ठा करना अच्छा लगता है। मैंने M.sc (Physics) से डिग्री हासिल की है। वर्तमान समय में मैं एक बैंकर हूं।

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